Thursday, April 12, 2012

वि‍हनि‍ कथा :: पाप आ पुण्य :: जगदीश मण्‍डल


पाप आ पुण्य

अपन पोथी-पतरा उनटबैत चित्रगुप्त आसनपर बैसल छलाह। तइ बीच दू गोटेकेँ यमदूत हुनका लग पेश केलक। पहिल व्यक्तिक परिचए दैत यमदूत कहलकनि- ई नगरक सेठ छथि। हिनका घनक कोनो कमी नै छन्‍हि‍। खूब कमेबो केलनि आ मंदिर, धरमशाला सेहो बनौलनि।
कहि यमराज सेठकेँ कातमे बैसाए देलक।
दोसरकेँ पेश करैत बाजल- ई बड़ गरीब छथि। भरि पेट खेनाइयो ने होइत छन्‍हि। एक दिन खाइत रहथि‍ आकि एकटा भूखल कुत्ता लगमे आबि ठाढ़ भऽ गेलनि। भूखल कुत्ताकेँ देखि‍ थारीमे जे रोटी बँचल रहनि ओ ओकरा आगूमे दऽ देलखिन। अपने पानि पीब हाथ धोय लेलनि। आब अपने जे आज्ञा दिऐक
यमदूतक ब्‍यान सुनि चित्रगुप्त पोथिओ देखथि‍ आ विचारबो करथि। बड़ी काल धरि सोचैत-विचारैत निर्णए देलखिन- सेठकेँ नरक आ गरीबकेँ स्वर्ग लऽ जाउ
चित्रगुप्तक निर्णए सुनि यमराजो आ दुनू व्यक्तियो अचंभित भऽ गेल। तीनू गोटेकेँ अचंभित देखि‍ अपन स्पष्टीकरणमे चित्रगुप्त कहए लगलखिन- गरीब आ निःसहाय लोकक शोषण सेठ केने अछि। ओइ निःसहाय लोकक विवशताक दुरुपयोग केने अछि। जइसँ अपनो एेश-मौज केलक आ बचल सम्पति‍क नाओं मात्र लोकेषणक पूर्ति हेतु व्यय केलक। तइमे लोकहितक कोन काज भेलै? ओइ मंदिर अा धरमशल्ला बनबैक पाछू ई भावना काज करै छलै जे लोक हमर प्रशंसा करए। मुदा पसेना चुबा कऽ जे गरीब कमेलक आ समए एलापर ओहो कुत्तेकेँ खुआ देलक। जँ ओकरा आरो अधिक धन रहितै तँ नै जानि कत्ते अभावग्रस लोकक सेवा करैत

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