पाप आ पुण्य
अपन पोथी-पतरा उनटबैत चित्रगुप्त आसनपर बैसल छलाह। तइ बीच दू गोटेकेँ यमदूत हुनका लग
पेश केलक। पहिल व्यक्तिक परिचए दैत यमदूत कहलकनि- “ई नगरक सेठ छथि। हिनका घनक कोनो कमी नै छन्हि। खूब कमेबो केलनि आ मंदिर,
धरमशाला सेहो बनौलनि।”
कहि यमराज सेठकेँ कातमे बैसाए देलक।
दोसरकेँ पेश करैत बाजल- “ई बड़ गरीब छथि। भरि पेट खेनाइयो
ने होइत छन्हि। एक दिन खाइत रहथि आकि एकटा भूखल कुत्ता लगमे आबि ठाढ़ भऽ गेलनि। भूखल
कुत्ताकेँ देखि थारीमे जे रोटी बँचल रहनि ओ ओकरा आगूमे दऽ देलखिन। अपने पानि पीब
हाथ धोय लेलनि। आब अपने जे आज्ञा दिऐक।”
यमदूतक ब्यान सुनि चित्रगुप्त पोथिओ देखथि आ विचारबो
करथि। बड़ी काल धरि सोचैत-विचारैत निर्णए देलखिन- “सेठकेँ नरक आ गरीबकेँ स्वर्ग लऽ जाउ।”
चित्रगुप्तक
निर्णए सुनि यमराजो आ दुनू व्यक्तियो अचंभित भऽ गेल। तीनू गोटेकेँ अचंभित देखि अपन
स्पष्टीकरणमे चित्रगुप्त कहए लगलखिन- “गरीब आ
निःसहाय लोकक शोषण सेठ केने अछि। ओइ निःसहाय लोकक विवशताक दुरुपयोग केने अछि। जइसँ
अपनो एेश-मौज केलक आ बचल सम्पतिक नाओं मात्र लोकेषणक पूर्ति हेतु व्यय केलक। तइमे
लोकहितक कोन काज भेलै? ओइ
मंदिर अा धरमशल्ला बनबैक पाछू ई भावना काज करै छलै जे लोक हमर प्रशंसा करए। मुदा पसेना
चुबा कऽ जे गरीब कमेलक आ समए एलापर ओहो कुत्तेकेँ खुआ देलक। जँ ओकरा आरो अधिक धन रहितै
तँ नै जानि कत्ते अभावग्रस लोकक सेवा करैत।”
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