दुइ गोट लेखक मित्र छलाह। एकटा नव तँ दोसर पुरान। पुरान किछु हद धरि एक मोकामपर
पहुँचि गेल छलाह। तँ नवका हुनका लग बेर–बेर दौड़थि। पुरनका बेचारे आजिज भऽ गेल छलाह अपन नव मित्रसँ।
मुदा बाजताह की? कहबाके लेल, मुदा छलथि तँ मित्र। एक दिन ओ कविताक माध्यमे अपन पीड़ा व्यक्त केलखिन आ कविताक
शीर्षक देलथिन–किकिऔनी।
नोट- “सगर राति दीप जरय” सरसठिम कथा गोष्ठी, मानाराय टोल, नरहन (समस्तीपुर) मे पठित
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