Thursday, April 12, 2012

आलसी :: जगदीश मण्‍डल


आलसी

एकटा गाछपर टिकुली आ मधुमाछी रहैत छलि। दुनूक बीच घनिष्ठ दोस्ती छलै। भरि दिन दुनू अपन जिनगीक लीलामे लागल रहैत छलि। अकलबेरामे दुनू आबि अपन सुख-दुखक गप-सप्प करैत छलि।
बरसातक समए एलै। सतैहिया लाधि देलकै। मधुमाछीले तँ अगहन आबि गेलै मुदा टिकुलीक लेल दुरकाल। भूखे-पियासे टिकुली घरक मोख लग मन्हुआएल बैसल छलि। मुँह सुखाएल आ चेहरा मुरुझाएल छलै। चरौर कए कऽ आबि मधुमाछी टिकुलीकेँ पुछलकै- बहिन, एहेन सुन्नर समैमे एत्ते सोगाएल किएक बैसल छी?”
मधुमाछीक बात सुनि कड़ुआएल मोने टिकुली उत्तर देलकै- बहिन, मौसमक सुन्नरतासँ पेटक आगि थोड़े मिझाइ छै। तीन दिनसँ कतौ निकलैक समैये ने भेटल, तँए भूखे तबाह छी।
उपदेश दैत मधुमाछी कहलकै- कुसमए लेल किछु बचा कऽ राखक चाही
कहलौं तँ बहिन ठीके मुदा बचा कऽ रखलासँ आलसियो भऽ जैतौं आ भूखल सभक नजरिमे चोरो होइतौं

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