आलसी
एकटा गाछपर टिकुली आ मधुमाछी रहैत छलि। दुनूक बीच घनिष्ठ
दोस्ती छलै। भरि दिन दुनू अपन जिनगीक लीलामे लागल रहैत छलि। अकलबेरामे दुनू आबि अपन
सुख-दुखक गप-सप्प करैत छलि।
बरसातक समए एलै। सतैहिया लाधि देलकै। मधुमाछीले तँ अगहन
आबि गेलै मुदा टिकुलीक लेल दुरकाल। भूखे-पियासे टिकुली घरक मोख लग मन्हुआएल बैसल छलि।
मुँह सुखाएल आ चेहरा मुरुझाएल छलै। चरौर कए कऽ आबि मधुमाछी टिकुलीकेँ पुछलकै- “बहिन, एहेन सुन्नर समैमे एत्ते
सोगाएल किएक बैसल छी?”
मधुमाछीक बात सुनि कड़ुआएल मोने टिकुली उत्तर देलकै- “बहिन, मौसमक सुन्नरतासँ पेटक आगि
थोड़े मिझाइ छै। तीन दिनसँ कतौ निकलैक समैये ने भेटल, तँए भूखे तबाह छी।”
उपदेश दैत मधुमाछी कहलकै- “कुसमए लेल किछु बचा कऽ राखक चाही।”
“कहलौं तँ
बहिन ठीके मुदा बचा कऽ रखलासँ आलसियो भऽ जैतौं आ भूखल
सभक नजरिमे चोरो होइतौं।”
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