अनुशासन
अंग्रेजी शासनक खिलाप आन्दोलन उग्र रूप धेने जा रहल छल।
आन्दोलन चलबैले क्रान्तिकारी दलकेँ डकैतियो करए पड़ै। एक दिन राम प्रसाद विस्मिलक नेतृत्वक
दल एकटा गाममे डकैती करए लेल पहुँचल। एकटा परिवारमे सभ घुसल। जतए जे किछु दलकेँ भेटलै
लऽ कऽ निकलल। सभ एकत्रित हुअए लगल आकि अपन साथीक गिनती करए लगल। गिनतीमे एक गोटे कमैत
रहए। घरेमे चन्द्रशेखर एकटा बुढ़ियाक कैदमे पड़ल छल। ओ बुढ़िया अपन जेबर आ नगदीबला बक्सापर
बैस चन्द्रशेखरक गट्टा पकड़ने छलि। चन्द्रशेखर चुपचाप आगूमे ठाढ़। ने बाँहि झमारैत आ
ने किछु बजैत। सभ कियो घर पैसि देखलक जे चन्द्रशेखर बुढ़ियाक पालामे पड़ल छथि।
क्रान्तिकारी पार्टीक बीच अनुशासन छलै जे ने महिलापर
हाथ उठाओल जाएत आ ने ओकर जेबर लेल जाएत। आजाद बुढ़ियाकेँ बुझबैत कहथिन- “माता जी, अहाँ बक्सापर सँ हटि
जाउ। हम सिर्फ नगद लेब। जेबर नै लेब।”
आजादक विनम्र बातसँ बुढ़ियाक साहस बढ़ि गेल छलैक। जखन चन्द्रशेखरसँ
संगी सभ पुछलकनि तखन ओ सभ बात कहलखिन। आजादक बात सुनि सभ ठाहाका दऽ हँसए लगल। गट्टा छोड़बैले एक गोटे
बढ़ए लगलथि आकि चन्द्रशेखर कहलखिन- “माताजीक सभ सम्पति घुमा दियनु।”
सम्पतिक
नाओं सुनि भावुक बुढ़िया चन्द्रशेखरक गट्टा छोड़ि देलकनि। तखन ओ घरसँ संगी सबहक संगे
निकललाह।
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