ठक
एकटा ठक लोमड़ी गाछक निच्चाँमे छल। गाछपर बैसल मुर्गाकेँ
पट्टी दऽ रहल छलै जे भाय तूँ नै सुनलहक जे सभ पशु-पक्षी आ जानवरक बीच सभा भेल। जइमे
सर्वसम्मतिसँ निर्णए भेलै जे अपनामे कियो ककरो अधला नै करत, तोँ किएक गाछपर छह निच्चाँ
आबह आ दुनू गोटे अपन जिनगीक दुख-सुखक गप-सप्प करह। लोमड़ीक चालाकी मुर्गा बुझैत छल
तँए गाछेपर सँ हूँह-कारी दैत रहै मुदा निच्चाँ नै उतरै। ताबे दूटा आवारा कुकुड़केँ
दौगल अबैत लोमड़ी देखलक। कुत्ताकेँ देखते पड़ाएल। लोमड़ीकेँ पड़ाइत देखि गाछेपर सँ मुर्गा
कहलकै- “भाय, भगै किअए छह? जखन सबहक बीच समझौता भऽ गेलै तखन तोरा किअए डर होइ छह?”
लोमड़ी भगबो
करैत आ उत्तरो दइत- “भऽ सकैए जे
तोरे जकाँ ओकरो नै बुझल होय।”
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