Thursday, April 12, 2012

पुरुषार्थ :: जगदीश मण्‍डल


पुरुषार्थ

संसारक कुशल-क्षेम बुझैले भगवान एक दिन नारदकेँ पृथ्वीपर पठौलखिन। पृथ्वीपर आबि‍ नारद एकटा दीन-हीन बूढ़ आदमी लग पहुँचला। ओ वेचारे -वृद्ध-आदमी- अन्न-वस्त्रक लेल कलहन्त छल। नारद जीकेँ देखते चीन्हि गेलखिन। कनैत-कलपैत कहए लगलनि- अहाँ घुमि‍ क जखन भगवान लग जाएब तखन कहबनि जे हमरा सन-सन लोकक लेल जीबैक जोगार करथि‍।
बूढ़क बात सुनि उदास मोने नारद आगू बढ़ला। आगू बढ़िते एकटा धनीक आदमीसँ भेँट भेलनि। ओहो नारदकेँ चीन्हि गेलनि। ओ धनीक नारदकेँ कहलकनि- भगवान हमरा कोन जंजालमे फँसौने छथि जे दिन-राति परेशान-परेशान रहै छी। कम धन दितथि जे गुजरो चलैत आ चैनोसँ रहितौं। तँए भगवानकेँ कहबनि जे जंजाल कम कऽ देथि।
दुनूक बात सुनलापर नारद मने-मन सोचए लगला जे कि‍यो धने तबाह तँ कि‍यो निर्धने तबाह। सोचैत-वि‍चारैत नारद आगू बढ़ला। थोड़े आगू बढ़लापर बाबाजीक झुण्ड भेटलनि। नारदकेँ देखि‍ बाबाजी घेरि कऽ कहए लगलनि- स्वर्गमे तोहीं सभ मौज करबह। हमरो सभले राजसी ठाठ जुटाबह नै तँ चुट्टासँ मारि-मारि भुस्सा बना देबह।
नारद घुमि‍ कऽ भगवान लग पहुँचला। यात्राक वृतान्त भगवान नारदसँ पुछलकनि‍। तीनू घटनाक वृतान्त नारद सुना देलखिन। हँसैत नारायण कहए लगलखिन- देवर्षि, हम ककरो कर्मक अनुसार किछु दइले बेवस छी। जे कर्महीन अछि ओकरा कतए सँ किछु देबैक। अहाँ फेर जाउ। ओइ वृद्ध गरीबकेँ कहबै जे भाय अपन गरीबी मेटबैले संघर्ष करू। अपन पुरुषार्थकेँ जगाउ। तखन सभ कि‍छु भेटत। दोसर ओइ धनीककेँ कहबै जे अहाँकेँ धन दोसराक उपकार करैले देलौं। से नै कऽ संग्रही बनि गेलौं तँए अहाँ धनक जंजालमे फँसि गेल छी। आ ओइ बाबाजी सभकेँ कहबै जे परमार्थीक भेष बना कोढ़ि आ स्वार्थी बनि गेल छी, तँए अहाँ सभकेँ नरक हएत।

No comments:

Post a Comment