Sunday, November 17, 2013

अजीब प्रश्न

168. अजीब प्रश्न

"की अहाँ हमरासँ प्रेम करैत छी ?" बड अजीब प्रश्न पूछल गेल छल । आइ बारह वर्षक बाद अजयकेँ हुनक पूर्व प्रेमिका भेंटि रहल छली । एहन अवसरपर प्रेमिका द्वारा पूछल गेल प्रश्नक इच्छा तँ अजयकेँ नहिंये टा छल ।अपनाकेँ सम्हारैत अजय बाजल "इहो कोनो पूछैक बात छै ! अहाँ तँ हमर जीवनक निर्देशक छी ।अहीं तँ हमर साधना छी ।हमर प्रेमक डोरि तँ सदिखन अहाँसँ जुड़ल अछि ।" कहुना कऽ अपन बात पूरा करैत-करैत घामसँ नहा गेल छल अजय । अजयक स्वीकारोक्ति सूनि प्रेमिका बजली " तखन हमर एकटा काज कऽ अपन प्रेमक परीक्षा दिअ । अहाँ हमरा एकटा सन्तान दऽ दिअ ... आब गारि-मारि सहन नै होइत अछि ... बस एक राति लेल संग... ।" बात पूरा नै भऽ सकल ।आँखि नोरा गेल छलै आ कण्ठसँ सिसकारी फूटऽ लागल छलै जाहिमे आगूक शब्द दबि गेल छलै ।अजयक मोनमे भयंकर चक्रबात उठि गेल छल ।जबाब की देल जाए ? किछु फुराइते नै छलै ।बेर-बेर एतबे सोचैत छल, पैघ नाक बाला ई समाज कतेक प्रतारित करैत अछि जे कोनो वियाहल नारी एतेक नीच काज करबाक लेल मजबूर भऽ जाइत अछि !

अमित मिश्र

Wednesday, November 13, 2013

उलाएल

167. उलाएल

दू टा दोस्त गामक स्थितिपर चर्चा कऽ रहल छल ।पहिल दोस्त दोसरकेँ कहलक "चुन्नू बाबूकेँ देखलहीं ।राजासँ रंक बनल जा रहल छथिन ।कते दुर्गति भऽ रहल छन्हि !ऊपर मुँहें जाइ वला विजनेस नीचाँ मुँहे किए जाए लागलै ?"
दोसर दोस्त किछु क्षण सोचलक आ फेर कहलक "हुनकर हाल उलाएल धान जकाँ भेल छै ।उलाएल बीया कखनो नै जन्मै छै ।चुन्नू बाबूकेँ टाकाक घमण्ड भऽ गेल छलनि ।घमण्डक धाहमे हुनक लूरि-बुधि सब उला गेलै, तेँ ओ विजनेसमे नूतनता नै आनलनि आ रंग बनि गेलनि ।असलमे घमण्डे सबकेँ नीचाँ मुँहें लऽ जाइ छै ।बुझलें ।"

अमित मिश्र

Tuesday, November 12, 2013

सेनूर

166. सेनूर

रातिक बारह बाजैत छल ।गुज-गुज अन्हिया आ डेराउन चुप्पी चारू दिस विराजमान छल ।एकाएक मनोजक नीन टूटि गेलै ।चेहा कऽ उठल तँ बगलमे पत्नीकेँ नै देखलक ।मोने मोन शंका ग्रस्त हुअ लागल ।घरसँ बाहर आएत तँ आँगनमे दू गोटाक खुसुर-पुसुर सुनाइ देलकै ।एकटा पुरूष स्वर आ एकटा नारी स्वर आबैत छल ।पुरूष बाजल "देख, आब तूँ प्लान अन्तीम भाग पूरा कर ।मनोज लऽग बड सम्पति छै ।ओकरा मारि कऽ ओकर मलकाइन तूँ बनि जो ।फेर दुनू गोटा वियाह कऽ लेब ।"
नारी स्वर तीव्र गतिसँ बहराएल "नै, ई हमरा बुते नै हेतौ ।"
पुरूष फेर बुझाबऽ लागल "सप्पत नै तोड़ ।दुनू गोटाक प्रेम एकरा मरलाक बादे सफल हेतै ।"
तामसमे डूबल नारी स्वर फूटल "प्रेम प्रेम प्रेम बड भेलौ ।आब अपन प्रेम मरि गेलौ ।हम तोहर संग देलियै किए तँ तखन कर्ज मुक्त छलियै, मुदा... आब हमरापर सेनूरक कर्ज अछि ।मनोज हमरा अनमोल सेनूर देलनि ।हम अपन प्राणो दऽ कऽ एकर कर्ज नै चुका सकै छीयै, ओकर प्राण लेनाइ दूर कए बात छै ।"

अमित मिश्र

Sunday, November 3, 2013

दिवाली

164. दिवाली

दूइये दिन बाद दिवाली छै ।गाम-घरमे सफाइ अभियान चरमपर छै, मुदा लक्ष्मी देवीक घर झोल लागले छै ।घरसँ सिलाइ मशीनक खट-खट स्वर बहरा रहल अछि ।ई देख लक्ष्मीक पड़ोसी आ प्रिय सहेली गौड़ी लक्ष्मी लऽग एली ।कपड़ा सीबैत देख बाजली "यै लक्ष्मी बहिन, अहाँ एखन धरि एतबेमे बाझल छी ।यै दिवालीक तैयारी नै करबै की ?"
गौड़ीक बात सूनि लक्ष्मी सीनाइ छोड़ि कऽ बाजल "हम कथिक तैयारी करब !अहाँकें तँ बुझले अछि ने जे हमर दिवाली इएह थिक ।हम तँ घऽर-तऽर साफ कऽ, दीप-तीप बारि कऽ तहिये दिवाली मनेबै जहिया हमरा बेटा सुधरि जाएत । "
"मुदा, ओकरा तँ दारू-गाजा-जुआक लत कहियो नै छुटऽ बाला अछि ।"ई कहि गौड़ी जेना घाउपर नोन छीट देने होइ, लक्ष्म छिलमिला उठल फेर सम्हरैत बाजल "तखन अहीं कहू कोना दिवाली मनाबियै ?कपड़ा सीब कऽ अपन पेट भरिते नै अछि, दीपक पेट तेलसँ कोना भरियै ?यै बहिन हमरा विश्वास अछि जे हमरो बेटा सुधरत, कमाएत आ हमरो घर दिवाली मनाएल जेतै..." बाजिते-बाजिते लक्ष्मीक आँखिसँ दू ठोप नोर खसि पड़ल ।

*दिवालीक हार्दिक शुभकामनाक संग हम
अमित मिश्र *

Saturday, November 2, 2013

दीप

163. दीप

एकटा बूढ़ कुम्हार शहरक अतिव्यस्त बाटपर ठाढ़ छल ।माँथपर छीट्टा छलै जाहिमे नीक नीक कलाकृतिसँ सजल दीप राखल छलै ।छीट्टाक बोझसँ वा उमरक प्रभावसँ ओकर डाँर झूकि गेल छलै ।गाड़ीकेँ रुकैत देख ओ झट दऽ ओकरा लऽग पहुँचि जाइ "सरकार, दिवाली लेल सुन्दर-सुन्दर दीप अछि ।मात्र दूइये टाका...एक्को टा कीन लिअ...भोरसँ एक्को टा नै बिकाएल ...भुखले छी...छूट देब...एगो कीन लिअ... ।"
सब बेर ओ एते बाजै आ सब बेर गाड़ी बला ओकरा फटकारि दै "रै बुड़बक ।आज के युग में दीप-बीप नहीं चलता है ।अब तो एक-से-एक मरकरी आ गया है ।जाओ रश्ता नापो ।समय खोटी मत करो ।" एते कहि गाड़ी बला फट दऽ गेट बन्द कऽ लै ।साँझमे चोकीदार अपन हिस्सा लेबाक लेल आबि गेलै ।ओकरा देख कुम्हार बाजल "बाबू जी ।आइ नै दऽ सकब ।पिछला चारि दिनसँ किछु आमदनी नै भेल ।कने किछु खुआ दिअ हमरा । पता नै अहाँकेँ अझुका हफ्दा दऽ सकब की नै, कारण जे हमरो जीवन तँ बिनु तेलक दीपे सन अछि ।जानि नै कते दिन धरि जरि सकत ।"

अमित मिश्र

Wednesday, October 30, 2013

जीउलाह

162. जीउलाह

कम्पनीमे छुट्टी भेलाक बाद वरिय कलर्क राघो बाबू अपन केबिनसँ बहरेलनि ।बाहर आबिते सहकर्मी सब संग भऽ गेलनि ।जुनियर कलर्क बिसो बाबू कहलनि "चलू राखो बाबू आइ पार्टी भऽ जाए ।"
"कतऽ जेबै आ कथीक पार्टी ?" राघो बाबू कथा बुझबाक प्रयास करैत कहलनि ।
बिसो बाबू फरिछाबैत कहलनि "अरे बेसी चाट-पकौड़ी, दू-चारि पीठ मिठाई आ चाह ।सुनलियै हें जे नाकापर बला दोकानमे बड नीक बनबै छै ।"
राघो बाबूक मुँह लटकि गेलनि ।लागै जे किओ बनल-बनाएल काजपर पानि ढारि देने होइ । नकारात्मक उत्तर सूनि बिसो बाबू पोल्हबैत कहलनि "एना किए मना करैत छी ?एँ यौ नेनपनमे तँ अहाँ एकर प्रेमी छलियै ।नीक चीज तँ खोजिते रहैत छलियै ।अहाँ एहन जीउलाह आदमी चाट-पकोड़ीकेँ कोना मना कऽ सकै छै !"
"यौ भाइ, पहिने हम एसगर रहियै तँ जीउलाह बननाइ भारी नै छलै मुदा आब . . .आब तँ जिम्मेदारी माँथपर छै । अपने नीक-नीकुत खेबै की बेटा-बाटीकेँ खुएबै ?" ई कहि डेरा दिस चलि देलनि ।

अमित मिश्र

Tuesday, October 22, 2013

जिम्मेदारी

161. जिम्मेदारी

"हे कने बाँहिमे तँ आउ ।"
"दुर जाउ ।अहाँकेँ केहनो लागैत नै अछि जे जखने-तखने शुरू भऽ जाइ छी..."
"... आ अहाँक पड़ाइत रहै छी ।हे यै अहाँ हमर कनियाँ छी, मुदा देखियौ तँ हमरे कुकुर, हमरेपर झाँउ-झाँउ !"
"और नै तँ की !अहाँकेँ किछु लागैत अछि ?आब बौआक जिम्मेदारी माँथपर छै ।अहाँपर धियान देलासँ वर्तमान सुधरत मुदा बौआपर धियान देलासँ अपना दुनू प्राणीक भविष्य सुधरत ।"
"हँ, से तँ अछि ।ठीक छै जाउ, बौआकेँ देखियौ गऽ ।"

अमित मिश्र

Monday, October 21, 2013

फाटल पन्ना

160. फाटल पन्ना

"हे अहाँक बारेमे बड सूनि रहल छी ।अपन जुआन पत्निकेँ छोड़ि दोसर संग...ई सब नीक नै भेल ।"सुनीता अपन पति सुकेशकेँ उपराग दैत कहलनि ।ई सुनिते सुकेश तामसे लह-लह करऽ लागल "हम कमाइ छी ।हम जे करी ओइसँ अहाँकेँ की ?" बात बिगड़ैत चलि गेल ।रिश्तामे खटास बढ़ैत-बढ़ैत तलाक धरि पहुँचि गेलै ।आब सुकेश अपन प्रेमिका संग रहऽ लागल ।
" यै मृगनैनी अहाँ एतेक टाका बेकारमे व्यर्थ करैत छी ।बुझू तँ काल्हिये हार किनलौं आ फेर आइये... "सुकेश अपन प्रेमिकाकेँ कने दबारैत कहलक ।ई सुनिते प्रेमिका सुकेशपर टूटि पड़ल "एना जुनि बाजल कर ।तूँ हमरा आनलें हम अपना मोने थोड़े एलियौ ।" झगड़ा बढ़ि गेल ।बाता-बातीक बीचमे एक-दू थप्पर सुकेशकेँ लागियो गेलै ।राति भरि सूति नै सकल ।सुकेशकेँ लागऽ लागलै जे सुनीताकेँ जिनगीसँ दूर भेलासँ ओकर जिनगीक सबसँ सुन्नर पन्ना फाटि गेल छै ।

अमित मिश्र

Sunday, October 20, 2013

आगि

159. आगि

- "ब्रह्मदेव भाइ एकटा बात सुनलहो ?रमेशबा माए-बापकेँ छोड़ि कऽ पड़ा गेलै ।"
- "हँ हौ खेखन भाइ, बात तँ हमरो कान धरि आएल छलअ...सुनलियै जे कोनो छौड़ीकेँ संगे लऽ गेलैए ।"
- "बुझहो तऽ, जे छौड़ा मूड़ी गोंति कऽ चलै छलै से एहन काज केलकै ।"
- "अनर्थ कऽ देलकै छौड़ा ।बाभन भऽ कऽ चमाइनक संग पड़ेलै ! एँ हौ पिरथी भाइ...एते तागत कोना आबि गेलै रमेशबामे ?"
- "हे हौ खेखन तूँहूँ बुड़बके बला गप करै छहो ।छौड़ाक देहमे आगि लागल छलै...प्रेमक आगि...ई आगि जाति-पाति थोड़े देखै छै । ई आगि सबटा बन्हकेँ जड़ा दै छै... ई तँ खूनक सम्बन्धोकेँ सुड्डाह कऽ दैत छै ।बुझलहो ने...हँ ।"

अमित मिश्र

Saturday, October 19, 2013

चक्कर

158. चक्कर

"रौ छौड़ा देखै की छहीं अल्हुआ ?अरे मैगियाक नाक-कानमे जे चमकौआ सोना छै से झीक ले...अरे मरदाबाकेँ छोड़िहें नै...रासा लऽ कऽ बान्ह ।" पिपरक गाछ तरसँ पूर्वमुखिया जी शेर जकाँ चिकरैत बाजलनि ।चेला सब आदेशक पालन केलक ।महिलाक नाक-कान शोणित चुआबऽ लागल ।
"सार मरदाबा अपने विधवा भाउज संग चक्कर चलबैत अछि... आ थू" पूर्वसरपंचक मूँहसँ निकलल एक लोइया थूक घासपर पसरि गेल ।ओ ठोर टेढ़ करैत बाजलनि "रौ दुनूकेँ कहीं एकरा चाटै लेल...तखने प्रायश्चित हेतै ।" मरद कहैत रहल जे ओ हमर माए सन छथि मुदा... चेला सब आदेशक पालन करैत जबरदस्ती दुनूसँ थूक चटबेलक ।पंचायत समाप्त भेल ।पूर्व सरपंज आ मुखियाक जय जयकार हुअ लागल ।"आइ-काल्हि तँ चक्कर चलबै बलाकेँ मारि देल जाइ छै ।धन्य नेता जी जे जान बचा देलखिन ।"
मुदा...मुदा दुनू देउर-भाउजकेँ ई अपमान सहन नै भेलै ।दुनू रातिमे फसरी लगा लेलक ।लोकक शक विश्वासमे बदलि गेलै ।आब एकरा दुनूमे चक्कर छलै वा नै, मुदा अगिला चुनावमे दुनू नेताक चक्कर जरूर चलि गेलै ।

अमित मिश्र

Saturday, October 12, 2013

छागर

157. छागर

एकटा गाय आ एकटा पाठी एक्कै खुट्टापर बान्हल छलै ।पाठीकेँ नहाएल जा रहल छलै ।ई देखि गाय पुछलकै "भाइ ई की भऽ रहल छै ?"
पाठी कहलकै "हमर दीर्घ यात्राक ओरियान भऽ रहल छै ।"
"अच्छए भाइ एक बात बता, एते दिन लोक तोरा खस्सी आ पाठी कहै छलौ मुदा आइ तोहर नव नाम सूनि रहल छियौ 'छागर'...से किए ?"
"नै बुझलहीं बहिन, एते दिन धरि मनुखक नामे कटि कऽ मनुखक पेट भरै छलियै आ आइ मनुख देवताक बहन्ना बना कऽ काटत तेँ ई विशेष नाम देल गेल छै...बहिन,एक टा बात बड सतबै छै ...भगवतीक चरणमे मरनाइ तँ पुण्येक गप भेलै मुदा हमरा अपन भोजन बनबै लेल देवी कहाँ आबै छथिन्ह...हमरा तँ सब दिन जकाँ मनुखे खाइत छै तखन एते ताम-झामक कोन प्रयोजन ?"छागरक दुनू नैनसँ गंगा-यमुना बहऽ लागल छलै ।ओ अपनाकेँ सम्हारैत आगू बाजल "बहिन, राक्षस तँ पापी छल तेँ ओकर संहार कऽ भक्षण कएल गेल...मुदा हम ककरा कोन कष्ट देलियै जे हमरा राक्षसे जकाँ काटल जाइत अछि ।बहित एकटा बात सन्तोष दैत अछि जे देवीक नजरिमे सब बराबर छै ।आइ जे हमर प्राण लेत काल्हि ओकरा देवी नै छोड़थिन... ।"छागर बाजिते छल तखने ओकर मालीक ओकर डोरी पकड़ि बलि-वेदी दिस चलि देलक ।

अमित मिश्र

अधिकार

महानगरमे, आजुक समयानुसार एकल परिवार। सभ अपना अपनामे। एक भाँइ कतौ तँ दोसर कतौ। बाबू गाममे तँ माए किनको एक भाँइ लग। एहने परिवेश आ मकड़जालमे ओझराएल परिवारक एकटा माए अप्पन बेटासँ, ई की नी० (नी० माएक पोती) काल्हिसँ अस्पतालमे भर्ती छै आ तू सभ हमरा कहबोसँ गेलअ।
बेटा चुप्प, माए आगू, बूझलीऐ आबैक पुरसैत केकरो लग नहि छैक, कनी एकटा फ़ोनो तँ करबा चाही
बेटा, की कहितीयै ? कोनो तरहक सुख तँ हम अहाँ सबहक जीवनमे कहियो दऽ नहि पएलहुँ, दुख कहि अहाँ सबहक मोनकेँ दुखी करैक हमरा कोन अधिकार अछि।  

Thursday, October 10, 2013

जनी जाति

156. जनी-जाति

"अहाँ जे एना मूँह फुलेने छी से नीक बात नै ।जनी-जातिकेँ एतेक गुमान नीक नै लागैत छै ।"पति अपन रूसल पत्नीपर खौंझ कऽ कहलक ।
पत्नी चोट्टहि उत्तर देलक "एना जुनि बाजू ।नारी मने की ? खाली गारि-मारि सहैत रहू ।हमहूँ एहि समाजक छी ।हमरो सब किछुक करबाक अधिकार अछि ।हमर मरजी, हम रूसी वा कानी ।"
"आहि रे बा !समाजक चर्चो करैत छी आ समाजकेँ चिन्हितो नै छी ।एँ यै बूझल नै अछि जे ई समाज पुरूष प्रधान अछि नारी प्रधान नै ।"
"जाउ जाउ, हमरा बेसी समाजक परिभाषा नै सिखाउ ।जँ पुरूखे प्रधान छै तखन नारीक जरूरत किए पड़ै छै ?बच्चा जनमाबी हम, घर सम्हारी हम, गारि-मारि सही हम, आ प्रधान बनत पुरूक !हे आब ई सब चलै बला नै अछि ।"पत्नीक तमसाएल मुँह देख पति अपना आपकेँ डेराएल सन अनुभव केलनि ।"यौ आब मौगीए सब कामा कऽ पुरूखक पालन करै छै, पुरूखक संग डेग मिलबैत अछि ।यौ आब समाजमे जनी नामक कोनो जाति बचले नै अछि ।आब एक्कै जाति अछि, मनुखक जाति ।बुझलौं ने ?"
पत्नीक तर्क सूनि पति सन्ट भऽ गेलथि ।

अमित मिश्र

Tuesday, October 8, 2013

अनमोल झा जीक विहनि कथा संग्रह “टेकनोलजी”क समीक्षा, समीक्षक – जगदानन्द झा ‘मनु’

मिथिला संस्कृतिक परिषद, कोलकत्ता द्वारा प्रकाशित श्री अनमोल झा जीक लघुकथा संग्रह टेकनोलजी एखन हमरा हाथेमे अछि। पाँछाक तीन दिनसँ लगातार एकरा पढ़ि रहल छी। सुन्नर कवर पेंजसँ सजल तेहने भीतरक कथा सभ एकसँ एक उपरा उपरी।
सबसँ पहिने अनमोल जीकेँ एहि --- कथा संग्रह हेतु बहुत बहुत बधाइ आ संगे संग मंगल कामना जे मैथिली साहित्यमे दिनो दिन ओ शुक्ल पक्षक चाँन जकाँ उदयमान होइत रहथि।
मिथिलांचल टुडे टीमक तरफसँ हमरा एहि पोथीक समीक्षा केर दायित्व भेटल। हमरा लेल ई कठिन काज आ ओहूसँ बेसी कष्टकर छल बिना कोनो पक्ष बिपक्षमे गेने तटस्थ एहि पुस्तककेँ समीक्षा केनाइ। हमरामे कौशल आ शहास दुनूक अभाब मुदा माँ सरोस्वती आ गुरुदेवकेँ सुमिरैत अपन आँखिकेँ पोथीक पन्नापर आ कलमकेँ कागदपर चलबए लगलहुँ।
अनमोल जीक समर्पण देख मोन गदगद भए गेल। जतए आजुक नव पीढ़ी अपन माए बाबूकेँ बोझ बुझि रहल अछि ओहिठाम अनमोल जीक ई पोथी हुनक पूज्य बाबूजीक श्रीचरण कमलमे समर्पित अछि। नवका पीढ़ी लेल ई एकटा नव रस्ता काएम करत।
आगू पोथी पढ़ैसँ पहिने एकटा बात मोनकेँ कचोटलक, जे अनमोल जीक एहिसँ पहिने दूटा विहनि कथा संग्रह प्रकाशित भए चुकल अछि। हुनक नाम मैथिली साहित्यमे एकटा स्थापित विहनि कथाकारकेँ रूपमें लेल जा रहल अछि तकर बादो ओ अपन एहि नव विहनि कथा संग्रहकेँ, विहनि कथा संग्रह नहि कहि लघु कथा संग्रह कहि रहल छथि। जखन की आइ विहनि कथा एकटा स्थापित विधाकेँ रूपमे मैथिली साहित्यमे स्थापित भए चुकल अछि। विहनि कथा आब कोनो तरहक परिचय लेल मोहताज नहि अछि। श्री जगदीश प्रसाद मंडलजी अपन विहनि कथा संग्रहपर टैगौर पुरस्कार जीत कए दुनियाँक बड़का-बड़का भाषाकेँ एहि दिस सोचै लेल बिबस कए देलखिन्ह। अंग्रेजी एकरा  "सीड स्टोरी" कहि सम्बोधित केलक। हिंदी अंग्रेजीमे जकर कोनो स्थान नहि ओहेन एकटा नव बिधाक अग्रज मैथिली साहित्य आ ओ बिधा, विहनि कथा
विहनि कथा आ लघु कथामे बहुत फराक अछि। विहनि अर्थात बिया। बिया वटवृक्षकेँ सेहो भऽ सकैए आ सागक सेहो। तेनाहिते मोनक बिचारक बिया जे कोनो आकारमे फूटि सकैए, विहनि कथा। विहनि, बिया, सीडमे सँ केहन गाछ पुट्टै कोनो आकारक सीमा नहि। लघु कथा मने एकटा छोट कथा जेकर आरम्भ आ अन्त दुनू छैक।
अनमोल झा जीक एहि संग्रहक एक एकटा कथा जबरदस्त विहनि कथा अछि। तहन लघु कथाक जामा किएक ? हाँ, किछु गोट लघु कथाक श्रेणीक कथा सेहो अछि मुदा अल्प मात्रामे, जेना पृष्ट संख्या ७६ पर बढ़ैत चलू, ७९ पर समाज, ८० पर मर्माहत, ८२ पर सपूत सब, ८३ पर शोध, ८५ पर प्रायश्चित, ९० पर बड़का लोक, ९५ पर समय समय केर बात आ पृष्ट संख्या १०१ पर अप्पन जकाँ"। पृष्ट संख्या ८८ पर मिथिला राज्यक तँ नहि विहनि कथा अछि आ नहि लघु कथा, एहिपर जँ कनीक आओर मेहनत कएल गेल रहथि तँ एकटा नीक आलेख अवश्य भए सकैत छल।
प्रकाशक, मिथिला सांस्कृतिक परिषद, कोलकत्ता केर मन्त्री श्री गंगाधर झाजी अपन प्रकाशकीयमे लघु कथा"केँ एकटा नवीन विधा कहि सम्बोधित कए रहल छथि, एहिठाम जँ ओ विहनि कथा कहितथि तँ साइद उचितो रहितए मुदा लघु कथा आ नवीन विधा हास्यपद। हम एहि कथा संग्रहक कथाकेँ आँगाक  उल्लेखमे विहनि कथा कहि सम्बोधित करब।
टेकनोलजी विहनि कथा संग्रह रूपी मालामे कुल १५५ गोट विहनि कथा गाँथल गेल अछि। संग्रहक पहिले विहनि कथा टेकनोलजी एकरे नामपर संग्रहक नामकरण भेल अछि। अनुपम विहनि कथा, विहनि कथाक सबटा गुण कुटि-कुटि कए भरल अछि। जतेक प्रसंशा करी कम। एहि विहनिमे, कोना एकटा परदेशीया पुतहु अपन ससुरकेँ मात्र एहि द्वारे पाइ पठाबैक इक्षा रखैत छथि, जाहिसँ समाजमे हुनक नाम होइन। एहि द्वारे ओ नव टेकनोलजी बैंकिंगकेँ छोरि मनीआडर द्वारा पाइ पठबै छथि।
टेकनोलजी नाम धरी ई विहनि कथा संग्रह नामक भ्रम उत्पन्य कए रहल अछि। पहिल नजरिमे टेकनोलजी नामसँ एना बुझा रहल अछि जे विज्ञान, टेकनोलजी आदिसँ सम्बंधित विषय बस्तु होएत मुदा एहन कोनो गप्प नहि। समस्त पोथीमे एकसँ एक नीक, रुचिगर विहनि कथा अछि मुदा टेकनोलजी, विज्ञान, तकनीकीसँ सम्बंधित एकौटा नहि।
विहनि कथाक मुख्य अंग संबाद अछि आ अनमोल जीक विहनि कथा संबादसँ डूबल अछि, जबरदस्त ! मुदा संबाद -------- इनवरटेड कोमामे बन्द कए कऽ नहि लिखल अछि, एकर अभाब सम्पूर्ण पोथीमे अछि।
दोसर कमी जे हमरा सम्पूर्ण पोथीमे, कथासँ प्रकाशकीय तक लागल, विभक्ति। विभक्ति अप्पन पहिलुका आखरसँ हटा कए लिखल अछि जाहि कारण कतौ कतौ अर्थकेँ फरिछौंतमे असमंजसकेँ स्थिति उत्पन्न भऽ रहल अछि।
पृष्ट १३ पर लिखल विहनि कथा टेकनोलजी आ २७ पर लिखल लोक बुझाउन दुनू एक्के सन कथा थिक मात्र नामेटा बदलल अछि।
एहि संग्रहमे कोनो एहन पक्ष नहि जाहिपर अनमोल जीक कलम नहि चलल होइन। मनक भावसँ समाजकेँ बिडम्बना धरि, अन्तरंग अम्बन्धसँ हँसी ठठा धरि सभ पक्षक उचित स्थान देल गेल अछि। पृष्ट ३३ पर ड्यूटी, ३८ पर चिन्ता (एक), ३९ पर बेटा बेटी, ४३ पर दुख, ४५ पर खोराकी, ४६ पर गोहारि, ५८ पर भीख, ६० पर मोनमे, ९८पर अन्हरजाली, १०१ पर अप्पन जकाँ, १०३पर मनुक्ख के कुकुर के, मनकेँ छुबैत करेजाकेँ मोम जकाँ गला कए आँखिक रस्तासँ  बाहर आबैक पर मजबूर कए कऽ मोनक कोनो कोनामे एकटा टीस छोरि दै छैक। ओतए पृष्ट संख्या ३२ पर एकदम ठीक आ ३७ पर टास्क  समाजक कुप्रथाकेँ देखार कए रहल अछि।
पृष्ट ३४ पर सुरक्षित (एक)”, ४० पर मन्त्र, ७७ पर आन्हर, आ ८७ पर व्यवस्था, आजुक राजनीति आ व्यवस्थापर प्रहार करैत उत्तम विहनि कथा अछि। तँ दोसर दिस पृष्ट ३५ पर जागरण, ४२ पर चेतना(एक), ४६ पर विज्ञान, आजुक जागरूक लोकक सत्य विहनि थिक। बाल मोनकेँ कागदपर उतारैत अनमोल जी एहि पोथीक पृष्ट ६५ पर प्रश्न (दू), आ ६९ पर चिन्तित, वास्तबमे मोनकेँ चिन्तामे झोँकैक लेल प्रयाप्त अछि। ओतए ६३ पर उत्तर आ ७१ पर भरमकेँ सवाल जबाव एहन अछि जेना शेरपर सबा शेर। सम्बन्धकेँ उजागर करैत पृष्ट ४८ पर बुद्धू, ६७ पर महक, आ ८१ पर श्रधा अछि तँ ३६ पर सअख आ ६० पर लिखल युद्ध पढ़ि हँसीसँ मुँह मुनेबे नहि करत। 

कनीक साहित्यक पक्षकेँ छोरिदि तँ कुल मिला कऽ नीक विहनि कथा संग्रह। पाठकक मोनमे शिक्षा संगे संग जिज्ञासा आ रूचि जगबैमे पूर्ण सफल। एक बेर किनको हाथमे ई पोथी आइब गेल तँ बिना पूरा पढ़ने चेन नहि

खैरातमे खून

155. खैरातमे खून

"हौ सुनलो...कल्याण भऽ गेलऽ सब गोटाकेँ ...जकर-जकर माल-जाल, घर-दुआरि भासि गेलै ओकरा सरकार 5 लाख टाका खैरातमे देतै...ओतेमे तँ हमर भागे सुधरि जेतै ।" राघो काका रोडियो हाथमे मचानसँ चिचिया रहल छलथि मुदा बाढ़िक पानिक गर्जन हुनक सुखाएल कण्डसँ निककल स्वरक मर्दन कऽ रहल छल ।बाढ़ि गेलै ।लोक सरकारी दफ्तरक चक्कर लगाबऽ लागल ।राघो काकाक पूरा परिवार भासि गेल छलै ।बेचारे एसगरे जिलामे जाथि ।सब ठाम अश्वासन तँ झोरा भरि-भरि भेटै मुदा टाकाक दरश नै भेटै ।राघो काका दफ्तरक आगू जमि गेलथि ।कोनो अफसर देखबो नै केलकै ।रसे-रसे कमजोरी बढ़ैत गेलै ।एक राति हुनक हिम्मत टूटि गेलै आ ओ अपन परिवारक लऽग चलि गेलथि ।भोरमे लोक देखलकै जे हुनक लहाशक चारू कात चारि-पाँच टा कुकुर टहलि रहल छल ।

अमित मिश्र

नवतुरिया

154. नवतुरिया

एक बेर फूल आ फूलक गाछमे बकझक भऽ गेलै ।फूल आन्दोलन ठाढ़ कऽ देलक "नै...आब जुलुम नै सहबौ ।आब हम नै मौलेबौ ।"
गाछ शान्त करैत बाजल "एना किए बाजै छें ।तोरा कोन दिक्कत होइ छौ ?तूँ तँ हमर अंग छें ।तोरा तँ प्रेमसँ मौलेबाक चाही ।"
"अरे वाह रे वाह !हम हिनक अंग छी! हमरे सुगंधक कारण लोक तोरा पूछै छौ आ तूँ हमरे मौलाइ लेल कहैत छें ।" फूल आक्रोशित होइत बाजल ।
गाछ ओकरा बुझबैत बाजल "देख दुनियाँ परिवर्तनक पर्याय छैक । जा धरि तूँ नै मौलेबें ता धरि नव फूलक जनम नै हेतै ।"
फूल क्रोधे थरथराए लागल "तैसँ हमरा कोनो मतलब नै ।नवतुरियाकेँ हम कोनो रोकने छियै, आबौ ने...मुदा हम रहबे करबै ।"
"एतेक जिद जुनि कर ।समाजमे देखै नै छहीं बुढ़बा-बुढ़ियाकेँ कतेक गंजन होइत छैक ।पुरनका सब सबटा अधिकार अपने लऽग राखऽ चाहै छै आ नवतुरिया अपना लऽग चाहै छें ।बूढ़-पुरानकेँ किछु बरदाश्त नै होइ छैक आ नवकाक खूनक गरमी लऽग हारि कऽ मारि खाइ छैक । ऐसँ बढ़ियाँ जे अपन इज्जत बचा कऽ नवतुरिया लेल स्थान खाली कऽ दी ।"
गाछक बात सूनि फूल सब बात समझि गेल आ दोसरे दिन मौला कऽ गाछसँ खसि पड़ल ।

अमित मिश्र

Friday, October 4, 2013

सुइया भोंकि रहल

153. सुइया भोंकि रहल

"हे...हे...सुनलियै यौ...जुलुम भऽ गेलै...छोपि देलकै...बाप रे बाप...रमचनराक घेंटि छोपि देलकै ..."
"एँ यौ कतऽ, के घेंटि काटि देलकै ?"
"सरबनमा बढ़मोतरमे मसोमात बला खेतक आरिपर रमचनराक घेंटि काटि देलकै ।" जंगलक आगि जकाँ कानोकान भरि गाममे ई घटना पसरि गेल ।लोकक हुजुम बढ़मोतर दिस दौड़ पड़ल ।एक्कै आरिमे रामचन्द्र आ सरबनक आरि छलै ।बाप रे बाप !बड विभत्स दृश्य छल ।रामचन्द्रक खेतमे रामचन्द्रक धर पड़ल छल आ सरबनक खेतमे जीउ आ आँखि निकालने सिर पड़ल छलै ।आरिपर पड़ल कटल गर्दनसँ शोणितक गंगा-यमुना बहैत छल ।बगलेमे खूनसँ नहाएल कोदारि पड़ल छलै ।किछु लोक सरबनकेँ कसि कऽ पड़ने छल ।ओ चिचिया रहल छल "एक्कै आरिक खेतमे एते जुलुम भेलै यै ! सार रमचन्द्रक खेतमे मोनक मोन धान आ हमरामे खाली खखरी...साला अपन खेतसँ माँटि कटबा कऽ खत्ता कऽ लेलकै ।हमर खेतक पानि ओकरा खेतमे जतै ! ले ने सारकेँ उठाइये देलियै ।हमर बापे बैमान छलै जे नीक खेत ओकरा देलकै ।ओकर खेतक हरियरी हमरा सुइया भोंकि रहल छल । आब लैत रहौ मोनक-मोन धान ।"
सब सोचि रहल छल जे अपन दोष देखने बिना लोकक अरारि एतेक पैघ घटना घटा सकै छै ।

अमित मिश्र

Tuesday, October 1, 2013

गंगाजल

152. गंगाजल

शोभन राम ट्युशन पढ़ेबाक काज करैत छलथि ।पंडित सीताराम झा शोभनक योग्यता देख अपन बेटा-बेटीकेँ पढ़बैक लेल शोभनकेँ बजेलनि ।हवेलीक बाहर बनल एकचारीमे पठन-पाठन शुरू भऽ गेल ।एक दिन कोनो बातसँ तमसा कऽ गुरू जी पंडित जीक बेटाकेँ एक थापर लगा देलनि ।थापर लागिते पंडित जीक बेटा शोभनपर चिकरैत बाजल "हौ तूँ हमरा छुअल नै करऽ , हमरा गंगा जलसँ नहाय पड़त ।एकटा बात और हमरापर हाथ नै उठाएल करऽ । एक मिनटमे जेल पठबा देबऽ ।तोरासँ बेसी मातबर छी हम ।बुझलहक ने ?"
छोट नेनाक बात सूनि शोभन सोचमे पड़ि गेल छल 'आखिर पाँच बरखक अवोध नेनाकेँ अमीरी-गरीबी, जाति-पातिक पाठ के पढ़लकै ?गंगामे तँ हमहूँ नहाइत छी तखन हम अछूत कोना ?' शोभन सोचिते छल तखने पंडिजीक बेटा गंगाजलक डिब्बा हाथमे लेने घरसँ बाहराएल ।

अमित मिश्र

Sunday, September 29, 2013

गारि

151. गारि

वातावरणमे शहनाईक मधुर स्वर कंपित भऽ रहल छल ।आँगनमे नव कनियाँकेँ ससुर द्वारा साड़ी, गहना देल जा रहल छल ।तखने लड़ाकक भाएकेँ निशाना बनबैत लड़कीक बहिन गारि युक्त गीत गेनाइ शुरू केलक "मुँहझौंसा भैंसूर एखनेसँ आँखि किए मारै छै
बहसल माएक बेटा बापेकेँ गरियाबै छै..."एकर आगूक पाँति तेहन छल जे सुननाइयो पाप बुझाएत ।एते सूनिते लड़काक जेठ भाइ पिनकि गेल "एँ यै अहाँक लाज-धाख नै अछि ।माए-बापक आगू बिख्खिन-बिख्खिन गारि पढ़ै छी. . .डोबरीमे डूबि नै जा होइये ?"
प्रश्न सूनि लड़कीयो पक्ष तावमे आबि गेल ।लड़कीक माए बाजली "यौ पाहुन एते पिनकै किए छी ?ई तँ परम्परा अछि ।एतुका अशीर्वादी बूझि लिअ ।"
सारि सब बाजल "ई बुझू जे खाली छोटका गारि पढ़ैलौं ।हमरा तँ बड़को आबैत अछि ।हे लिअ . . .चंडलबा भैंसूर बहिने संग सू . . ."
"चुप . . .एकदम चुप भऽ जो ।"लड़का वेदीसँ उठि गेल आ गेठी खोलैत तमासे थरथराइत बाजल"जकर छोट बहिन एते निर्लज्ज हेतै ओकर बड़कीयो तँ तेहने हेतै ।तूँ सब भाइ बहिनक पवित्र रिश्तापर करिखा पोति देलें ।हम वियाहसँ एखने मुक्त होबऽ चाहैत छी । . . .एहने बज्जर सन बोल चलते तोहर सभक इज्जत घटैत-घटैत एक दिन लुटा जाइ छौ ।परम्पराकेँ तूँ सब अधर्मक ठिकाना बना लेने छें ।मैथिलक गारि तखने धरि नीक लागैत छै जखन धरि ओ अश्लीलताक बान्ह नै तोड़ै छै . . .हम जाइ छी ...अपन बहिनक सींथ पखारि अपने हाथे सिनूरा दिहें ।"एते कहि लड़का गेठी खोलि आँगनसँ बाहर निकलि गेल ।घरबैया पाथरक मूर्ती जकाँ कींकर्तव्यविमूढ ठाढ़ रहि गेलाह ।

अमित मिश्र

Friday, September 27, 2013

जनता लेल

150. जनता लेल

"बाप रे बाप, आब ऐ गाममे रहनाइ कठिन छै ।यौ मुखिया जी आब किछु करियौ ।डेगे डेगे दारूक दोकान नाकमे दम कऽ देलक अछि ।" गौआँक बाद सूनि मुखिया जीक माँथपर चिन्ता चेन्ह झलकि उठल ।"अहाँ सब ठीके कहै छी ।जनी-जातिकेँ बाहर निकलनाइ मोसकिल भऽ गेल अछि ।अहाँ सब निश्चिन्त रहू ।परसू एकर मंत्रीसँ बात करबै ।" मुखियाक बात सूनि सब घर चलि गेल ।
कते पैरवी लगेलाक बाद मंत्रीसँ भेंट करबाक अवसर भेटलनि ।मंत्री जीक आगूमे दारूक बोतल पसरल छल आ हुनक सेक्रेटरी कामुक अंदाजमे दारू परसि रहल छल ।मुखिया जी मंत्रीक अभिवादन करैत कहलनि "मंत्री जी गाममे दारूक दोकान बढ़ि गेल अछि ।एहिसँ जनताकेँ दिक्कत होइ छै तेँ सबटा दोकान बन्द करबा दियौ ।भरि प्रखण्डमे मात्र एकटा दोकान खोलबाक आदेश दऽ जनतापर रहम करियौ ।"एते कहैत-कहैत दुनू हाथ जोड़ि ठाढ़ भऽ गेलनि मुखिया जी ।गीलासक दारू पीलाक बाद एक बक्कुटा काजू मुँहमे ठुसलक मंत्री आ बाजल " ई क्या बोल रहा है वे !साला बुढ़ा होते हीं सठिया गया है ।ई क्या तब से जनता-जनता लगा रखा है ।आबे तेरे को पता नहीं है, ये सब जनता के लिए हीं खोलबाये हैं ।" मुखिया जीक समझमे किछु नै एलनि ।मंत्री बजनाइ चालू राखलक "अबे जितना ज्यादा दारू बिकेगा उतना ज्यादा टैक्स आयेगा ।जितना ज्यादा टैक्स होगा उतना ज्यादा खर्चा तेरे जनता के सुविधा के लिए कर सकते हैं ।समझा ना ?अब फुट यहाँ से ।अभी तो और दुकान खुलेगा जनता के लिए ।"
मंत्रीक समीकरण सूनि मुखिया जी अवाक् रहि गेलाह ।सोचि रहल छलाह जे जनता लेल जे हानिकारक छै कोना लाभदायक भऽ जेतै जनता लेल ....?

*अपनेक आशिर्वादसँ आइ 150म विहनि(लघु) कथा लिखलौं ।हमरा संग अहाँकेँ ई यात्रा केहन लागल से जरूर बताएब ।

अमित मिश्र

Wednesday, September 25, 2013

कारण

149. कारण

चारि टा महिला एक्कै ठाम बैसल बतियाइत छल ।एकटा महिला कने बुढ़ छलै ।दोसर जुआने छल ।तेसर चारिम अधवयसु छल ।तेसर महिला बुढ़ियाकेँ पुछलकै "एँ यै अहाँक कए टा ढेनमा-ढेनमी अछि ?"
ओ उत्तर देलकै "भगवानक दयासँ नौ टा बेटी आ सबसँ जेठ एकटा बेटा अछि ।"
बुढ़ियाक बाद सूनि चारिम महिला कहलकै "बाप रे बाप ! अहाँ आदमी छी वा मशीन !दस दस टा बच्चा कोना जनमाएल भेल!"
ई सूनि जुअनकी बाजलै "आहि रे वा, ई कोनो चोरी केलखिन हें ।बेटीक घटैत संख्याँ देख बेटी जनमा कऽ समाजक उपकार केलखिन हें ।"
तेसरकी मुँह बिचकाबैत बाजल "एँ यै अहाँक दिमाग-तिमाग घुसकि गेल अछि ? जखन एकटा बेटा भइये गेल तखन नौ टा बेटी जनमेबाक कोन बेगरता छल ?"
एकर बात सब अपन-अपन तर्क बुढ़ियाँकेँ सुनबऽ लागल ।अन्तमे बुढ़िया सबकेँ चुप करेलक आ बाजल "अहाँ सभक चिन्ता हम दूर कऽ दैत छी ।आजुक बेटाक कोन ठेकान, कखन की करत ? जँ बेटा गंजन करत तँ बेटीक शरण लेब तें बेटी जनमेबाक बेगरता छल । संगहिं एकै टा बेटीपर बोझ नै बनी तेँ नौ टाकेँ जनमेलौं ।बुझलियै ने ?"
बुढ़ियाँक फरिछाएल गणित आ बेटी जनमेबाक कारण सूनि सब अवाक् छल ।

अमित मिश्र

Sunday, September 22, 2013

उतरी

147. उतरी

कस्सम कस डिब्बामे समान राखै बला जगहपर बैसल छलै बुधना ।देहपर मात्र उजरा धोरी आ कान्हसँ डाँर धरि पसरल उजरा उतरी बुधनाक उदास मुँहकेँ बेसी उदास बनबै छलै ।पटनामे रिक्शा चला कऽ कनियाँ संग गुजारा करैत छल ।किछु दिन पहिने कनियाँक मोन खराब भेलै आ काल्हि स्वर्गवासी भऽ गेलै ।गंगाक कोरामे लहास राखि अपन गाम दिश चलि देलकै ।बाटमे सोचि रहल छल जे गाम गेलापर दियाद-बाद श्राद्ध करै लेल कहत, भोज लेल तंग करत, खर्चा कतऽसँ एतै ? ।जँ कर्जो लेबै तँ मालिकक गुलाम बनऽ पड़त ।कोनो जोगार कएल जाइ जाहिसँ मरबात पते नै चलै ।सोचैत-सोचैत घामे-पसीने भऽ गेल ।ट्रेनक खिड़कीसँ देखल जे ट्रेन गंगा नदीक उपर छै ।देखिते उपरसँ नीचा आएल आ उतरी खोली गंगामे फेक देलकै ।हाथ झाड़ि अपन जगहपर बैस रहल ।आब निश्चिन्त छल जे आब ओकरा गुलामी नै करऽ पड़तै ।

अमित मिश्र

Saturday, September 21, 2013

चन्दा असूली

148. चन्दा असूली

गामक गुण्डा सह कथित नेता सब मार मार कऽ दौड़लै हेडमास्टरपर "रौ सार...तूँ चन्दा नै देबहीं !साले एतै भूँइयाँमे गाड़ि देबौ ।"
हेडमास्टर सिरसियाइत बाजल "हम कतऽसँ देब ?नियोजित मास्टरकेँ पाइये नै भेटै छै ।हम नै देब ।"
भीड़ कनफुसकी आ चलि गेलै ।चलैत बेर कहलकै "हिसाब तँ बराबर भैये जेतै ।"
अगिले भोर इस्कूलक नव निर्मित भवनक एकटा देबाल खसि पड़ल छलै ।फेर सब मिल हंगामा करऽ लागल ।बैमानीक आरोप लगबऽ लगलै ।इमानदार हेडमास्टरक माँथ लेजे झूकि गेल छलै ।सब नेता मिल बैसार केलक आ हेडमास्टरकेँ एक लाख टाकाक आर्थिक दण्ड देल गेलै आ कहल गेलै जे दण्डक राशि मंदीरक खातामे जेतै।अपन बचल-खूचल इज्जत बचेबाक लेल आ बात दबेबाक लेल दण्ड स्वीकार कएल गेलै ।भवन निर्माण बला पाइसँ एक लाख दऽ देल गेलै आ भवनक समानमे कटौती कऽ क्षति-पूर्ती कएल गेलै ।अगिले दिनसँ गामक दारू दोकानपर नेता सभक चहल-पहल बढ़ि गेल छलै ।परिसरमे ठाढ़ गुणवत्ताहीन भवन आ नेता एक दोसरक मूँह दूसि रहल छलै ।

अमित मिश्र

Tuesday, September 17, 2013

श्रद्धांजलि

145. श्रद्धांजलि

सुगिया संग भगवानक बेबहार नीक नै रहल अछि ।जुआनि चढ़िते जमीनदारक प्रकोपसँ जुआनि उतरि गेलनि ।इलाका भरिमे बदनाम भऽ गेली ।किओ वियाह करबाक लेल तैयार नै छल ।माए-बाप लेल भरिगर बोझ बनि गेल छली आ गामक लेल कुलटा, कुलछनी, राक्षसनी...जानि नै और कते उपमासँ सुशोभित छली ।थाकि हारि कऽ अपनासँ छोट जातिक दूत्ती बरसँ वियाहि लेलनि ।अपन सम्बन्धीसँ बारल सुगनी माँगि-चाँगि कऽ गुजारा करैत गामक बाहरे खोपड़ि बनेने छलीह ।समय बितैत गेलै ।समयक डाँग फेर लागलै आ बाँझिनक उपमा भेंटि गेलनि ।आइ अस्सी वर्षक बाद खोपड़िक बाहर हँकमैत-खोखसैत बैसल सुगनी अपन अन्त समयक बात सोचैत छलीह "हमरा तँ किओ अछिए नै ।हमरा पाँच काठी के देत? हमर श्राद्ध के करत ?" एहने सन प्रश्न देहमे बचल शक्तिकेँ गिलने जा रहल छल ।सोचिते छलथि की किओ पएर छुलकनि ।ओ उपर देखलनि तँ एकटा युवक ठाढ़ छल ।सुगनी अकबका गेली ।परिचयक बाद पता चलल जे ओ युवक सुगनीक छोट भाएक पोता अछि ।सुगनी हाथ-पएर समेटऽ लागली तँ ओ युवक बाजल "गै दादी, तूँ एना नै कर ।हमहूँ तँ तोरे खानदानक छियौ ।बाबा-परबाबा तोरा बारि देलकौ मुदा हम तँ अपनेबौ ।एँ गै आजुक जमानामे ककरो बारल नै, अपनाएल जाइ छै ।" एते कहि युवक सुगनीक बगलमे बैस रहल ।सुगनीक दुनू आँखिसँ दहो-बहो नोर बहऽ लागल ।ओकरा अपन चितापर पाँच काठी पड़ैत देखाए लागलै ।चितापर जिनगी भरिक दुख आ अपमान धू-धू कऽ जरि रहल छल ।सुगनीकेँ जीबिते सबसँ पैघ श्रद्धांजलि भेंटि गेल छलै ।

अमित मिश्र

Monday, September 16, 2013

इनारक बेंग

142. इनारक बेंग

-आठ हजार टाका ब्याज भेलौ, बिल्टुआ ।दू हजार मूल अलगसँ... ।
-यौ महाजन, ई तँ बड बेसी भेलै !एक वर्षमे चौगुणा ब्याज !
-दुर बुड़ि, इनारक बेंग जकाँ गामे भरिमे जिनगी बितलौ ।कने बाहर जा देखही, कते मँहगी छै ।
-हँ यौ सरकार, हम इनारक बेंग छी तँ अहाँ की छी ?अहाँ तँ घरेमे नुरिआएल रहैत छी तेँ ने विकासक बारेमे पता नै अछि ।दुनियाँ बड तरक्की कऽ गेलै ।आब किओ मुर्ख नै छै जे अहाँ ठकि लेबै ।हमर पोता जोड़ि देलक हेँ ।दू सए ब्याज हएत, काटि लिअ. . . ।

अमित मिश्र

Saturday, September 14, 2013

भगवानकेँ जे नीक लगनि


बाबा भोलेनाथक विशाल मन्दिर। मुख्य शिवलिंग आ समस्त शिव परिवारक भव्य आ सुन्दर मूर्ति। साँझक समय एक-एक कए भक्त सभ अबैत आ बाबाक स्तुति वन्दना करैत जाएत। एकटा चारि बर्खक नेना आबि बाबा दिस धियानसँ देखैत। ताबएतमे एकटा भक्त आबि बाबाक सोंझाँ श्लोक, कर्पुर गौरं करुणावतारं.... सुना कए चलि गेला
दोसर भक्त आबि, नमामी शमसान निर्वा..... सुनाबए लगला। एनाहिते आन आन भक्त सभ सेहो किछु ने किछु मन्त्र श्लोक प्राथनासँ बाबा भोलेनाथकेँ मनाबेएमे लागल। ई सभ देख सुनि ओहि नेनाक वाल मोन सोचए लागल, हम की सुनाबू ? हमरा तँ किछु नहि अबैत अछि ? कोनो बात नहि एलहुँ तँ किछु नहि किछु सुनाएब तँ जरुर।"
ई सोचैत नेना अप्पन दुनू कल जोरि, आँखि मुनि धियानक मुदरामे पढ़ लागल, अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ अं अः क ख ग घ..........
नेनाकेँ ई पढ़ैत देख पुजारी बाबासँ नहि रहल गेलनि। ओ कनीक काल धियानसँ सुनला बाद नेना सँ पूछि बैसला, बौआ ई अ आ किएक पढ़ि रहल छी ?
जकरा देखू किछु ने किछु मन्त्र पढ़ि कए जाइए, हमरा तँ अओर किछु अबिते नहि अछि, तेँ अ आ पढ़ि रहल छी। भगवानकेँ जे नीक लगनि एहिमे सँ छाँति लेता।

मुर्तीकार

144. मुर्तीकार

गाममे प्रतिस्पर्धाक माहौल बनल छल ।सटले-सटले दू टा गुट दुर्गा पूजाक तैयारीमे जुटल छल ।मुर्तीसँ लऽ कऽ पंडाल धरि नीक बनेबाक लेल दुनू गुट मेहनत कऽ रहल छलै ।दुनू एक्कै टा मुर्तीकारकेँ प्रतिमा बनेबाक लेल नियुक्त केने छल आ एक रंग मुर्ती बनेबाक निर्देश देने छल ।जखन मुर्ती बनि कऽ तैयार भऽ गेल तँ दुनू गुट मुर्ती देखबाक लेल पहुँचल ।मुर्ती देखलाक बाद दुनू मुर्तीकारकेँ गंजन करऽ लागल किए तँ दुनू मुर्ती एक दोसरसँ भिन्न छल ।दुनूमे बढ़ियाँ कोन ?ककरो किछु फुराइत नै छलै तेँ दुनू गुटमे झगड़ा शुरू भऽ गेल । ई देख मुर्तीकार बाजल"औ जी, अहाँ सब किए झगड़ैत छी ?सबसँ पैघ मुर्तीकार तँ भगवान छथि ।सब किओ हुनका पूजै छथि तखनो सभक मुँह-कान भिन्न रहैत छै ।दू टा मानव कखनो समान नै होइत छै ।फेर कहू, हमर मुर्ती कोना समान रहितय ।जखन धरि अहाँ सब झगड़ैत रहब, मुर्ती भिन्ने लागत ।झगड़ा छोड़ि दियौ, फेर देखियौ, मुर्तीमे भिन्नता खतम भऽ जाएत ।सब दुर्गे जी देखाइ देताह ।"
दुनू गुट शान्त भऽ गेल छल ।

अमित मिश्र

Friday, September 13, 2013

वाह !वाह !

143. वाह! वाह!

जादोपुर ।बड पिछड़ल गाम छल ।महिलाक बाजब सुननाइ कठिन छल ।महिला घरेमे रहैत छली ।शिक्षाक गाड़ी एखनो ओतऽ धरि नीक जकाँ नै पहुँचल छल ।सर्व शिक्षा अभियान किछु काज केलक, फलस्वरूप शिक्षामे सुधार भऽ रहल छल ।आठ वर्ष बाद गामक चौकपर बैसल छलौं ।भोरका समय छल ।नेना सब इस्कूल जा रहल छल ।एकटा तेरह-चौदह वर्षिय लड़की पीठपर बैग लादने साइकिल हाँकैत जा रहल छल ।तखने चारि टा छौड़ा ओकरा दुनू कातसँ घेर लेलकै आ अपनामे हँसी-मजाख करऽ लागलै ।लड़की तामसे लाल भऽ गेलै ।ओ बाजल" रौ बज्जर खसुआ ।बगलसँ नै जाएल जा होइ छौ ?एक्कै थापरमे होश आबि जेतौ ।" एते कही दुनू दिस पएर मारलक ।चारू छौड़ा साइकिल लेने खसि पड़ल ।महिलाकेँ सशक्त बनैत आ लड़कीक साहस देख हमरा मुँहसँ निकलि गेल" वाह ! वाह !"

अमित मिश्र

Wednesday, September 4, 2013

आँच


जिला अस्पताल। डा० श्रीमती देवी सिंह। पेशेंटकेँ शुक्ष्म परिक्षण कएला बाद परिक्षण कक्षसँ बाहर आबि कुर्सीपर बैसैत, सामने अपन कॉलेजक संगी सुधासँ, ई कि अहाँ तँ कहलहुँ सुटीयाक वर दू वर्ख पहिने मरि गेल छै मुदा ओ तँ तीन महिनाक गर्भसँ अछि।
से कोना ! हमरा तँ ओ कहलक ब्लडींग बेसी भए रहल छै, तेँ हम ओकरा लए कऽ अहाँ लग आबि गेलहुँ नहि तँ हमरा कोन काज छल एहि पापक मोटरीकेँ लए कऽ एतए आबैकेँ
से कोनो नहि, कएखनो-कएखनो कए एना हैत छैक। गर्भ रहला उतरो संजम नहि कएलासँ ब्लडींग बेसी होइत छैक परञ्च पतिकें मुइला बादो ई गर्भ कतएसँ।

से की पता ई पाप कतएसँ पोइस लेलक मुदा ओकरो कि दोख बएसे की भेलैए मात्र बीस वर्खक बएसमे ओकर घरबला छोरि कए परलोक चलि गेलै। एहिठाम पच्चपन वर्खक पुरुखकेँ ब्याहक अधिकार छै मुदा ओहि समाजक लोक बीस वर्खक विधवाकेँ एहि अधिकारसँ बंचित केने अछि आ जखन आँच पजरतै तँ किछु नहि किछु पकबे करतै ओ चाहे रोटी होइ वा हाथ।