Friday, September 28, 2012

विहनि कथा


प्रोग्रेसिभ
                              शर्माजी आ हुनकर कनियाँ पूरा समाजमे प्रोग्रेसिभ कहाबैत छलथि। एकर कारण ई छल जे दूटा बेटीक जन्मक उपरान्त शर्माजी बिना बेटाक लालसा केने फैमिली पलानिंगक आपरेशन करा लेने छलाह आ दूनू बेकती बेटी सभक लालन पालनमे कोनो कसरि नै छोडने छलखिन्ह। बेटी सबकेँ पढेबा लिखेबामे पूरा धेआन देने छलखिन्ह आ ओकरा सभकेँ तमाम सुख सुविधा देबामे पाँछा नै रहैत छलखिन्ह। समाजमे शर्माजी दूनू बेकती बहुत आदरणीय आ उदाहरण छलथि। बेटी सभकेँ आ शर्माजीक कनियाँकेँ कोनो दिक्कत नै होई, ऐ लेल शर्माजी किछो करबा लेल तैयार रहैत छलाह। घरक काजमे मदतिक लेल एकटा दाई राखल गेल छल जे चौबीसो घण्टा हुनकर घरे पर रहैत छलैन्हि। ओकर नाँउ छलै मीतू आ ओ बयसमे बारह-तेरह बरखक छल। ऐ हिसाबेँ ओ एखन बच्चे छलै आ पेटक मजबूरीमे हुनकर घरमे काज करबा लेल बाध्य छलै। घरक पूरा साफ सफाई, पोछा, बासन माँजनाई आ कपडा धोनाई ओकरे जिम्मा छलै। दिन भरि खटिकऽ ओ थाकि जाईत छल आ साँझुक बाद झपकी लेबऽ लागैत छल। जखने ओकरा झपकी आबै की मलकिनीक प्रवचन ओकर निन्न तोडि दैत छलै। रातिमे सभक खएलाक उपरान्त ओ सभटा बासन माँजि लैत छलै आ तकर बादे खाई लेल बैसै छलै। खएबामे सबहक बचल खुचल ओकरा नसीब होईत छलै।

                              शर्माजी अपन बेटी सभक सब फरमाईश पूरा करैत छलखिन्ह आ कोनो वस्तुक माँग भेला पर बाजारसँ तुरंत ओ वस्तु आनैत छलथि, चाहे ओ कोनो खेलौनाक फरमाईश होई वा कोनो भोज्य सामग्रीक। जँ कखनो मीतू बाल सुलभ लालसामे ओइ वस्तु सभ दिस ताकियो दैत छलै की शर्माजीक कनियाँ अनघोल उठा दैत छलखिन्ह जे आब हमर बेटी सभकेँ ई वस्तु सब नै पचतै, देखू कोना नजरि लगा देलक ई निराशी। एकर अलावे आरो ढेरी गपक प्रसाद मीतूकेँ भेंट जाईत छलै, तैं बेचारी ऐ सब फरमाईशी वस्तु दिस धेआन नै देबाक प्रयास करैत छल, मुदा बच्चे छलै तैँ कखनो कालकेँ गलती भइये जाईत छलै।

                              एकदिन शर्माजीक बडकी बेटी गुलाबजामुनक फरमाईश केलकै। शर्माजी साँझमे घर आबैत काल बीसटा गुलाबजामुन सबसँ नीक मधुरक दोकानसँ कीनिकऽ नेने अएलाह। पहिने तँ दूनू बेटी आ हुनकर कनियाँ दू-दूटा गुलाबजामुनक भोग लगेलखिन्ह आ तकर बाद बचलाहा मधुरकेँ फ्रिजमे राखि देल गेलै। मीतू कुवाचक डरे ऐ मधुर दिस ताकबो नै केलक आ नै ओकरा खएबा लेल भेंटलै। मुदा मधुरक सुगंध ओकरा बेर-बेर अपना दिस आकर्षित करऽ लागलै। ओ एकटा योजना मोने मोन बनेलक आ चुपचाप घरक काज करऽ लागल। रातिमे भोजन कएलाक उपरान्त शर्माजीक कनियाँ ओकरासँ बासन मँजबेलखिन्ह आ एकर बाद ओकरा खएबा लेल बचलाहा सोहारी आ तरकारी दैत ई ताकीद केलखिन्ह जे हम सुतै लेल जाई छियौ, तूँ खा कऽ अपन छिपली माँजि सुतै लए जइहैं। ओ स्वीकृतिमे अपन मुडी हिलेलक आ खएबा लेल बैसि गेल। शर्माजीक कनियाँ तकर बाद सुतै लए चलि गेलीह। आब मीतू मधुर खएबाक अपन योजना पर काज शुरू केलक। पहिने तँ जल्दीसँ सोहारी तरकारी समाप्त कएलक आ तकर बाद नहुँ नहुँ डेगे फ्रिज दिस बढल। एकदम स्थिरसँ ओ फ्रिजक फाटक खोललक आ फ्रिजसँ मधुरक पैकेट निकालि कऽ एकटा गुलाबजामुन मुँहमे राखलक। फेर ओ सोचऽ लागल जे जखन एकटा खाइये लेलौं तखन एकटा आर खा लेबामे कोनो हर्ज नै छै। तैँ ओ एकटा आर गुलाबजामुन निकालि मुँहमे धरिते छल की पाँछासँ शर्माजीक कनियाँ ओकर केश पकडि घीचि लेलखिन्ह। असलमे खटपटक आवाज सुनि हुनकर निन्न टूटि गेल छलैन्हि। आब तँ मीतूक जे हाल भेलै से जूनि पूछू। मुँहमे गुलाबजामुन ठूँसल छलै तैँ ओ गोंगिया लागल। शर्माजीक कनियाँ ओकरा पर थापड आ लातक बौछार कए देलखिन्ह। संगे अपशब्दक नब महाकाव्यक रचना सेहो करैत पूरा घरकेँ जगा देलखिन्ह। सब मिलिकऽ मीतूक अपशब्द आ थापडक खोराक दए गेलखिन्ह। जखन ओ सब गारिक पूरा शब्दकोश पढि गेलखिन्ह आ मारैत हाथ दुखाबऽ लागलैन्हि तखन ओ सब हँपसैत ठाढ भऽ गेलथि। शर्माजीक कनियाँ मीतूक झोंटा घीचैत कहलखिन्ह जे हम सब प्रोग्रेसिभ छी, तैं छोडि देलियौ नै तँ आन रहितौ ने तँ बलि चढेने बिना नै छोडितौ। ई कहि ओ सब अपन बेडरूम दिस विदा भेलथि आ मीतू कानैत अपन बोरा लेने ओसारा दिस सुतै लेल बढि गेल।

Monday, September 10, 2012

पटोटन :: जगदीश प्रसाद मण्‍डल


पटोटन

अद्राक पहि‍ल बरखा। मास्‍टर सहाएब आ बड़ाबाबू, दुनू गोटे एक्के मोटर साइकि‍लसँ गामसँ झंझारपुर जाइत रहथि‍। साते कि‍लोमीटर झंझारपुर तँए दुनू गोटे गामेसँ जाइ अबै छथि‍। थानाक बड़ाबाबू नै कोर्टक बड़ाबाबू देवनन्‍दन आ हाइस्‍कूलक शि‍क्षक प्रेमनन्‍दन। ओना दुनू गोटे शहरूआसँ बेसी गमैइये छथि‍ मुदा तैयो कलप कएल कपड़ा पहीरि‍ कऽ ऐबे-जेबे करै छथि‍।
पँचकोशीमे सि‍ंहेश्वरक नाओं एकटा नीक घरहटि‍याक रूपमे लोक जनैत। ओना नाउऍं तँ नाआें छी, तइमे तँ कमी नै भेलनि‍ अछि‍ मुदा परदेशि‍याक कमाइ आ इन्‍दि‍रा आवासक चलैत काजमे कमी तँ भइये गेलनि‍ अछि‍। उमेर बेसी भेने मनमे खुशि‍ये होइत रहै छन्‍हि‍ जे भने काज कमि‍ रहल अछि‍। एक तँ परदेश भगने नव घरहटि‍या नै बनि‍ रहल अछि‍, दोसर हमहीं सभ जे पुरना पाँच गोटे छी सएह कते सम्‍हारब।
ब्रह्मपुर गाममे प्रवेश करि‍ते बुन्‍दाबुन्‍दी पानि‍ शुरू भेल। बड़ाबाबू ड्रइवरी करैत आ मास्‍टर सहाएब पाछूमे बैसल। बुन तँ गोटगर पड़ैत रहै मुदा कम-सम। बीत-डेढ़ बीतक दूरीपर बुन खसै तँए कपड़ा सोखनहि‍ चलि‍ जाइत मुदा जते आगू बढ़ैत छलाह तते मानि‍यो बेशि‍आएल जाइत। बढ़ैत-बढ़ैत सि‍ंहेश्वर घर लग अबि‍ते अँटकि‍‍ जाएब नीक बुझलनि‍। सड़केपर गाड़ी लगा दुनू गाटे सि‍हेश्वरक दरबज्‍जापर पहुँचलाह। दरबज्‍जा कि‍ मालक घर। अाधा घरमे माल बन्‍हैत आधामे दरबज्‍जा बनौने। दरबज्‍जा कि‍ एकटा चौकी मात्र। सि‍ंहेश्‍वर अपने दरबज्‍जेपर। चारसँ चुबैत बुन्नकेँ नि‍हारि‍-नि‍हारि‍ देखैत जे रौदमे फाटि‍ गेल अछि‍ आ कि‍ कौआ खोदने अछि‍। मुदा लगले मन पड़ि‍ गेलनि‍ आद्रा आबि‍ गेल, घर कहाँ छाड़लौं। तखने दुनू गोटे पहुँचलाह। चौकीपर उठि‍ सि‍ंहेश्वर दुनू गोटेकेँ बाँहि‍ पकड़ि‍ चौकीपर बैसबैत अपनो बैसलाह। तड़तड़ौआ बरखा शुरू भेल। कलप कएल कपड़ापर खढ़क चुबाटसँ कपड़ा दुइर होइए। एक तँ बेचारेकेँ अपने मनमे दुख होइत हेकतनि‍ जे केना साल खेपब तइपरसँ हमहूँ भारी बना दि‍अनि‍ ओ उचि‍त नै। दागे लगत तँ कि‍ हेतै, कोनो कि‍ केरा-दारीमक दाग छी जे नै छूटत। मुदा बड़ाबाबूकेँ मुँहसँ बजा गेलनि‍-
अहाँक नाओं पँचकोसीमे अछि‍ सि‍ंहेश्वर भाय, मुदा अपना घरक हालत एहेन बनौने छी?”
बड़ाबाबूक वि‍चारसँ सहमत होइत सि‍ंहेश्वर बाजल-

बड़ाबाबू, गामसँ लोककेँ भगने गाममे काज बढ़ि‍ गेल अछि‍, मुदा काजक धुनि‍ तेहेन पकड़ि‍ लेलक जे ठेकाने ने रहल जे बरखा मास आबि‍ गेल। आब पानि‍ छुटैए तँ नै छाड़ल हएत तँ पटोटनो तँ दइये देबै।

मुसाइ पंडि‍त :: जगदीश प्रसाद मण्‍डल


मुसाइ पंडि‍त

गाममे वि‍ख्‍यात मुसाइ पंडि‍त छथि‍। ओहन पंडि‍त जि‍नकर बात मुसाइये पंडि‍तक नाओंसँ वि‍ख्‍यात अछि‍।

मध्‍यम् जाति‍क मुसाइ पंडि‍त, माइक कोरपच्‍छु बेटा भेने, दौजी फड़ जकाँ तीन सालमे माए आ सात सालमे पि‍ताक श्राद्ध केलनि‍। मुदा बाल-वि‍वाहक शुभ फल भेटि‍ गेल रहनि‍। पि‍ताक श्राद्धसँ तीन मास पहि‍ने बि‍आह भऽ गेलनि‍। जँ कहीं तीन मास पछुऐतथि‍ तँ सि‍मरि‍या गाड़ी जकाँ मास नै कऽ पबि‍तथि‍, मुदा भाग्‍य तँ भाग्‍य छी, से मुसाइ पंडि‍तकेँ सुतरलनि‍। जेकरा माए-बाप रहै छै तेकरा तँ पोथी-पतरा काज दइते छैक जे बि‍नु-भाइयो-बापबलाकेँ सुतरल। मुसाइ पंडि‍त पि‍ताक श्राद्धक तीन दि‍न पछाति‍ ससुरकेँ अरि‍आतए काल पुछलनि‍-
बाबू, आब तँ यएह सभ ने माता-पि‍ता भेला, हमरा कि‍ हएत? भाय-भौजाइक हालत अपनो गाममे देखि‍ते हेथि‍न।
जमाइक प्रश्न सुनि‍ कमलाकान्‍त गुम्‍म भऽ गेलाह। मने-मन वि‍चारए लगलाह जे बेटी-जमाइक भार उठाएब भारी होइ छै। फेर मन घुमलनि‍ जे भगि‍नमान तँ कुलश्रेष्‍ठ होइए। मुदा लगले मन बदलि‍ गेेलनि‍। घी-जमाए भगि‍ना, जहि‍ना घरमे सि‍दहामे नै रहने भूखक लहरि‍ जोर पकड़ै छै तहि‍ना आगूक जि‍नगी मुसाइकेँ जोर मारलक। दोहरबैत बाजल-
बाबू, कि‍छु बजलखि‍न नै?”
कमलाकान्‍तक मन फेर बहटलनि‍। पत्नीसँ पूछि‍ लेब जरूरी अछि‍, मुदा से खोलि‍ कऽ केना समधि‍यौरमे जमाए लग बाजब। बेटोकेँ तँ पूछि‍ लेब अछि‍। मुदा पुतोहु बेरमे पुछबे ने केलौं आ बेटी-जमाए बेरमे कि‍अए पुछबै। मन बनि‍ते बजलाह-
दुनू भाय-भौजाइकेँ बजबि‍औ। आखि‍र माता-पि‍ताक परोछ भेने तँ वएह सब ने माता-पि‍ता भेलाह।
मुसाइ दुनू भाँइकेँ पुछलक। एक तँ ओहना लोकक घराड़ी घटल जाइ छै तइपर जँ बढ़ि‍ जाए, ई के नै चाहत। दुनू भाँइयो आ भौजाइओ मुसाइकेँ सासुर जाइक आदेश दऽ देलक। गाए-नेरूक मि‍लान तँ ठेहुने-पानि‍ दुहान।
कमलाकान्‍त संगे चलए कहि‍ पुछलखि‍न-
कपड़ो-लत्ता लेब।
मुसाइ- हँ, हँ, जते सरधुआ कपड़ा अछि‍ ओ जँ नै लऽ लेब तँ ऐठाम मूसे-दि‍वार खा जाएत।

एक तँ ओहि‍ना मुसाइ सहलोल, तइपर सासुरक वि‍द्यालय पहुँचि‍ गेल। सासुरँ जँ सारि‍-सरहोजि‍सँ गलथोथरि‍मे हाि‍र जाएब तँ कोन डोराडोरि‍बला भेलौं। जहि‍ना वि‍षुवत रेखाक समान दूरीपर दुनू दि‍शा समान मैसम होइत तहि‍ना अन्‍हार-इजोतक बीच सेहो होइत अछि‍।

पच्‍चीस बर्खक अवस्‍थामे मुसाइ सासुरसँ मुसाइ पंडि‍त भऽ दूटा धि‍या-पुता नेने गाम आबि‍ गेलाह। जहि‍ना फुटलो खपटाक जरूरति‍ समए पाब होइ छै तहि‍ना मुसाइ पंडि‍तक जरूरति‍ गाममे आइ भेल।
मौसमी बेमारीक जानकारी दि‍अ गाममे बहरबैया सभ औताह जखने सँ मुसाइ पंडि‍त सुनलक तखनेसँ मटि‍या तेल देलहा कुत्ता जकाँ मनमे उड़ी-बीड़ी लगि‍ गेलनि‍।

जहि‍ना समए ि‍नर्धारि‍त छल तहि‍ना कार्यक्रम शुरू भेल। अभ्‍यागती सुआगत सभकेँ भेलनि‍। बारहो मासक मौसमी बेमारी आ ओइसँ पथ-परहेजक नीक जानकारी देलखि‍न। गाममे नव फल भेटल। बीचमे बैसल मुसाइ पंडि‍त सुनैपर कम धि‍यान देने रहए। संगसोरमे जहि‍ना लोक हरेलहो जगहपर गपे-गपमे पहुँचि‍ जाइत अछि‍ तहि‍ना मुसाइ पंडि‍त सेहो पहुँचि‍ गेलाह। हड़लनि‍ ने फुड़लनि‍ उठि‍ कऽ बीचमे ठाढ़ भऽ गेला। ठाढ़ होइते बैसि‍नि‍हारक आँखि‍ पड़ै लगलनि‍। दुनू हाथसँ शान्‍ति‍ बना रखैक इशारा दैत बजलाह-
अभ्‍यागत लोकनि‍क वि‍चार उत्तम अछि‍, सभकेँ अनुकरण करैक चाहि‍यनि‍।

अपन समर्थन पाबि‍ बाहरी लोकनि‍ आरो अगि‍ला बात सुनैले जि‍ज्ञासा जगौलनि‍। मुदा जे पहि‍ने बाजत ओ चोर गाम-घरक खेलक मंत्र छै। तँए आँखि‍, कान तँ मुसाइ पंडि‍त दि‍स सभ देलनि‍ मुदा मुँह घुमौनहि‍ रहला। मुसाइ पंडि‍त लेल धनि‍ सन। कहि‍या लोक हमर बात सुनलक आ देखलक। सुनह नै सुनह, मनक उदगार छी, बजबे करब। मुदा सइयो आँखि‍ भीष्‍म–पि‍तामह जकाँ गड़ल देखि‍ सम्‍हरैत मुसाइ पंडि‍त बजलाह-
आम-जामुन इलाकाक हाड़-पाँजर टुटब, कि‍सानी ज्ञानमे साँप-कीड़ा काटब, हाड़मे पैसल जाड़केँ सेहो तँ देखए पड़त?”
गौंआँ वक्‍ता बूझि‍ जोरसँ सभ थोपड़ी बजौलक मुदा थोपड़ी सुनि‍ मुसाइ पंडि‍त अकवकमे पड़ि‍ गेलाह जे लोकक थोपड़ीक अवाज की छल। हास हँसी आकि‍ हँसी हास।

गुहारि‍ :: जगदीश प्रसाद मण्‍डल


कमला कातक नवटोलीक गहबर बड़ जगताजोर। सएह सुनि‍ अपनो गुहारि‍ करबैक वि‍चार भेल। भाँज लगेलौं तँ पता चलल जे तीनू वेरागन-सोम, बुध आ शुक्र- भगता भाउ खेलाइ छथि‍ मुदा शुक्र दि‍नकेँ तँ साक्षात् भगवति‍येक आवाहन रहै छन्‍हि‍। मन थि‍र भेल। डाली लगबए पड़ै छै तँए ओरि‍यौनक वि‍चार भेल। मन भेल जे पत्नीकेँ डाली ओरयौनक भार दि‍यनि‍। मुदा बोलकेँ रोकि‍ वि‍चार कहलक- देवालयक काज छी, एकोरत्ती कुभाँज भेने गुहारि‍यो उनटे हएत। डालीक बौस बाजरसँ कीनए पड़त। मुदा सस्‍ता दुआरे जनि‍जाति‍ उनटा-पुनटा बौस कीन लेतीह।
मन उनटि‍ गेल। अपने हाथे कि‍नैक ि‍नर्णए केलौं।

बाजार पहुँच फूल काढ़ल सीकीक रँगर डालीक संग बेसि‍ये दाम दऽ दऽ नीक-नीक बौस कीनलौं। मन पड़ल जे भरि‍ दि‍न उपास करए पड़त। चाहो तक नै पीब सकै छी। जँ पीबैओक मन हएत तँ गोसाँइ उगैसँ पहि‍ने भलहि‍ं पीब लेब।
तनावसँ भरि‍ दि‍न मन उदग्‍नि‍ रहैए। ने काज करैक मन होइए आ ने कि‍यो सोहाइए। एहेन तनाव दुि‍नयाँमे ककरो भरि‍सके हेतै।
कोन जालमे पड़ि‍ गेल छी। तहूमे एकटा रहए तब ने। जालक-जाल लागल अछि‍। जमीन-जत्‍थाक जाल, जन-जाल, मन-जाल, तन-जाल, शब्‍द-जाल, अर्थ-जाल, वि‍चार-जाल, वाक्-जाल नै जानि‍ कते जाल बनौनि‍हार कते जाल बना कऽ पसारि‍ देने अछि‍। एक तँ ओहि‍ना इचना माछ जकाँ लटपटाएल छी तइपरसँ जालक-जाल। गैंचीक नजरि तँ‍ नै जे ससरि‍-फसरि‍ छछारी कटैत जान बचा सोलहन्नी जि‍नगी पाबि‍ लेब। तँए नवटोलीक गहबरमे डाली लगेलौं।

गुहरि‍याक कमी नै। अकलबेरेसँ गुहरि‍या पहुँच पति‍यानी लगा बैस गेल। गहबरक भीतर भगत बैस धि‍यान मग्‍न भऽ गेलाह। गहबरसँ उदेलि‍त भाव भगतक हृदैकेँ कम्‍पि‍त करैत। गुहारि‍ करए बाहर नि‍कलल। हाथमे जगरनथि‍या बेंतक छड़ी लेने। भगत गुहारि‍ शुरू करैत कहलखि‍न- भगत-अश्रमसँ श्रमक बाट पकड़ि‍ चलि‍ जाउ। आगू कि‍छु ने हएत।
भगतक पछाति‍ डलि‍वाह कहथि‍न- पाछु घुि‍र नै ताकब। कतबो जोगि‍न सभ कानि‍-कानि‍ कि‍अए ने बजए मुदा घुरि‍ नै ताकब।

हमरो नम्‍बर लगि‍चएल। मुदा एक्के वाक् सुनि‍ उत्‍सुकता ओते नहि‍ये रहए जते नव वाक् सुनैक होइत। अनेरे मनमे तुलसीक वि‍चार उठि‍ गेल। कहने छथि‍ जे जेकरा जंजाल रहै छै तेकरा ने चि‍न्‍ता होइ छै। जकरा नै छै?
तही बीच भगत सोझमे आबि‍ गेलाह। पैछले बातकेँ दोहरबैत एकटा नव बात पुछलनि‍- छुटि‍ गेल कि‍ने?”
बि‍नु तारतमे बजा गेल- हँ।

वि‍दा भेलौं। बाटमे वि‍चारए लगलौं जे अश्रमक अर्थ कि‍ होइ छै। मुदा कोनो अर्थे ने लागल। हारि‍ कऽ ऐ नि‍ष्‍कर्षपर एलौं जे एक सोगे आएल छलौं दोसर लेने जाइ छी।

गाम अबि‍ते टोल-पड़ोसक लोक भेँट करए आबए लगलाह। सभ एक्के बात पुछथि‍- की भेल?”
कि‍छु गोटेकेँ प्रश्ने बना कहलि‍यनि‍- अश्रमक अर्थे ने बुझलौं। अहीं कहू। मुदा जते मुँह तते रँगक उत्तर भेटऽ लगल। सुनैत-सनैत मन घोर-मट्ठा भऽ गेल। पछाति‍ जे कि‍यो पूछथि‍ तँ कहए लगलि‍यनि‍- जहि‍ना छलौं तहि‍ना छी।-2
~

सजाए :: जगदीश प्रसाद मण्‍डल


बजैत लाज होइए मुदा नहि‍यो बाजब तँ पुरुख कथीक। जहि‍ना सभकेँ होइ छै तहि‍ना जूति‍-भाँति‍ लए पत्नीसँ मुँहाँठुट्ठी भऽ गेल दुनू दू दि‍शाक बुझनूक! खि‍सि‍या कऽ अपने काज करए खेत चलि‍ गेलौं। जलखै नै पहुँचल। सबूर केलौं। मुदा खीस आरो तबैध गेल। अबेर धरि‍ खेतेमे खटैत रहलौं।

गामपर आबि‍ नहा-सोना खाइले गेलौं। ओढ़ना ओढ़ि‍ पत्नी घरमे सुतल। तामसे नै टोकलि‍यनि‍। मुदा तैयो अनठा कऽ बच्‍चाकेँ पुछलि‍ऐ- बुच्‍ची, माए कतए छथुन?”
कहलक- मन खराप छै सुतल अछि‍।
तोरा बुत्ते खाएक परसल हेतह?”
कहलक- भानसो कहाँ भेलहेँ।

मुँहक बात मुँहेमे :: जगदीश प्रसाद मण्‍डल




पछबारि‍ गामबलाकेँ एहेन दशा कहि‍यो ने भेल हेतनि‍ जेहेन आइ बहि‍रा माए केलकनि‍?
पछबारि‍ गामक घटक बहि‍रापर अबैत छलाह। गाम, घर-बरक चर्च सुनि‍ नेने छेलखि‍न। मन मानि‍ गेल छलनि‍ जे अपना जोगर कुटुमैती नीक अछि‍।

गामक सीमानपर अबि‍ते एक गोटेकेँ पूछि‍ देलखि‍न। सभ गुणक चर्च नीके बूझि‍ पड़लनि‍ मुदा बहि‍‍रा नाओं सुनि‍ मन भनभना गेलनि‍। मन भनभनाइते, बैलून जकाँ देहक शक्‍ति‍ नि‍कलए लगलनि‍। आमक गाछ देखि‍, नि‍च्‍चामे बैस सोचए लगलाह जे आबि‍ की करब?

घटकक भाँज बुझि‍ते बहि‍रा माए वि‍दा भेल। घटक लग पहुँच बाजलि‍- कोन गाॅ रहै छी, कतए जाएब?”
घटक- एतै एकटा लड़का उदेसे आएल छलौं मुदा लड़ि‍काक नौए बहि‍रा छि‍ऐ। मन भटकि‍ गेल। आबि‍ घुरि‍ जाएब।
बहि‍रामाए- जँ बेटा-बेटी खेलाइ पाछू बेहाल रहए आ माए-बापक आदेश नै मानए, ते कि‍ बाप-माए ओकरा मारतै आकि‍ बहि‍रा कहि‍ छोड़तै?”
~

कनफुसकी :: जगदीश प्रसाद मण्‍डल




गामेक स्‍कूलमे सोहनक संग दोस्‍ती भेल। ओना एक्के गाममे कनि‍ये हटि‍ कऽ दुनू गोरेक घरो अछि‍ मुदा आने गाम जकाँ। तीस साल पूर्व जखन एक्के वि‍द्यालयमे नोकरी भेटल तखन नजदीकी आएल। पाँच बर्ख पछाति‍ अबर-जात नौत-पि‍हानमे बदलि‍ गेल। दू जाति‍ रहि‍तो छान-बान कमल।

तीस बर्ख बाद, आइ एहेन भऽ गेल जे नजरि‍ दि‍स‍ नजरि‍ मि‍लए नै चाहैत अछि‍। सभ गुण मि‍लतो एकटा अवगुन सोहनमे शुरूहेसँ रहल जे अनका कानमे फुसफुसा वि‍चार कऽ घुसका-फुसका दैत। जे ऐबेर बुझलौं। सेहो केना बुझलौं तँ जेकरा लग बजलाह ओ आबि‍ जड़ि-‍सँ-अंत धरि‍ कहलनि‍। मन तुरूछि‍ गेल। संग केने जखन सोहन लग पहुँच पुछलि‍यनि‍- भाय, की सभ भोला भायकेँ कहलि‍यनि‍हेँ?”
प्रश्न सुनि‍ जना सोहनक बीख ओइ साँप सदृश्‍य बूझि‍ पड़ल जे हबक मारैले ककरो खेहारए लगैत, तइ बीच दोसरकेँ पाबि‍ काटि‍ लैत, तहि‍ना! ने ओ कि‍छु बजलाह आ ने दोहरा कऽ कि‍छु पुछलि‍यनि‍।
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अप्‍पन हारि :: जगदीश प्रसाद मण्‍डल




मनकेँ कतबो अपना दि‍ससँ बहटारए चाहै छी तैयो कुकुड़ जकाँ दुआर-दरबज्‍जा छोड़बे ने करैए। छोड़बो केना करत? कोनो कि‍ आइयेक संगी छी आकि‍ जहि‍ये पशु-पक्षी दि‍स तकलौं तहि‍येसँ ने ओहो संग लगि‍ परि‍वारमे सटि‍ गेल।

अपन दुरागमन भेल। आने सभ जकाँ अपनो बूझि‍ पड़ए लगल जे सौंसे दुनि‍याँ दुलहनि‍येसँ भरल अछि‍। तहि‍ना पत्नि‍योक आँखि‍ हमरा छोड़ि‍ कि‍छु देखबे ने करनि‍। थोपड़ी की कोनो एक्के हाथे बजैए। ओइले तँ दुनू हाथ चाही। से भेबो कएल। बूझि‍ पड़ए जे सौंसे दुनि‍याँ फूसि‍ आ दुइये प्राणी सत्‍ छी। एहन स्‍थि‍ति‍मे मेल-मि‍लानक कथे की। कान्‍हीसँ वि‍चार धड़ि‍क।

जहि‍ना दुनू कसमकस पार्टीक बीच फैसला उचि‍त होइत तहि‍ना भगवान नि‍साफो केलनि‍। तइसँ फलो नीक भेटैत। जौआँ बेटा भेल। जँ दुनू दू रहैत तँ बेइमानि‍यो होइतै से एक्के रहए। खुशी तँ दुनू प्राणीकेँ भेल मुदा दू दि‍शामे। अपना मनमे हुअए जे हे भगवान दसो साल जँ एहेन उपजा देलह तँ गाममे बीस भऽ जाएब। तरे-तर माघक खेसारी जकाँ मन गदगदाएल। मुदा पार्टनरक वि‍चार दोसरे रहनि‍। एकहरी बच्‍चाक होन्हहारी-दर्द दोहराएल रहनि‍ तँए पाण्‍डु रोग जकाँ पीड़ी पकड़ने।

चारि‍-पाँच मासक पछाति‍ फेर दुनि‍याँ ि‍दस दुनू पार्टनर तकलौं। मुदा वि‍चारमे खट-पट हुअए लगल। खट-पट एते बढ़ि‍ गेल जे एक-एक बेटा बाँटि‍ दुनू दू दि‍स भऽ गेलौं।

तीन बर्ख भऽ रहल अछि‍। पत्नि‍क हि‍स्‍सा बच्‍चा फूल सन लहलह करैए। वएह अपन दहि‍ना हाथक चटकन दि‍न-राति‍ खाइए। कोन दुर्मति‍या कपारपर चढ़ि‍ गेल जे औझका थापर एहेन लागि‍ गेलै जे मुँहेँ भरे माटि‍पर खसल।

अपन कोखि‍क कनैत बच्‍चाकेँ देख पत्नी गड़ि‍यबैत बजलीह-पुरुख नै पुरुखक झड़ छी।
सुनि‍ क्रोध नै उठल। जना मनक सभ ताप-संताप मेटा गेल हुअए। लजाएल आँखि‍, आँखि‍पर देलि‍यनि‍ तँ बूझि‍ पड़ल जे झपटि‍ लेतीह। मुदा जहि‍ना रौद पानि‍मे आ पानि‍ रौदमे सटि‍ नव जीवन धड़ैत तहि‍ना आब अपनो वि‍चारै छी।
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काल्हि‍ दि‍न :: जगदीश प्रसाद मण्‍डल




हमरा गामक पजरे पाभरि‍ हटल कटहरबा गाम छै। हमरा गाम जकाँ बरहवर्णा तँ नै मुदा तैयो दू सय घरसँ उपरेक छै। तीनि‍ये-चारि‍ जाइति‍क बस्‍ती।
समांगक पातर रहने परदेश नै जाइ छी। अधपुरान साइकि‍लपर मसल्‍लाक (मि‍रचाइ, हरदी, धनि‍या, लहसुन इत्‍यादि‍) कारवार करै छी। हमर मेन मारकेट कटहरबे छी। पनरह-बीस घरक पाहि‍ लगौने छी, सभ दि‍न हरि‍यरि‍ये रहैए। बनि‍याँ जाति‍ वाकी दुनि‍याँसँ कोनो मतलब नै।

पैछला सालक भोट दि‍न कि‍ भेलै से अखनो ने बुझै छी। एतबे देखै छी जे दुनू गामक बीच खूब मारि‍ भेल। दुनू गामक लोक झोरा लऽ लऽ कोट-कचहरी करैए। चाहे जेकर गोटी लाल होय आकि‍ कारी, हमरा कोन मतलब।

छगुन्‍तामे पड़ल छी जे मारि‍ केलक कोय रोजी-रोटी हमर केना छीना गेल। एकठाम रहि‍तो दुनू गामक आबा-जाही कि‍अए बन्न भऽ गेल? अपना खेत-पथार अछि‍ जे अपने आगि‍ये-पानि‍ये नि‍महब! तइ बीच पत्नी आबि‍ बजलीह- एना सोग-पीड़ामे परि‍वार चलत?”

काल्हि‍ दि‍न केना चलत सएह तँ अपनो ि‍वचारै छी!”

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चोर-सि‍पाही :: जगदीश प्रसाद मण्‍डल


चोरि‍क बाढ़ि‍ एने गामे-गाम चोर सोहरि‍ गेल। जहि‍ना घोरन लुधैक जाइत तहि‍ना चोरो लुधकए लगल। सेहो एकरंगा नै, सतरंगा! पाँखि‍सँ बि‍नु पॉखि‍बला घोरने जकाँ घुड़छा-घुड़छे! जेकर बहुमत तेकर राज-पाट! शासक-सँ-सि‍पाही धरि‍।

अगहन मास। गामक अधासँ उपर उपजल धानक खेतमे १४४ लगि‍ गेल। कोनो बटेदारीक चलैत तँ कोनो फटेदारीक। सरकारि‍यो काज तँ सरकारि‍ये छी। एक घंटाक काज मासो दि‍नमे हएत तेकर कोनो गारंटी नै। तखैन १४४ मे जप्‍त भेल खेत ४४ दि‍नक बदला ४४ मासो रहि‍ सकैए।

ओस पला गेल। दि‍न खि‍आ कऽ पानि‍ भऽ गेल। दि‍न-राति‍ शीतलहरि‍मे डूमि‍ गेल। दर्जनो भरि‍ सि‍पाही गामक ओगरबाहि‍ करैत। अपना जि‍नगी दि‍स तकलक तँ बूझि‍ पड़लै जे जान बँचब कठि‍न अछि‍।
एक बाजल- खस्‍सी मासु खेबा जोगर समए अछि‍।
दोसर बाजल- जँ बनबैले तैयार होय तँ खस्‍सी आनि‍ देब।
सएह भेल। दूटा सि‍पाही वि‍दा भेल। हाथमे हथि‍यारो आ देहमे बर्दियो रहबे करै। दि‍नके देखल खस्‍सि‍यो आ घरो छेलैहे। अपने जकाँ एक गोटे मुँह दबलक दोसर उठा कऽ लऽ अनलक।
बना-शोना सभ भरि‍ मन खेलक। मुदा दोसरे दि‍नसँ दुनू गोटेकेँ आन-आन सि‍पाही चोरबा कहए लगल।

सालो नै लगल ग्‍लानि‍सँ गड़ि‍ दुनू नोकरी छोड़ि‍ अपन पुरना वृति‍मे लगि‍ गेल। एक समाज चोर-सि‍पाही तँ दोसर समाज सि‍पाही-चोर कहए लगलै।

भरमे-सरम :: जगदीश प्रसाद मण्‍डल




बच्चामे बाबू कतबो पढ़बैक परयास केलनि‍ मुदा हम नहि‍ये पढ़लयनि‍। अपनेसँ जे कनैठी दऽ नाम-गाम सि‍खा देलनि‍ ओ अखनो कानेपर रखने छी।

पचासम बर्ख चलि‍ रहल अछि‍। परुसाल शि‍क्षामि‍त्रक उजैहि‍या उठलै। चौक-चौराहा, हाट-बजार, गल्ली-कुच्ची सगतरि‍ एक्के हवा बहए लगलै। जहि‍ना हवा पीब अधमरुओ साँप फनफना उठैत तहि‍ना मनमे उठल। उठि‍ते गर अटबए लगलौं। एहेन बहैत गंगामे स्नान नै कऽ लेब तँ सभ दि‍न पापि‍ये रहि‍ जाएब। दरबज्जापर बैसल वि‍चारि‍ते रही आकि‍ सुन्दार भायकेँ धड़फड़ाएल अबैत देखलयनि‍। हुनका देखि‍ते अपन चिंता पड़ा गेल। दया उमड़ि‍ गेल। बेचारे एक्को कौड़ीक आदमी नै रहलाह। आचार्यक उपाधि‍ लैयो कऽ गोबर-माटि‍ भेल पड़ल छथि‍। नोकरी नै भेलनि‍। लग अबि‍ते पुछलि‍यनि‍-
 भाय, के‍म्हर-के‍म्हर?”
चौवनि‍या मुस्की दैत बहलाह-
बेतरनी पार होइक लग्न आबि‍ रहल अछि‍। जे गति‍ डारि‍ चुकल बानरक होइ छै वएह गति‍ अवसर चुकल मनुखोकेँ होइ छै। तँए गंगामे हाथ धोइ लि‍अ।
धारक मोइन जकाँ वि‍चार चकभौर लेलक। पुछलि‍यनि‍-
से की?”
कहलनि‍-अगि‍ला साल तत्ते शि‍क्षा मि‍त्रक बहाली हएत जे एक्कोटा पढ़ल-लि‍खल नै बॅचत।
असमंजसमे कहलि‍यनि‍-
 
भाय, हमरा तँ नामे-गामटा लि‍खल होइए।
ठाहाका मारि‍ कहलनि‍- 
डेर-दू हजार खर्च करू तेहेन सर्टिफि‍केट आनि‍ कऽ देब जे पहि‍लके बहालीमे भऽ जाएत।
रूपैया दऽ देलि‍यनि‍ साटिफि‍केट सेहो देलनि‍। भैकेन्सी भेल। 

बेटो बी.ए.पास केने अछि‍। दुनू बापुत एक्के स्कूलमे दरखास दइक वि‍चार केलौं। कागजक जखन मि‍लानी केलौं तँ बेटाक उमेरसँ दू बरख कम अपन उमेर! मुदा एहेन अजोध बात बजबो कतए करब। भरमे-सरम चुप्पे रहि‍ गेलौं।
~

चोर-सि‍पाही :: राम वि‍लास साहु



माघ मास अन्‍हरि‍या राति‍। ओस-कुहेससँ हाथो-हाथ ने सुझैत। एकटा चोर चारि‍ कऽ भागल जाइ छल। तखने एकटा सि‍पाही गस्‍तीमे आबि‍ रहल छल। चोर सि‍पाहीकेँ देखि‍ते भागल। चोर बूढ़ छल मुदा सि‍पाही बलंठ छलै। भागैत चोरकेँ रपटि‍ कऽ पकड़लक सि‍पाही। पकड़ि‍ हाजति‍ लेने जाइ छल।

चोरकेँ डंढ़ासँ देह थरथराइ छल। मने-मन ईहो सोचै छल जे केना ऐ यमराजक हाथसँ बचब। थोड़े आगू चलि‍ कऽ देखल जे सड़कसँ हटि‍ एकटा घूर रहै। आगि‍ देखि‍ते चोर बाजल-
सर, अहाँ एत्तै रहू आ हम ओइ धूरासँ कनी बि‍ड़ी नेसने अबै छी?”
सि‍पाही कने सोचि‍ कऽ बाजल-

अरे, तूँ हमरा मूर्ख बुझै छेँ रे! आ जे तूँ भागि‍ जेमे तँ हम तोरा पतालमे खोजबौ? चूपचाप एतए बैस हम अपनेसँ बीड़ी सुनगेने अबै छी।

स्‍कूलक खि‍चड़ी :: राम वि‍लास साहु



एकटा अभि‍भावक तमसा कऽ स्‍कूल पहुँचलाह। हेड मास्‍टरकेँ उपराग दैत बजलाह-
पढ़ाइ-लि‍खाइ तँ जएह-सएह होइए। खाली खि‍चड़ीयेमे बेहाल रहै छी। जखन धि‍या-पुता पढ़बे नै करतै तखन तँ हाकि‍म-हुकुमक तँ बाते छोड़ू चपरासि‍यो नै बनतै। एसँ नीक तँ प्राइवेटे स्‍कूल ने जइमे दूटा पाइये ने लगै छै, पढ़ाइ तँ नीक होइ छै। आइ तक ऐ स्‍कूलक बच्‍चा पढ़ि‍ कऽ कोन नाम कमेलकै।
मास्‍टर सहाएब शान्‍त भावसँ अभि‍भावककेँ समझबैत बजलाह-
देखू, तमसाउ नै कोनो हम खि‍बै छी खि‍चरी। ई तँ सरकारक योजना छी। ऐ योजनासँ लाभो बहुत छै। नि‍च्‍चासँ ऊपर धरि‍ सभ माले-माल होइ छै।
अभि‍भावक बजलाह-
से केना?”
मास्‍टर सहाएब कहलखि‍न-

सहीमे प्राइवेट स्‍कूलक बच्‍चा सभ पढ़ि‍-लि‍खि‍ हाकि‍म-हुकुम बनै छै। आ ईहो देखैत हेबै जे ओ सभ माए-बाप, गाम-समाजकेँ छोड़ि‍ एवं मातृभूमि‍केँ बि‍सरि‍ जाइए, बूझू बौर जाइए। से तँ ऐ स्‍कूलक बच्‍चामे नै हाेइए।

बुढ़ि‍या दादी :: जगदीश प्रसाद मण्‍डल


नै जानि‍ दादीकेँ एहेन तामस कि‍अए भऽ गेलनि‍। एक तँ ओहुना बैशाख-जेठक सुखाएल जारनि‍ चरचराइत रहैए, खढ़क छौड़ैत-छार पटपटाइत रहैए, तइ हि‍साबे दादीयोक खटखटाएब अनुकूले भल। दादी माने तीन पीढ़ी ऊपर नै कि‍ गामक बनौआ दादी। नवो-नौताड़ि‍ बनौआ दादी होइते छथि‍, उचि‍तो छैक। गुड़-चाउर जे जते खेने हेतीह।

आठ-दस बर्खक पोता अपन कुत्ताकेँ अनठि‍यासँ लड़ा देलक जइसँ कोनचरक सजमनि‍क गाछ टूटि‍ गेलनि‍, तेकरे तामस दादीकेँ पोतापर रहनि‍। जखन टुटलनि‍ तखन बाधमे रहथि‍ तँए नै देखलखि‍न। तखन ततबे, कुत्तेक झगड़ा भरि‍।
बारह बजे बाधसँ अबि‍ते, जहि‍ना हजारो चेहराक बीच प्रेमी-प्रेमि‍कापर जा अँटकैत, तहि‍ना दादीक नजरि‍ सजमनि‍क गाछपर पहुँचि‍ गेलनि‍। लटुआएल-पटुआएल पड़ल देखलखि‍न। नरसि‍ंह तेज भेलन, मुदा परि‍वारक सभ गबदी मारि‍ देलक। तँए अधडरेड़ेपर तामस अँटकि‍ गेलनि‍। जँ अकासक पानि‍केँ धरती नै रोकए तँ पताल जाइमे देरी लगतै?

दोसरि‍ साँझ जखन बाधसँ घूमि‍ कऽ दादी एलीह तँ नीक जकाँ भाँज लगि‍ गेलनि‍ जे पोताक कि‍रदानीसँ गाछ नोकसान भेल। तामस लहड़ए लगलनि‍। छौड़ाकेँ सोर पाड़लखि‍न-
अगति‍या छेँ रौ, रौ अगति‍या?”

नाओं बदलल बूझि‍ गोवि‍न्‍दोकेँ अवसर भेटलै। अन्‍हारे गरे चौकी-दोगमे अन्‍हारे गरे चौकी दोगमे नुका रहल। अपने फुड़ने दादी भट-भटाए लगली-
भरि‍ दि‍न छौड़ा एम्‍हर-सँ-ओम्‍हर ढहनाइत रहैए आ कुत्ता-वि‍लाइ तकने घुड़ैए। मुदा लगले मन ठमकि‍ गेलनि‍। भरि‍सक अंगनामे नै अछि‍, खाइ-बेर भेल जाइ छै, कतए छि‍छि‍आइ ले गेल अखन धरि‍ अंगनामे नै अछि‍। पुतोहुकेँ पुछलखनि‍-
कनि‍याँ, बौआ कहाँ अछि‍।
बेटाकेँ अपन जान सुरक्षि‍त बूझि‍ पुतोहु बजली-
बड़ी कालसँ नै देखलि‍ऐ।
पोताकेँ तकैले बुढ़ि‍या दादी वि‍दा भेली।
सुतै बेर जखन गोवि‍न्‍दा अलि‍साएल आबि‍ दादीकेँ कहलक-
दादी बि‍छान बीछा दे।

गोवि‍न्‍दक बात सुनि‍ दादी पि‍घलि‍ गेली। ओछाइन ओछा कऽ सुता देलखि‍न। सेन्‍धपर पकड़ल चोर जकाँ, क्रोध फेर कड़ुआ गेलनि‍। मुदा नि‍नि‍याँ देवीक करोरामे देखि‍ क्रोध घोंटए लगली। अखन छोड़ि‍ दइ छि‍ऐ, भोरहरबामे पेशाब करैले उठेबे ने करब। बुझतै केहेन होइ छै सजमनि‍क गाछ तोड़नाइ। जाबे सभ करम नै कराएब ताबे चालि‍ नै छुटतै। 
भाेरहरबामे जखन गोवि‍न्‍द दादीकेँ उठबैत बाजल-
दादी-दादी।

दादी गबदी मारैक वि‍चार केलनि‍। मुदा तीन बेरक बाद तँ गरि‍ऐबे करत, तइसँ नीक जे तेसर हाकमे अपने बाजि‍ देबइ। की हेतै, एकटा सजमनि‍येँक गाछ ने टुटल। फेर रोपि‍ लेब।

देखल दि‍न :: जगदीश प्रसाद मण्‍डल


मृत्‍युसँ छह मास पूर्व मुनेसर काकाकेँ बेटा लग मन उबि‍एलनि‍ तँ असगरे दि‍ल्‍लीसँ गाम वि‍दा भेलाह। परि‍वारसँ समाज धरि‍ सभकेँ अचरज लगलनि‍ जे मनमे कि‍ चढ़ि‍ गेलनि‍ जे असगरे एते साहस केलनि‍। असगरे वि‍दा होइक कारण भेलनि‍ जे बेटाकेँ पाँच दि‍न समए नै, एक तँ ओहुना बैंकमे कम छुट्टी होइ छै तइपर अपनो कारोवार ठाढ़ केने छथि‍। पुतोहु सहजे पुतोहुए छन्‍हि‍, भरि‍ दि‍न एयर-कंडीशनमे बैसि देख-वि‍देशक खेल देखब आ साज-श्रृंगार छोड़ि‍ दुनि‍याँमे कि‍छु देखब ने करै छथि‍। मुदा मुनेसर काकाक सहासक कारण ईहो भेलनि‍ जे एकेटा गाड़ी ि‍दल्‍लीसँ सकरी पहुँचा देतनि‍। सकरी तँ ओहुना घरे-अंगना भेलनि‍।
गाम अबि‍ते मुनेसर काका देखलनि‍ जे घर-अंगना तँ खंडहर भऽ गेल, कतए रहब। अंडी-बगहंडी, भाँग-धथुरसँ भरल अछि‍। जखने बोनाह भेल तखने साँप-छुछुनरि‍क संग बि‍ढ़नी-पचैहि‍या हेबे करत। बाप-पुरुखाक डीहक दशा देखि‍ दुख भेलनि‍ जे जखन घरे नै तखन मनुख केना रहत। जखन मनुक्‍खे नै रहत तँ बाप-पुरूखाकेँ के चि‍न्‍हत। मने-मन वि‍चार ऊपर-नि‍च्‍चा होइते रहनि‍ कि‍ एक गोरेकेँ रस्‍ता धेने जाइत देखलनि‍। ओना दस साल पहि‍ने देखनहि‍ रहथि‍ मुदा मनुष्‍योक बुनाबटि‍ तँ अजीव अछि‍। जहि‍ना बीस बर्खक अवस्‍था धरि‍ बाढ़ि‍क आगमन रहैत अछि‍ तहि‍ना साठि‍ बर्खक पछाति‍ रौदि‍याहक।

दुनू सएह तँए पुछैक जरूरत दुनूकेँ भेलनि‍। कमलेशकेँ ऐ लेल पुछैक जरूरत भेलै जे आन-गामक जँ रहि‍तथि‍ तँ रस्‍ते-रस्‍ते एला, चलि‍ जइतथि‍। ठाढ़ भऽ नि‍हारि‍ कि‍अए रहला अछि‍। जखन कि‍ मुनेसर काकाकेँ जरूरी भेलनि‍ जे जखन पुस्‍तैनी गाम एलौं, परि‍वार चलि‍ गेल तँ चलि‍ गेल, समाजो अछि‍ कि‍ ओहो मेटा गेल। मोवाइल जकाँ नै भेल जे अगुआ कऽ कि‍अए फोन करब। पाइ चरचा होइ छै कि‍ नै। ओइ सम्‍प्रदाय सदृश्‍य अछि‍ कि‍ नै जे अगुआ कऽ जेकर नजरि‍ पड़त ओ पहि‍ने अभि‍वादन करत। मुदा भेल दोसरे, जहि‍ना पनचैतीमे एक संग अनेको बजनि‍हार बाजए लगैत वा मोवाइलेपर दुनू दि‍ससँ दुनू परानी बाजए लगैत, तहि‍ना मुनेसरो काका आ कमलेशो एके बेर दुनू दि‍ससँ बाजल। आग्रह करैत कमलेश अपना ऐठाम तीन दि‍नक अभ्‍यागतीमे लऽ गेलनि‍।
गाम-समाजक कुशल-समाचारक संग मुनेसर काकाक मनक जड़ि‍मे अपन परि‍वार नचए लगलनि‍। कोन धरानी बाबू, एकटा साधारण पोस्‍ट मास्‍टर रहि‍ तीस बीघा खेत बनौलनि‍। दस गाम बीच एकटा पोस्‍ट आफि‍स मनि‍आडरक रूपैया अगुआ-पछुआ, संग-संग जि‍नकर रूपैया दि‍अ जाथ दू-चारि‍ आना ओहो देबे करनि‍। आमदनी बढ़ने मुनेसरोकेँ पढ़ा-लि‍खा हाकि‍म बनौलनि‍। तेसर पीढ़ी चलि‍ रहल छन्‍हि‍। डंडी तराजू जकाँ परि‍वारकेँ तौल रहला अछि‍ जे एक पीढ़ी (पि‍ता) समाजमे की‍ सभ केलनि‍। बीचक की भेल आ आइ उजड़ि‍-उपटि‍ गेल। जहि‍ना  चढ़ैत जुआनी जि‍नगी हेरा जाइ छै तहि‍ना ने अबैत मृत्‍युकेँ रोग-भागक सेहो भेटए लगै छै।
कमलेशक घर देखि‍ मुनेसर काका चीन्‍ह गेलखि‍न जे ई तँ संगीऐक घर छी। पुछलखि‍न-
बाउ, परि‍वारमे के सभ छथि‍?”
कमलेश बजलाह-
तीन पीढ़ीक सभ छथि‍।
मुनेसर काकाकेँ आगू बकार नै फुटलनि‍। जहि‍ना तकि‍तो आँखि‍मे ज्‍योति‍ नै रहै छै तहि‍ना भेलनि‍।   

Friday, September 7, 2012

कर्तव्य निर्वाह



शहरक एक मात्र नामी सरकारी हाँस्पिटलक इमरजेँसी वार्डमे होइत कन्ना-रोहट
पूरा प्रांगनकेँ कपाँ रहल छल । अगल-बगलकेँ लोक सेहो जुटि नोराएल नैन लेने
ठाढ़ छलैए ।50 वर्षक बूढ़ मरीजकेँ नाँकसँ आँक्सीजनक पाइप बान्हल छलै मुदा
साँस बड तेजीसँ उपर-नीच्चा होइत छलै । 14 वर्षक बच्चा दौड़ कऽ डाँक्टर
साहेबकेँ कहलक मुदा डाँक्टर साहेब कहलनि ,"नर्सकेँ कहू सुइया लगा दै लेए
।"
बच्चा हाँफैत नर्सकेँ खोजऽ लागल मुदा नर्स नञि भेटलै ओ दोसर वार्डकेँ
नर्सकेँ कहलक सुइया लगा दै लेए  ,नर्स जबाब देलनि ,"हम एखन ड्यूटीपर नञि
छी , किनको दोसरकेँ कहू ।"
बच्चाकेँ आँखिसँ खसैत नोर गालके भीजाबैत उज्जर फर्शपर पसरि रहल छल ।ओ फेर
डाँक्टरकेँ जा कऽ कहलक । डाँक्टर साहेब फटकारैत बाजलाह ,"हम डाँक्टरीके
डिगरी सुइया भोँकै लेल नञि लेलौँ ।"
बच्चा हतास भेल ओहि मरैत शरीर लग बैसि गेल । साँस आरोह-अवरोह करैत बन्न
भऽ गेलै । ओहि 14 वर्षक अनाथके आँखिसँ नोर झहरैत रहल आ एहि ब्रम्हांडक
दोसर भगवान अपन कर्तव्य निर्वाह करैत रहलाह ।

अमित मिश्र

Thursday, September 6, 2012

विहनि कथा


विहनि कथा
बीस टाका
हम भोरे भोर उठि कऽ अपन बगीचा मे फूलक गाछ सब केँ पटबै छलहुँ। करीब सात-सवा सात बाजैत हेतै। तावत सडक दिस सँ हो-हल्ला सुनायल। हमर निवास मुख्य सडकक काते मे अछि, तैं सडक पर होय बला सब घटना आ दुर्घटना देखाइत आ सुनाइत रहैए। हम हल्ला सुनि सडक दिस ताकलहुँ। देखै छी जे हमर फाटकक ठीक सामने मे एकटा मिनी ट्रक लागल अछि आ ओकरा आगाँ एकटा सिपाही मोटरसाईकिल लगा कऽ ठाढ अछि। ओ सिपाही ट्रकक ड्राईवर केँ गरियौने जाईत छल आ ट्रक जब्त करबाक धमकी सेहो दऽ रहल छल। सिपाही कहलक- "नो इंट्रीक टाईम भऽ गेल छै आ तों सब ट्रक शहर मे ढुका देलही। आब चल थाना, जब्ती हेतौ ट्रकक। तोरा सबकेँ बूझल नै छौ जे सात बजेक बाद नो इंट्री भऽ जाइ छै।" ट्रक पर पाछाँ मे एकटा महीस छल आ ओइ महीसक संग एक गोटे ठाढ छल जे कने कडगर भऽ बाजल- "यौ सिपाही जी, एखनी सात बाजि कऽ पाँचे मिनट भेल छै आ हम सब शहर मे जखन ढुकल छलियै तखनी पौने साते बाजै छलै। आब ई नो इंट्री कोना भऽ गेलै। शहर मे ढुकबा काल ओतुक्का सिपाही जी केँ नजराना सेहो देने छियै, अहाँ मोबाईल सँ फोन कऽ कऽ बूझि लियौ।" आब तँ सिपाही जे बमकल से नै पूछू। सोझे ड्राईवर लग गेल आ बाजल- "पाछाँ मे ओकील चढेने छी की? सार हमरा कानून झाडैए। ओकरा तँ जे हम करबै से केलाक बादे बूझतै ओ .................., तू चाभी ला, ट्रक जब्त हेतौ। सात बाजि कऽ दस मिनट भऽ गेल छै आ नो इंट्री मे ट्रक ढुका कऽ कानून छाँटै जाइए।" ड्राईवर ऐ लाइनक पुरान खेलाड छल। ओ हाथ जोडैत कहलकै- "सरकार, कथी लए तमसाई छी। ओ मूर्ख छै। अहाँ हमरा सँ गप करू ने। हे ई लियऽ दस टाका चाह पानक खर्चा आ हमरा जाई दियऽ बड्ड दूर जेबाक छै।" सिपाही कने नरम होईत ओकर हाथक टाका दिस लुब्धता सँ ताकैत कहलक- "हे रौ तू होशियार बूझाईत छैं, मुदा दस टाका सँ काज नै चलतौ। बड्ड महगी छै, बीस टाका निकाल।" ड्राईवर बाजल- "पछिलो चौक पर पाई लेलखिन्ह सिपाही जी आ अगिलो चौक पर लेबे करथिन्ह। एकटा महीसक पाछाँ कतेक जगह काटब अहाँ सब। सरकार पएर पकडै छी, अहाँ एहि सँ काज चला लियऽ।" सिपाही गरमाईत कहलक- "चल थाना। टाईम खराप नै कर। बोहनी बेर मे भोरे भोर सबटा नाश नै कर। तोहर दिमाग ठेकाना पर नै छौ।" आब ओ ड्राईवर बूझि गेल रहै जे ई सिपाही मानै बला नै छै। ओ तुरत बीस टाका निकाललक आ सिपाही दिस बढेलक। सिपाही चारू कात देखैत मुट्ठी मे बीस टाका दाबलक आ चेतावनि दएत कहलक- "जो भाग जल्दी, तोहर नसीब ठीक छौ। बडा बाबूक नजरि मे जँ आबि गेलही बाउ तँ ओ बिनु एक सय केँ नै छोडथुन्ह। हुनकर मौर्निंग वाकक समय भऽ गेल छैन्ह। आबिते हेथुन्ह केम्हरो सँ।" ई कहैत ओ सिपाही अपन मोटरसाईकिल इस्टार्ट कएलक आ विदा भेल आ ट्रक सेहो दस मिनटक घेंघाउज आ बीस टाकाक दक्षिणाक बाद गन्तव्य दिस चलि देलक।