Thursday, April 12, 2012

मर्म :: जगदीश मण्‍डल


मर्म

एकटा स्कूल छल जइमे हेलब सिखाओल जाइत छलैक। नव-नव विद्यार्थी प्रवेश लैत आ हेलैक कला सीख-सीख बाहर निकलैत छल। स्कूलेक आगूमे खूब नमगर-चौड़गर पोखरि रहए। जकरा कातमे तँ कम पानि मुदा बीचमे अगम पानि छल।
शिक्षक घाटपर ठाढ़ भऽ देखए लगलथि। विद्यार्थी सभ पानिमे धँसल। विद्यार्थी सभकेँ आगू मुँहे माने अगम पानि दिस बढ़ल जाइत देखि‍ शिक्षक कहए लगलखिन- बाउ, अखन अहाँ सभ अनजान छी। हेलब नै जनै छी। तँए अखन अधिक गहीर दिस नै जाउ। नै तँ डूमि जाएब। जखन हेलब सीख लेब तखन पानिक ऊपरमे रहैक ढंग भऽ जाएत। जखन पानिक ऊपरमे रहैक ढंग सीख लेब तखन ओकर लाभ अपनो हएत आ दोसरोकेँ डुमैसँ बचा सकब। एहिना संसारमे वैभबोक अछि। अनाड़ी ओइ‍मे डूमि जाइत अछि, जबकि विवेकबान ओइ‍पर शासन करैत अछि। जइसँ अपनो आ दोसरोक भलाइ होइ छै
वैभवक स्थितिमे व्यक्ति अपने कुसंस्कारसँ गहीर खाइ खुनि स्वयं डूमि जाइत अछि।

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