Thursday, April 12, 2012

नैष्ठिक सुधन्वा :: जगदीश मण्‍डल


नैष्ठिक सुधन्वा

महाभारतमे सुधन्वा आ अर्जुनक बीच लड़ाइक कथा आएल अछि। दुनू महाबलि युद्ध विद्यामे निपुन। दुनूक बीच लड़ाइ छिड़ल। धीरे-धीरे लड़ाइ जोर पकड़ैत गेलै। लड़ाइ एहेन भयंकर रूप लऽ लेलकै जे निर्णयक दौड़ आबिये ने रहल छलैक।
अंतिम बाजी ऐ विचारपर अड़ल जे फैसला तीन वाणमे हुअए। या तँ एतबेमे कि‍यो हारि जाए नै तँ‍ लड़ाइ बन्न क दुनू हारि कबूल क लिअए। जीवन-मरणक प्रश्न दुनूक सामने। कृष्ण सेहो रहथिन। कृष्ण अर्जुनकेँ मदति करैत रहथिन। हाथमे जल लऽ कृष्ण संकल्प केलनि जे गोवरधन उठौला आ ब्रजक रक्षा करैक पुण्य हम अर्जुनक वाणक संग जोडै़ छी।
सुधन्वा संकल्प केलक- पत्नी धर्म पालनक पुण्य अपन अस्त्रक संग जोड़ै छी
दुनू अस्त्र अकास मार्गसँ चलल। अकासेमे दुनू टकराएल। अर्जुनक अस्त्र कटि गेल। सुधन्वाक अस्त्र आगू बढ़ल मुदा निशान चूकि गेलै।

दोसर अस्त्र पुनः उठल। कृष्ण अपन पुण्य अस्त्रक संग जोड़ैत कहलखिन- गोहिसँ हाथीक जान बचाएब आ द्रौपदीक लाज बँचबैक पुण्य जोड़ैत छी।
अपन अस्त्रक संग जोड़ैत सुधन्वा बाजल- नीतिपूर्वक उपारजन आ दोषरहित चरित्रक पुण्य जोड़ै छी।
दुनू अस्त्र अकासेमे टकराएल। सुधन्वाक वाण अर्जुनक वाणकेँ काटि धरासायी क देलक। तेसर अस्त्र बाकी रहल। ऐपर निर्णए आबि गेल। अर्जुनक वाणक संग जोड़ैत कृष्ण कहलखिन- बेर-बेर ऐ धरतीपर अवतार लऽ धरतीक भार उतारैक पुण्य जोड़ै छी।

अपन वाणक संग जोड़ैत सुधन्वा कहलक- स्वार्थक लेल धनकेँ एक्को क्षण बि‍नु सोचल आ सदति परमार्थमे लगाओल पुण्य जोड़ै छी।
दुनू वाण आकास मार्गसँ चलल। अर्जुनक वाण कटि क निच्चाँ गि‍ड़ल। दुनू पक्षमे के अधिक समर्थ, ई जानकारी देवलोकमे पहुँचल। देवलोकसँ फूलक वर्षा सुधन्वापर हुअए लगल। लड़ाइ समाप्त भेल। भगवान कृष्ण सुधन्वाक पीठि ठोकि कहलखिन- नरश्रेष्ठ, अहाँ साबित कऽ देलौं जे नैष्ठिक गृहस्थ साधक कोनो तपस्वीसँ कम नै होइ छै

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