Wednesday, April 11, 2012

मूलधन :: जगदीश मण्‍डल


मूलधन

एकटा वृद्ध पिता तीन बरखक लेल तीर्थाटन करए निकलए चाहथि। निकलैसँ पहिने चारू बेटाकेँ बजा अपन सभ पूँजी बरोबरि कऽ बाँटि कहलखिन- तीन सालक लेल हम तीर्थाटन करए जा रहल छी। अगर जीबैत घुमलौं तँ अहाँ सभ पूँजी घुरा देब नै तँ कोनो बाते नै।
अपन हिस्सा रूपैयाकेँ जेठका बेटा सुरक्षित रखि पिताक प्रतीक्षा करए लगल। मझिला बेटा सूदि‍पर लगा देलक। सझिला एेश-मौजमे फूँकि देलक। छोटका ओकरा पूँजी बूझि कारोबार करए लगल।
तीन सालक बाद पिता आएल। चारूसँ पूँजी आपस मंगलकनि‍। घरसँ आनि जेठका ओहिना रूपैया घुमा देलकनि‍। मझिला सूद सहित मूलधन घुमौलकनि‍। सझिला तँ खर्च कऽ लेने छल तँए अगर-मगर करैत चुप भऽ गेल। छोटका बेवसायसँ खूब कमेने छल तँए चारि गुणा बेसी घुमौलकनि‍।
छोटका बेटाकेँ प्रशंसा करैत पिता बजलाह- रूपैया तँ व्‍याजोपर लगा बढ़ाओल जा सकैत अछि मुदा एहेन काज अधिक पूँजीबलाक छिऐ। मुदा जे अपने पूँजी दुआरे बेरोजगार अछि ओकरा लेल नै। ओकरा तँ जएह पूँजी छै ओइमे अपन श्रमक संग जोड़ि जिनगीकेँ ठाढ़ करए पड़तै। तहूमे परिवारक दायित्व बलाकेँ आरो सोचि-विचारि इमनदारीसँ चलए पड़तै। तखने परिवार चैनसँ चलि सकै छै

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