Thursday, April 12, 2012

सत्‍य विद्या :: जगदीश मण्‍डल


सत्‍य विद्या

विद्याध्ययन साधना छी। जइसँ अन्तः क्षेत्र शुद्ध आ पुरुषार्थक जन्म होइत। जकरा संपादित केने बिना मानव जीवनक सभ उपलब्धि व्यर्थ।
जिनगी भरि भरद्वाज मुनि तपस्या करैत रहलाह। जखन मरैक बेर एलनि तँ देवदूत लेमए एलनि। देवदूतकेँ भारद्वाज मुनि कहलखिन- हमरा अही लोकमे फेर जनमए देल जाउ। स्वर्ग जा कऽ की करब?”
मुनिक बात सुनि, आश्चर्जित होइत देवदूत पुछलकनि- तपक लक्ष्य तँ स्वर्ग प्राप्त करब होइत अछि।
भारद्वाज कहलखिन- ज्ञान संचय आ पूर्ण सत्य तक पहुँचए लेल। अखन हमर ज्ञान-संपदा बहुत कम अछि। तँए, ओते जन्म धरि तपस्या करए चाहै छी जाधरि सत्यकेँ लगसँ नै देखि‍ सकिऐ। स्वर्गसँ ज्ञान बहुत पैघ होइत अछि। स्वर्गसँ सुविधा भेटै छै जबकि‍ ज्ञानसँ आनंद।

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