जखने जागी तखने परात
प्रसिद्ध उपन्यासकार डाॅक्टर क्रोनिन बड़ गरीब रहथि।
मुदा जखन पी.एच.डी. केलनि आ किताब सभ बिकए लगलनि तखन धीरे-धीरे सुभ्यस्त हुअए लगलथि।
धनकेँ अबैत देखि मनो बढ़ए लगलनि। क्रिया-कलाप सेहो बदलए लगलनि। क्रिया-कलापकेँ बदलैत
देखि पत्नी कहलकनि- “जखन हम सभ गरीब छलौं तखने नीक
छलौं जे कमसँ कम हृदैमे दयो तँ छल। मुदा आब दया समाप्त भेल जा रहल अछि।”
पत्नीक
बात सुनि क्रोनिन महसूस करैत कहलखिन- “ठीके कहलौं।
धनीक धनसँ नै होइत बल्कि मन आ हृदैसँ
होइत अछि। हम अपन रास्तासँ भटैक गेल छी। जँ अहाँ नै चेतबितौं
तँ हम आरो आगू बढ़ि ओइ जगहपर पहुँचि
जैतौं जतए एक्कोटा मनुक्खक बास नै होइ छै।”
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