Thursday, April 12, 2012

उल्टा अर्थ :: जगदीश मण्‍डल


उल्टा अर्थ

शिक्षा केहेन देल जाए, की देल जाए ई गंभीर प्रश्न छी।

एक गोटेकेँ दूटा संतान छल। एक बेटा दोसर बेटी। सम्पन्न परिवार। दुनू संतानकेँ बच्चेसँ सुख-सुविधा भेटैत रहल। जइसँ वयस्क होइत-होइत अनेको व्यसनक आदति लगि गेलै
अपन दुनू बच्चाकेँ बिगड़ल देखि‍ पिताक मनमे चिन्ता भेलै। भीतरे-भीतर सोगाए लगल। जइसँ रोगी जकाँ खिन्न हुअए लगल। एक दिन एकटा मित्र पुछलकनि‍- मित्र, अहाँ दिनानुदिन खिन्न किएक भेल जा रहल छी?”
मित्रक बात सुनि ओ उत्तर देलक- मित्र, सभ कि‍छु अछैतो दुनू बच्चा बिगड़ि गेल अछि। वएह चिन्ता मनकेँ पकड़ने अछि।
दुनू गोटे विचारि तँइ केलक जे दुनू बच्चाकेँ एक मास महाभारतक कथा, जइमे धर्म आ सदाचारक सभ तत्व मौजूद अछि, सुनाओल जाए। सएह केलक।
मास दिन महाभारतक कथा सुनलाक बाद दुनू आरो बिगड़ि गेल। बेटा अपना दोस्तकेँ कहलक- भगवान श्री कृष्णकेँ सोलह हजार रानी छलनि तँ दस-बीससँ संबंध राखब केना अधलाह हएत?”
तहिना बेटियो अपन बहिनाकेँ कहलक- कुन्तीकेँ कुमारियेमे बेटा भेलै जे श्रेष्ठ नारीक श्रेणीमे छथि तखन हम कोन अधला काज करै छी।
आब प्रश्न उठैत जे एना किएक भेल?
अखन धरि जे कथा श्रवणक बेवहार अछि ओ अपूर्ण अछि। दृष्टिकोण बदलए लेल एहेन प्रभावी वातावरण बनबए पड़त जइमे कथाक चर्च आ क्रियामे समुचित समन्वय हेबाक चाहिये। तखने दृष्टिकोण बदलत आ समुचित उपयोगी बनत।

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