शालीनता
विद्या व्यक्तिकेँ विनम्र बनबैत अछि। ओकर अन्तरंगक स्तरकेँ
ऊपर उठबैत अछि। शिक्षा
कतौ भेट सकैत अछि मुदा विद्याक सूत्र कतौ-कतौ भेटैत अछि। जइ व्यक्तिकेँ विद्याक सूत्र भेट
जाइत ओइ व्यक्तिक काया-कल्प भऽ जाइत। छान्दोग्य उपनिषदक छठम प्रपाठमे उद्दालक आ श्वेतकेतुक
संवाद अछि।
विद्यालयक परीक्षा पास कऽ श्वेतकेतु आएल। मुदा ने ओकर
आत्म परिष्कृत भेल आ ने उदंडता कमल। जइसँ श्वेतकेतुक पिता उद्दालककेँ दुख भेलनि। खिसिया
कऽ कहलखिन- “अगर व्यक्तित्वमे शालीनताक समावेश
नै भेल तँ अनेरे कियो किअए पढ़ैमे समए नष्ट करत?”
महसूस करैत श्वेतकेतु कहलकनि- “अगर ई रहस्य जँ हमर शिक्षक जनितथि
तँ जिनगी भरि शिक्षके किएक रहितथि वा तँ ऋृषि बनितथि वा द्रष्टा।”
श्वेतकेतुक विचार सुनि पिता मने-मन सोचए लगलथि जे पुत्रक
प्रति पितोक दायित्व होइत। एकटा गुलरिक फड़ आनि उद्दालक फोड़लनि। गुलरिक भीतरमे छोट-छोट
अनेको बीआ छलै। ओइ बीआकेँ देखबैत कहलखिन- “ऐ नान्हि-नान्हिटा बीआक भीतर विशाल वृक्ष छिपल अछि। तहिना जकरा आत्म-ज्ञान भऽ जाइत
छै ओ वृक्षे सदृश विकासो करै छै आ फड़बो-फुलेबो करै अछि। तोहँू ओइ तत्वकेँ चिन्हह।”
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