Thursday, April 5, 2012

चण्डेश्वर खाँ- विहनि कथा- कछमछी

कछमछी

  कर्मचारी सभक महासंघक आह्वानपर आइ पचास दिनसँ हड़ताल चलि रहल छल।

समझौता होएबाक कोनो नामे नै रहैक। सभ दिन धरना-प्रदर्शन चलैत रहैक।

  बेसी दिन हड़ताल रहलासँ कर्मचारी सभ दुबरा गेल छल। बनिया-बेकाल मास दिन धरि तँ कहुना कऽ कऽ उधारी दऽ कऽ सम्हारने रहैक। मुदा आब ओहो सभ थस लऽ लेने रहैक।

  कर्मचारी सभ, सभ दिन अखबार आ रेडियो समाचार देखैत आ सुनैत अछि।

  मुदा कोनो नीक समाचार नै देखि कछमछा जाइत छल।

  मुदा की करत? जँ कियो बीचमे हड़ताल तोड़ि काजपर घुमत तँ ओ कर्मचारी, कर्मचारीक नजरिमे बेइमान कहाओत। मुदा ताहिसँ की, बइमानो कहओलापर तँ दरमाहा नै ने भेटतैक।

  से छोटका कर्मचारी सभ कछमछीमे पड़ल अछि। भोलाक पत्नी बेसी दिनसँ दुखिताहि छैक। दवाइ दोकानसँ दवाइ उठौना लैत अछि। मुदा दोकानदारक तीन मासक उधारीक चुकता नै कएने छल। तेँ टाकाक व्यवस्था कऽ कऽ दवाइ अनबा लेल गेल छल।

  दोकानदारकेँ पुरजा दऽ दवाइ देबा लेल कहलक। दोकानदार पुरजा उनटा-पुनटा कऽ देखि कहि देलकै- ई दवाइ सभ हमरा दोकानमे नै अछि। भोला बाजल- एखन हम नगदी लेब।

ई सूनि दोकानदारकेँ कछमछी लागि गेलैक।

(साभार विदेह विहनि कथा विशेषांक अंक ६७- www.videha.co.in)

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