Friday, April 6, 2012

शारदानगर



दुर्गा पूजाक नाटकक दू दृश्यक बीच नर्तकीक नाच।
“शारदानगरक ढोढ़ाँइ दस टाका तहे-तहे दिलसँ दै छथि”- नर्तकी रुखसाना बजै छथि।
“बनारसक छै रौ।”
“धुर, मुजफ्फरपुरसँ लऽ अनै छै आ झुट्ठो बनारसक..”।
“हौ मुदा ई शारदानगर कोन गाम छै”।
“बुझलही नहि। पट्टी टोलक जे पाइबला सभ रहै, से सड़कक ओहिपार टोल बना लेलकै आ लक्ष्मीपुर नाम राखि लेलकै- जे पट्टी टोलक हम सभ नहि छी। लक्ष्मी आ सरस्वतीक झगड़ा बुझल नहि छौह। से भगवानक झगड़ाकेँ सोझाँ अनने अछि। पट्टी टोल गाम गरिबहा सभक अछि, सभटा अछि महिसबार सभ। मुदा भगवानक झगड़ामे गामक नाम सरस्वतीक नामपर शारदानगर राखि लै गेल अछि।”
“ चल नर्तकीकेँ तँ अही बहन्ने पाइ दै जाइ छै”।

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