Friday, April 6, 2012

बाल गुरु




ओम नाम रहै ओहि बच्चाक।
मंशा नाम रहै ओहि बुच्चीक।
दिल्लीक कोनो आवासीय परिसरमे दुनु गोटेक परिवार रहै छलै।
बच्चा रहए मिथिलाक आ बुच्ची रहए पंजाबक। बच्चाक माए गृहणी आ पिता नोकरिहारा। बुच्चीक माए आ पिता दुनू नोकरिहारा।
एह, ओकर पिताक मुरेठा देखैबला रहै छल। मंशाक माए अपन पतिकेँ सरदारजी कहै छलि। मंशाक घरमे ओड़ीसाक एकटा बचिया नोकरी करै छलि, महुआ। वैह मंशाक देख-रेख करै छलि। आवासीय परिसरक घासक पार्कमे मंशाकेँ महुआ आनै छलि।
ओम ओहि पार्कमे अपन माएक संग अबै छल। मंशा आ ओम ओही पार्कमे खेलाइ-धुपाइ छल।
ओमक जन्मदिनमे मंशा अबिते छली। माए ओकरा लेल उपहार कीनि कऽ राखि दैत छलीह। महुआ मंशाकेँ लऽ कऽ समएसँ ओमक जन्मदिनमे पहुँचि जाइ छलीह। ओम आ मंशा दुनूक चारिम बरख पूरल छलन्हि आ पाँचम चढ़ल छलन्हि।

मुदा ओहि आवासीय परिसरमे एकटा बदमाश बच्चा आबि गेल। ओ सभ बच्चाकेँ तंग करए लागल। ओकर नाम रहै सुसेन।
“गै मंशा, दुजुट्टी किए बन्हने छेँ?”
“तोरा की?”
“गै मंशा, मुँह किए फुलेने छेँ?”
“मुँह किए फुलेने रहब?”
“मंशा गै, तोहर दोस ओम किए एहन गन्दा छौ?”
आब तँ मंशाकेँ ततेक तामस भेलै जकर कहब नहि। ओ जोर-जोरसँ बजए लागलि-
“ओम हमर दोस छी। जे एकरा गन्दा कहैए से अपने गन्दा अछि।”
मंशा ओमक हाथ पकड़ने आगाँ बढ़ि गेलि आ सभ गप ओमक माएकेँ कहलकै।
“हम सुसेनपर तमसाइ छलहुँ आ ई चुपचाप ठाढ़ छल।” मंशा ओमक माएकेँ कहलक।
“किए ओम। अहाँकेँ सुसेन गन्दा कहलक आ अहाँ चुपचाप ठाढ़ रहि गेलहुँ।”- ओमसँ ओकर माए पुछलखिन्ह।
“माए, ओ हमरा नै चिन्हैए। नव आएल अछि। तेँ हमरा गन्दा कहलक। जखन ओ हमरा चीन्हि जाएत तँ थोड़बेक गन्दा कहत।”
माए आँखिमे नोर आबि गेलन्हि।
हुनको पहिने तामस आबि गेल छलन्हि जे हमर बेटा किए चुप रहि गेल। ओ सुसेनकेँ किछु कहलक किए नै। मुदा तखने हुनका मंशा देखाइ पड़लन्हि। देखियौ कतेक निश्छल अछि। आ दुनू बच्चाकेँ ओ चुम्मा लेमए लगलीह।

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