Thursday, April 5, 2012

चण्डेश्वर खाँक विहनि कथा- बिसवास

बिसवास

हमर पत्नी तीन बरखसँ दुखिताहि छथि, गैस्टीकक रोग छनि। एकपर एक डागदरक इलाज चलल अछि मुदा ठीक नै भऽ रहल छनि।

  मुदा एहि बेर एकटा पैघ डागदरसँ देखा रहल छियनि। जाँचे-पड़तालमे हजारसँ बेसी लागि गेल अछि। डागदरकेँ सभ बात पत्नी कानि-कानि कऽ कहने रहथि। डागदर साहेब कहलनि- एहि बेर निरकटेल भऽ कऽ ठीक भऽ जाएत। जेना-जेना हम कहलहुँ तहिना करब।

  डागदर साहेबक कहब रहनि- दिनमे कमसँ कम चारि-पाँच बेर थोर-थोर भोजन करब। दवाइ कहियो नै छोड़ब।

डागदरक मोताबिक सभ बात चलि रहल छैक।

  मुदा काल्हि रवि छैक। से पत्नी रविक तैयारीमे लागल छलीह। हम पत्नीकेँ बुझबैत कहलियनि- डागदर साहेबक बात मोन अछि ने, ओ कहलनि- हँ हँ, डागदर साहेबक सभ बात मोने अछि, मुदा रवि कोना छोड़ि दी। बाल बच्चा आ अहाँ छी। डागदर तँ डागदरे होइत छैक। ओ कोनो भगवान नै छथि।


(साभार विदेह विहनि कथा विशेषांक अंक ६७- www.videha.co.in)

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