स्वार्थपूर्ण विचार
एकटा बच्चाक मृत्यु भऽ गेलै। अभिभावक संग किछु गोटे ओकरा उठा कऽ असमसान लऽ गेल। बरखा होइत रहए। असमसानमे सभ विचारए लगल जे एहेन दुरकाल समैमे लाशकेँ की कएल जाय? अपनामे सभ विचारिते छल आकि बिलसँ एकटा सियार निकलि कहलकै- “एहेन समैमे लाशकेँ जरौनाइसँ नीक माटिमे गारनाइ हएत। धरती माएक गोदमे समरपित करब सभसँ नीक हएत।”
सियारक बात समाप्तो नै भेल छल अाकि काछु कहए लगलै- “धारमे फेकि दियौ। ऐसँ नीक दोसर नै हएत।”
ताबे एकटा गीध उड़ैत आबि कहए लगलै- “सभसँ नीक हएत जे ओहिना फेकि दियौ, धारेमे नहा लिअ आ गामपर चलि जाउ।”
कठियारीबला सभ तीनूक चलाकी बूझि गेल। तीनूकेँ धन्यवाद दैत विदा केलक। बर्खो छूटि गेलै। सभ मिलि चीता खुनि जारन दऽ जरा देलक।
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