Wednesday, April 11, 2012

स्वार्थपूर्ण विचार :: जगदीश मण्‍डल


स्वार्थपूर्ण विचार

एकटा बच्चाक मृत्यु भऽ गेलै। अभिभावक संग किछु गोटे ओकरा उठा कऽ असमसान ल गेल। बरखा होइत रहए। असमसानमे सभ विचारए लगल जे एहेन दुरकाल समैमे लाशकेँ की कएल जाय? अपनामे सभ विचारिते छल आकि बिलसँ एकटा सियार निकलि कहलकै- एहेन समैमे लाशकेँ जरौनाइसँ नीक माटिमे गारनाइ हएत। धरती माएक गोदमे समरपित करब सभसँ नीक हएत।
सियारक बात समाप्तो नै भेल छल अाकि काछु कहए लगलै- धारमे फेकि‍ दियौ। ऐसँ नीक दोसर नै हएत।
ताबे एकटा गीध उड़ैत आबि कहए लगलै- सभसँ नीक हएत जे ओहिना फेकि‍ दियौ, धारेमे नहा लिअ आ गामपर चलि जाउ।
कठि‍यारीबला सभ तीनूक चलाकी बूझि गेल। तीनूकेँ धन्यवाद दैत विदा केलक। बर्खो छूटि गेलै। सभ मिलि‍ चीता खुनि जारन द जरा देलक।


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