Friday, April 6, 2012

बाढ़ि, भूख आ प्रवास



एहि बेरक बाढ़ि पछिला जेकाँ सन नै । सभटा सुड्डाह कऽ देलक आगियोसँ जल्दी। खेत पथारमे रेत आ बालुमे खाली अल्हुआक खेती। दुनू साँझ पप्पू भाइ अल्हुआ खाइत अकच्छ भऽ गेल छथि। वैदिक थिकाह, मुदा एहि कोसिकन्हामे ... 

मुदा देखू भाग्य!
हरिद्वार सँ भातिजक चिठ्टी अबैत अछि- “आबि जाऊ काका, एतए वैदिक लोकनिक बड्ड पूछि अछि। भरि दिन हस्त-सन्चालन आ उदात्त, अनुदात्त आ स्वरित स्वरक मेलसँ वेदक पाठ करू आ साँझमे नीक – निकुइत मिष्टान्न, खीर-पूरी खाऊ”। 
वैदिक जी ट्रेन धेलन्हि आ पहुँचि गेलाह हरिद्वार । ओतए पहुँचि स्नान-ध्यान कऽ भरि दिन कंठ फाड़ि आ हाथ घुमाए वैदिक मंत्रक पाठ केलन्हि । साँझमे मनसूबा बान्हि खेनाइपर बैसलाह जे आब बड्ड दिनुका बाद खीर-पूड़ी खएबाक अवसर भेटत।
मुदा एम्हर हिनका हरिद्वार पहुँचबासँ पहिनहि दोसर पंडित लोकनिमे विचार-विमर्श भेल कारण ओ लोकनि खीर- पूड़ी खाइत-खाइत अकच्छ भऽ गेल छलाह। से सर्वसम्मतिसँ विचार कएल गेल जे आइसँ किछु दिनक लेल खेनाइक मेन्यू बदलल जाए। विचार भेल जे आइसँ वेदपाठक बाद अल्हुआ आ दूध किछु दिन धरि देल जाए। 
वैदिक जी खाइ लेल मनसूबा बन्हने बैसल छलाह जे आइ जे खेनाइ अएत तँ ओहि खेनाइकेँ हिस्सक छोड़ा देबैक।
मुदा तखने वज्रपात भेल, –सोझाँ अल्हुआ महाराज विद्यमान ।
वैदिक जी हाथ जोड़ैत अल्हुआ महराजसँ बजलाह-
“सरकार हम तँ ट्रेनसँ आएल छी मुदा अहाँ कोन सवारीसँ अएलहुँ जे हमरासँ पहिनहिसँ विराजमान छी ।“ 


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