Friday, April 6, 2012

मिथिलाक उद्योग-२



मिथिलाक बोनमे रहनिहार जीव-जन्तु सभ आपसमे विचार कएलक- –
“अपन क्षेत्रक दादा सभ उद्योगक विनाश कएने अछि, ओतुक्का भीरू लोक सभ उद्योग लगेबासँ परहेज करैत अछि”- गीदड़ बाजल।
“तखन अपनहि सभ किएक नै फैक्टरी खोलैत छी, कोन दादाक मजाल जे हमरा सभ लग आओत”।-बाघ कड़कल।

प्रस्ताव पास भेल जे आब जंगलमे फैक्ट्री खुजत आ नगर जा कए उद्योग विभागसँ एकर पंजीकरण करबाओल जएत। ओतए भीरू मैथिल ब्राह्मण आ कर्ण कायस्थ सभक राज अछि, ओ सभ बड्ड ओस्ताज होइत अछि।
गीदड़, बानर, लोमड़ि, नीलगाय सभक संग गदहा सेहो पंजीकरण लेल अपन सेवा देबाक लेल अगू बढ़लाह। सभसँ पहिने लोमड़िकेँ मौका भेटल कारण ओ सेहो जंगलक ओस्ताज अछि।

किछु दुनुका बाद दौग-बरहा केलाक बाद ओ हारि मानि लेलक।

“यौ बाघ महाराज। बड्ड कोन-कोन तरहक दस्तावेज मँगैत अछि नै भऽ सकत हमरा बुते”।

फेर एक एक कए सभ जाइत गेलाह आ घुरि कए अबैत गेलाह ।
गदहा कहैत रहल जे एक मौका हमरो देल जाए ।
मुदा सभ सोचथि जे बुझू, एहेन पेंचीला सभ विफल भऽ आबि गेलाह मुदा फैक्टरीक पंजीकरण नै करबाए सकलाह आ ई गदहा जे मूर्खताक लेल आ बोझ बहबाक लेल प्रसिद्ध अछि, की कऽ सकत ?

“ठीक छैक”- अन्तमे हारि कए बाघ कहलन्हि- – 
“जाउ अहूँ देखि आउ एक बेर”।

मुदा ई की ? साँझ होइत देरी गदहा महाराज जे छलाह से फैक्ट्रीक पंजीकरण प्रमाणपत्र लऽ सोझाँ हाजिर भऽ गेलाह। 

बाघ पुछलन्हि- –“औ जी गदहा महाराज ! एतेक कलामी जन्तु सभ जतए विफल भऽ गेलथि ओतए अहाँक सफलताक मंत्र की”?
गदहा महाराज उत्तर देलन्हि- 
“महाराज एकर मंत्र अछि जातिवाद आ भाइ-भतीजावाद। उद्योग विभागमे हमर सभ सरे-सम्बन्धी लोकनि छथि ने”!

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