Friday, April 6, 2012

विनीत उत्पल- विहनि कथा-श्री गुरूवै नम:



गुरूर्ब्रह्मा, गुरूर्विष्णु, गुरूर्देवो महेश्वर:।
गुरू साक्षात परम ब्रह्म तस्मै श्री गुरूवै नम:।

नेनासँ ई श्लोक मास्टरजी लेल सुनैत रही। हमरो एहने मास्टर साहब भेटल जे कहैत छलाह, खूब पढ़ू। पढ़हि के संग अपन जीवनमे सेहो ईमानदार रहू। ईमानदार रहबै तँ शुरूमे दिक्कत होएत, मुदा बादमे एक गर्व महसूस करब। समाजमे इज्जत भेटत। झूठ नहि बाजू। अपन बातपर रहू। जुबानक पक्का रहू...। संगे-संग भगवान रामक कथा सेहो बतौलथिन जे ऽरघुकुल रीति सदा चलि आई, प्राण जाय पर वचन न जाईऽ आआ॓र राजा हरिश्चंद्रक कथा सेहो क्लासक बाद सुनाबैत रहै।
एते साल से ई सभ गप सुनैत आआ॓र पिता केँ एहि मार्ग पर देखैत हमरोमे ई सभ गुण आबि गेल। ईमानदार रहलौं तऽ क्लास मे फर्स्ट करैत रही। नीक स्कूल-कॉलेज मे एडिमिशन सेहो भऽ गेल। पढ़ाई खत्म केलाक बाद नीक सन नौकरियो भेट गेल। गामसँ दिल्ली आबि गेलहुं। दिल्ली बला भऽ गेलहुं मुदा बेइमान नहि भऽ सकलहुं। जकरा लेल दिल्ली जानल जाइत अछि। ताहि सं दिल्ली लेल लोक कहैत अछि, ऽबिन दिल के अछि दिल्लीऽ।
संजोग सं मास्टर लड़कीसँ ब्याह भेल। गाममे रही। सोचहि लागलौं, की करी, कनिया केँ नौकरी कराबी कि नहि। एक दिन मचान पर गामक लोक लग बैसल रही। तखने इलाकामे प्रतििष्ठत 55 सालक मास्टरजी शंकरदेव एलाह। गप-ठहाक्काक बीच कनियाक नौकरीक गप आयल। आ॓ सलाह देलखिन, ऽअंयौ कनिया के किए नौकरी छोड़ाएब। देखैत नहि छिऐ मुखियाक पुतोहूकेँ। आ॓ कहां कहियो स्कूल जाइत छै। मुखिया अप्पन पुतोहूक बदलामे एकटा मौगी केँ राखि देने छै। आ॓ गरीब अछि। आ॓करा मुखिया दू हजार टका दैत अछि। अहि कलयुग मे कियो एकरा देखनियार अछि? ईमानदारीक जमाना नहि अछि आब। एकरा सं आ॓हि गरीबक कल्याण भऽ जाइत अछि आ काजो भऽ जाइत अछि। अहूँ किए नहि आ॓हिना कोनो गरीबक कल्याण कऽ दैत छी?ऽ
ई गप सुनि कऽ लागल जना हमरा सौंसे देह काठि मारि देलक। हमरा अपना मास्टरजीक कहल आआ॓र पिताक आचार-विचार आंखिक आगू घूरय लागल।

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