Friday, April 6, 2012

डॉ . धनाकर ठाकुर - विहनि कथा-हमरा एकर एक बायोडाटा चाही




यद्यपि  बौआ झा व्यस्त छलथि ओ निर्णय लेने छलथि जे आई ओ प्रोफ़ेसर प्रसादक डेरा तकिये के रहताह। ओहुना सारि शारदा कहने छलथिन जे हुनक सखी उमा जे गोल्ड मेडलिस्ट छलखिन्ह पिताक विषय  भौतिकीमे,  से ने त   नौकरी केल्खिंह ने बियाहे। बौआ झा हर साल  रेडियो स्टेशन दिस हुनक पूर्ण डेरा ताकि आबथि आ हड़बड़ीमे वापस पटना चली जाइत छलाह।
 एहू साल गेला मुदा कोनो थाह पता नहि। ओ एक उमेरगर लोक लग गेलाह जे सड़क कात  ठाढ़ छलाह।
"यौ, अहाँ प्रोफ़ेसर प्रसादक डेरा  बताएब?"
"कोन प्रसाद, एतऽ तँ तीन- तीन प्रसाद छथि-  गणितबला,  दबाइबला की किताबबला?"
"अहाँकेँ की कहू , ओ तँ पैघ विद्वान  छ्लथि  जिनक किताब हमर पिताजी छपैत छलखिन्ह।"
"तँ अहाँक पिताजी छापाखाना बला।"
"सैह बुझ।"
"देखू , एक भलमानुष किताबबला प्रसादक खोजमे कियो कियो प्रोफ़ेसर अबैत रहैत अछि -बड़का-बड़का प्रोफ़ेसर।"
"हाँ यौ वैह , हुनके तँ हम तकैत छी। "
" अहाँ चलि जाऊ ओही बड़का पोखरी कात जतऽ कोणपर एक मकान होएत।"
 बौआ झा परेशान, पोखरिक हर कोन पर मकान।
मुदा आइ ओ ताकिये कऽ रहताह।
फेर एक आदमी-
मकान नहि फ्लैट कहने होयत-
चली जाऊ सीधा एक किलोमीटर ओतऽ सँ दहिनामे एक फ्लैटमे एक बूढ़ प्रोफ़ेसर जरुर अछि, जकर एक बिनबियाहल बेटी छैक, सेवा करैत छैक माय बापक, बेटा पुतोहु अमेरिकामे ।"
बौआ झा जा कऽ  निचला फ्लैटक   घंटी बजेलाह। एक महिला निकललीह जे हुनका सारि जेकाँ  बुझेलीह।
"ककरासँ भेंट करक अछि?"
"तोहर  पिताजीसँ।"
"अहाँक की नाम?"
"नहि बताएब- हुनके बताएब।"
"बताउ ने, हमहूँ पी एच  डी  छी। "
"से जरुर होएब, पैघ प्रोफ़ेसरक बेटी। "
"अहाँक की नाम?"
ताबत हुनक माय निकललीह-
":देखू  माँ, ई अपन नामो नै बतबैत छथि आ तुम-ताम करैत छथि। "
" जरुर कियो लगके छथुन्ह। "
"बताऊ अपन परिचय?"
"प्रोफेसर अहिकेँ बतेबन्हि "
"की बात- की होइत अछि?" प्रोफ़ेसर निकललाह
"अहाँ के?"
"चिन्हू"
"नहि चिन्हलहुँ।"
"चिन्हू, हम वैह जे १० बरख पहिने तक हर साल रेडियो स्टेशनबला डेरा अबैत छलहुँ, सालमे एक बेर। "
"हम बूढ़ भेलहुँ, माफ़ करू नहि चिन्हलहुँ।"
"मुदा हम नहि बताएब, नहि चिन्हब तँ हम एहिना चलि जाएब।"
"बोली तँ सुनल लागैत अछि.. .. ओ  अहाँ झाजीक बेटा।"
"हँ।"
उमाक माइ सेहो चिन्हलन्हि:
"झाजीक बेटा , तूँ, तोहर पिताक उपकार हम सभ नहि बिसरबौ, ...तोरा नहि चिन्हलियऊ।"
"कोन उपकार, ओ तँ कहियो किछु नहि कहलाह.. हुनक मरनो आब १२ साल भेल।"
प्रोफ़ेसर- ' ओ बाजएबला नहि छलाह किछु।"
उमाक माँ- "जखन प्रसादजी इंग्लैंड छलाह हमरा सभकेँ कियो देखनिहार नहि, चिट्ठी देलियन्हि तँ  ओ झाजीकेँ लिखलन्हि आ झाजी आबि कऽ चालीस हजार रूपया दऽ  गेलाह आ हमरा कहलाह जे हुनको नहि कहबन्हि, ई रूपया हुनक किताबक रोयाल्टीमे धीरे-धीरे चुकि जेतैक वा फेर ओ दोसरे किताब लिखि देताह।
प्रोफ़ेसर- " यदि ओहिमे हमरा आर देबाक हो तँ कहू हम अपन बता कऽ लिखबैक  वा पेंसन  सिक्स्थ पे रिविजन   भेला पर पठवा देब।"
बौआ झा- " नहि यौ, हमरा तँ बाबूजी किछु नहि कहलाह कहियो। अहाँ तँ विद्वान छी, हमर पिता तँ अनेक समांगकेँ लेखक बनवा देलथि लिखबा लिखबाकऽ। हुनके नामपर तँ हमहूँ सभ  जिबैत छी।  हम तँ अहाँक दर्शन लेल आएल छलहुँ,  ओना उमा जँ अहाँक पोथीकेँ रिवाइज कऽ देती तँ फेर हम छापि देब आ ओहो चलैत रहत।
आ एक कातमे जा कऽ उमाक माँकेँ कहलखिन्ह - "हमरा एकर एक बायोडाटा चाही"।
"किएक?
"नहि बताएब"
बुझि गेलहुँ।
उमा  एहि बीच घसकि गेल, जल्दी दोसर कमरामे अपन कएल शीऊथिकेँ शीसामे देखैत आ सोचैत हमर वृद्ध माता-पिताकेँ के देखतन्हि, जाहि लेल हम लक्ष्मीक कहलो उत्तर लेक्चररशिप छोडि देलहुँ?

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