हाथ मे माइक, गरा मे फूलक माला, आँखि मे तेज, वाणी मे जोश। नेता जी मंच
पर ठाढ़ भए कए धूआँधार भाषण दए रहल छलाह----
खाली एक बेर हमरा जितएबाक कष्ट करु, हम समस्त जनताक कष्ट के अपन कष्ट
बूझब । भ्रष्टाचार के मेटा देबैक। गुंडा-लफंगाक नामो-निशान खत्म कए
देबैक-------
एहि अंतिम आश्वासन के खत्म होइतहिं श्रोता मे सँ केओ चिचिआ उठल-------
नेता जी जखन अहाँ गुंडा-लफंगाक नामो-निशान मेटा देबैक त अहाँक निशान कतए रहत।
आ नेता जी गप्प के जानि-बूझि अनठा कए ममच सँ उतरि विदा भए गेलाह।
आपकी इस लघुकथा पर हार्दिक बधाई, आशीषभाईजी.
ReplyDeleteकिसी जागरुक श्रोता द्वारा चिचिया कर नेताजी से प्रश्न किया जाना व्यावहारिक धरातल पर समीचीन नहीं लगता.
इस तथ्यपरक प्रश्न को इसी प्रसंग के क्रम में कुछ जागरुक श्रोताओं में से किसी एक के द्वारा आपस में बतियाते हुए उठाया गया होता. और कथा का समापन उन सभी के बेसाख़्ता ठहाके के साथ हुआ होता.
आशीषजी, आपकी कलम सटीक कथा-प्रसंग बुनती है. हार्दिक बधाई स्वीकारें.. .