Thursday, April 5, 2012

ऋषि वशिष्ठ- दूटा विहनि कथा


प्रमाण-पत्र

बड्ड भारी समारोहक आयोजन कएल गेलै। जिलाक बड़का-बड़का पदाधिकारीक जुटान गाममे भेल छलै। जिलाधिकारी तँ जिलाक नेतागण। भाषण-भूषण खतम भेलै तँ जिला शिक्षा अधीक्षक गामक मुखिया दिस एकटा कागज बढ़बैत बजलाह-“ मुखियाजी अपने एहिपर दस्तखत कऽ दिऔ, अहाँक पंचायत पूर्ण साक्षर भऽ गेल, तकरा लेल ई प्रमाणपत्र अछि।”

मुखियाजी सकुचाइत बजलाह- “मुदा हम तँ औंठा छाप देब, हमरा तँदस्तखत करऽ नहि अबैए? ”

अधीक्षक एम्हर-ओम्हर तकलनि आ बाजि उठलाह- हौउ, औंठो चलतै! कनेक जल्दी करू।”

मुखियाजी कजरौटामे औंठा रगड़ि कऽ निशान लगौलनि। ओ औंठाकेँ माथक केशमे पोछैत बजलाह- “अहोभाग्य हमर आ हमरा पंचायतक।”

अधीक्षक मंचपर गरजैत घोषणा केलनि-“गर्वक संग घोषित कऽ रहल छी जे अहाँक पंचायत संपूर्ण साक्षर भऽ गेल।”

मुखियाजी खन ओहि प्रमाणपत्र दिस तकैत छथि खन अपन करियाओल औंठा दिस।


 २

मनमौजी महादेव

मंदिरक आगाँ कनैल फूलक गाछतर गँजेरी, भंगेरी आ तरिपिब्बा आपसमे बहस करैत छल।

गँजेरीक कहब छलै जे- “शेर अंडा दैत छैक।”

तरिपिब्बाक कहब छलै जे- “शेर बच्चा दैत छैक।”

बात बढ़ैत गेलै आ बातसँ बतंगर भऽ गेलै। विवाद बढ़िकऽ हाथापाहीक नौबत आबि गेलै।

जखन भंगेरीकेँ दुनूक कटाउझ असहाज भऽ गेलै तँ ओ बाजि उठल- “तोँ दुनू अनेरे लड़ै छह।..हौ एतबो नै बुझै छहक जे शेर जंगलक राजा होइछै, ओकरा लेल कोन छै? जखन मोन हेतै तँ अंडा देतै आ जखन मोन हेतै तँ बच्चा देतै। जखन मोन हेतै तँ शाकाहारी बनतै आ जखन मोन हेतै तँ काँचे माउस चिबेतै।”

तरिपिब्बाकेँ जेना भक्क टुटलैक। ओ बाजि उठल- “जा, से कोना हेतै हौ! बच्चा तँ देतै शेरनी। शेर कोना बच्चा देतै?”

भंगेरी बुहुँसैत बाजल- “धुर बतहा, एतबो नै बुझै छही जे ओ भेलै सरकार! आ सरकार कोन!..ओकर अपन मनमौजी छै, जे चाहतै से करतै।”

(साभार विदेह विहनि कथा विशेषांक अंक ६७- www.videha.co.in)

No comments:

Post a Comment