Thursday, April 5, 2012

सुभाष चन्द्र यादवक विहनि कथा- पति-पत्नी सम्वाद

पति-पत्नी सम्वाद

(एहि कथामे पहिल सम्वाद पति आ दोसर पत्नीक अछि।)

(एहि नाटकमे पहिल पात्र पति आ दोसर पात्र पत्नी अछि।)

 यै, सुनै छिऐ? हमरा कान छै जे सुनबै? कखैन सँ हाक दाइत रही! की छिऐ?

 चाह बना रहल छी?

बैठल लोग केँ एहिना चाह सुझै छै!

करै की छी?

सुतल छिऐ!

तमसाएल छी की ?

नै, हम किए तमसाएब!

तखन एना किए बजै छी?

अहाँ बहीर छी की?

से किए?

आबाज नै जाइए?

कोन आबाज?

सिल्ला के?

अरे अहाँ किछु पीस रहल छी?

तब ने बैठल-बैठल गीरब?

की पीस रहल छी?

मसल्ला, अओर की पीसब? अपन कप्पार!

धुर, अहूँ कथी-कथीमे लागल रहै छी। चाह बनाएब से नै?

अहीं कोन उनटन करै छी! हरदम कहब; चाह बनबै छी? चाह बनबै छी? हम एहिसँ अकच्छ भऽ गेल छी।

तखन छोड़ू।

छोड़ू किए? बना दै छी। लेकिन पीसल होएत तब ने!

बेस, जे अहाँक इच्छा!
(साभार विदेह विहनि कथा विशेषांक अंक ६७- www.videha.co.in)

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