सतबरती
आभा आ मनुक प्रेम जगजाहिर छल। दहेज दुनुक विवाहमे भदवा बनि गेल। आभाक बाबू ओकर विवाह सुमनसँ कऽ निफिकिर भऽ गेलाह।
-अनकोसँ प्रेम चलै छल तैयो सतवरतीए छी आभा?
-तँ की। प्रेम लोक मनसँ करैछ। हम कोनो देह समर्पण केलिऐ।
-आब जँ मौका भेटौ?
आभा मौला जाइछ- धुर छोड़ बिसरल राग।...कहाँ के बात कहाँ बिला गेल।
-तँ ठीके बिसरि गेलही?
-ईस्स! शूल कहु बिसरइ।...ओहो हियाक कीयामे बन्द।
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