Thursday, April 5, 2012

परमेश्वर कापड़िक विहनि कथा- सतबरती

सतबरती

आभा आ मनुक प्रेम जगजाहिर छल। दहेज दुनुक विवाहमे भदवा बनि गेल। आभाक बाबू ओकर विवाह सुमनसँ कऽ निफिकिर भऽ गेलाह।

-अनकोसँ प्रेम चलै छल तैयो सतवरतीए छी आभा?

-तँ की। प्रेम लोक मनसँ करैछ। हम कोनो देह समर्पण केलिऐ।

-आब जँ मौका भेटौ?

आभा मौला जाइछ- धुर छोड़ बिसरल राग।...कहाँ के बात कहाँ बिला गेल।

-तँ ठीके बिसरि गेलही?

-ईस्स! शूल कहु बिसरइ।...ओहो हियाक कीयामे बन्द।

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