मूल-मंत्र
तीन दिनसँ ऑफिसक चक्कर काटि
रहल छी मुदा, एखनो धरि प्रमाण पत्र बनैक आशा नै बुझना जाइत अछि। चाकरी निमित
आवेदन करब समए बड़ कम अछि। ककरो पूछैत छी काज कोना होएत तँ कहैत अछि- “कखनो हाकिम नै
तँ कखनो किरानी नै।” काज
कोना होएत?
तखन
बीरू भाय आबि पुछलक- “अहॉं किएक
उदास भऽ बैसल छी?”
बीरू भायकेँ अपन व्यथा कथा कहि सुनौलौं। हुनक गंजीपर लिखल रहए- ‘होएवाक
चाही ई मूलमंत्र भ्रष्टाचारक हुअए अंत‘
बीरू
भाय बाजल- “हँ!
काज भए जाएत मुदा, चाह-पानक खचर लगत? हाकीम नै अछि तँ कोनो बात नै। अहॉंक काज भऽ जाएत।”
चाह-पानक
खरच कतेक पॉंच नै दस टका आओर की सोचेत हम बजलौं- “काज करा दिअ। समए बड़ कम अछि।”
बीरू
भाय सभटा कागज लऽ कऽ ऑफिस जाइत बजलाह- “चाह-पान कऽ किछु कालक बाद अहॉं आपस आबि प्रमाण पत्र
लऽ जाउ।”
किछु खानक बाद पहुँचलौं। बीरू भाय प्रमाण पत्र दैत बाजल- “लावह चाह पानक
खर्चा?”
एकटा
दस टकही सिक्का निकाली बीरू भाय दिस बढ़ेलौं। बीरू भाइक क्रोध आसमान पड़ चढ़ि
गेल ओ बाजल- “एक सए
चाहक, एक सए पानक दूइ सए टाका निकालह नै तँ ऐ कागजकेँ खण्ड-खण्ड कऽ फेंक
देबह।”
कोनो
उपाए नै देखैत लाचार भऽ बीरू भायकेँ दुइ सए टाका दिअ पड़ल आ तखन हमरा समझमे आएल
की होइत अछि ऐ मूलमंत्रक मतलब!
सम्पर्क-
गाम, पोस्ट, रतनसारा
भाया- बेलही
जिला- मधुबनी
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