Friday, April 6, 2012

उमेश मंडलक वि‍हनि‍ कथा

जुगक खेल-

अंति‍म साउनमे झमकौआ बर्खा भेल। चर-चांचर, पोखरि‍-झाखरि‍, डबड़ा-डुबड़ी, खाधि‍-खुधि‍ सभ भरि‍ गेल जेना धड़तीये डूमि‍‍ गेल। माटि‍क तरसँ पीअर-पीअर बेंग नि‍कलि‍-नि‍कलि‍ पानि‍मे हेलए लागल। तान दऽ दऽ गेबो करए आ कुदि‍-कुदि‍ एक-दोसरपर सवाड़ि‍ओ कसैत छल। एक-दोसरपर चढ़ैत-चढ़ैत तीनटा बेंगक सीढ़ी नुमा खाढ़ी बनि‍ गेल। ऊपरका मोछ टेरैत झुमि‍-झुमि‍ गबैत छल- बेंगे छी तँ छी राजा तँ हमहीं छी।‍
अधखि‍ल्‍लू फूल जकाँ बीचला बजैत रहए- जेहने तर तेहने ऊपर। दुनू एक्के रंग।‍
बोझक तरमे दबाएल नि‍चला कुहरि‍-कुहरि‍ मि‍रमि‍ड़ाइत रहए- गेलौं तँ हम गेलौं। गेलौं तँ हम गेलौं। गेलौं तँ हम गेलौं।

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