सालक पहिल दिन। कविजी भोरेसँ नव वर्ष मनएबाक प्रकियामे लागल छलाह। चौपाड़िपर सँ सिया झाक प्रसिद्ध पेड़ा एक पसेरी आनल गेल। सुधीर कामति नन्दन बाबाक जिरातमे फुलकोबी लगौने छलाह। ओइ खेतक टटका फुलकोबी तीन सेर कीन लेलनि। गामक किछु इष्ट-मित्र सबहक चाह पार्टीक आयोजन करबाक छलनि। कवि जीक नव रूपसँ अर्द्धांगिनी परेशान भऽ कऽ पुछलनि- “पहिने तँ नव वर्षक विरोध करैत छलौं, हमरा सबहक लेल नवका साल शक् संवत आ होरी थिक आब की भऽ गेल?”
“चन्द्रकला, एना नै अकचकाऊ, समएक संग हमरो चलऽ पड़त। जखन सभ लोक पहिल जनवरीकेँ स्वीकार कऽ लेलक तँ हम पाछाँ कोना रहब। समएसँ आगाँ नै जलबाक चाही मुदा बेसी पाछाँ रहब सेहो ठीक नै।”
कवि जीक तर्कक आगाँ श्रीमती गुम्म। दलानपर लोकक जुटान होमय लागल। पेड़ा, पकौड़ीक संग-संग मकयवाड़ी लीफक चाह। रमाश्रय जी, लक्ष्मी चौधरी, बैजू भाय, राधाबाबू, नागो बाबा, भोला साहुजी सन कवि जीक इष्ट-मित्रक संग-संग नवतुरिया पिरही आ किछु समाजक पछातिक लोक सभ सेहो टी पार्टीक आनंद लऽ रहल छलाह। गामक डाॅक्टर यशोदा पाठक दलानक आगाँसँ झटकल जाइत छलाह। कविजी हाक देलनि- “यशोदा भाय, कनेक्शन जलपान कऽ लिअ।” डॉक्टर साहेब कहलनि- “भैया, हम घुुरि कऽ अबैत छी। हरिजन टोलमे सुकेशर मोचीक पुतोहूकेँ लेबर पेन भऽ रहल छन्हि, कनेक्शन जल्दीमे छी।”
लेबर पेनक नाओं सुनिते राधाबाबू विस्मित होइत बजलाह- “कविजी, ई लेबर पेन तँ बुझैत छी जे प्रसव पीड़ाकेँ कहल जाइछ मुदा लेबरक अर्थ होइत ऐछ मजदूर तखन मातृसुखक अनुभूति-पीड़ाकेँ लेबर पेन किअए कहल जाइत ऐछ?”
कविजी फॅसि गेलाह, गुम्म! लक्ष्मी चौधरी बीच-बचाव करैत बजलाह- “घबराउ नै राधकक्का, कोनो एहेन प्रश्न बनबे नै कएल जकर उत्तर कवि जी नै दऽ सकैत छथि।”
चाहक चुस्की लैत कविजी बजलाह- “अर्थयुगक आधारपर समाजक पाँच गोट वर्ग होइत ऐछ- कुलीन वा सामन्त जैमे समाजक अगिला पॉति रहैत छथि जेना राजनेता, पैघ-पैघ व्यापारी, अधिकारी आदि। दोसर वर्ग श्रमपोषी छैक जैमे कर्मचारी, सीमान्त खेतिहर आदि राखल जा सकैछ। तेसर वर्ग भेल श्रमजीबी- जनिक योजना मात्र एक दिवसीय होइत ऐछ। आजुक दिन कमाएब आ आइ खाएब ओ नै तँ भूत देखैत छथि आ ने भविष्य। चारिम वर्ग होइत ऐछ चाटुकार आ कोढ़ियाक। ऐ वर्गमे पहिल लोकक चमचाक संग-संग शरीरसँ दुरूस्त भिखमंगाकेँ सेहो राखल जाए। पाचम वर्ग हेाइत ऐछ मजबूर वर्ग। ऐ वर्गमे साधन-विहिन अस्वस्थ अपंग आ शिक्षासँ दूर यायावर लोकनि छथि। एे संसारमे व्यथित जीवन मात्र दू वर्गक होइत छन्हि। श्रमजीवी आ मजबूर वर्गक। मजबूर वर्ग तँ कोनो रूपेँ अपन जीवनसँ संतुष्ट रहैत छथि, किएक तँ कोनो विशेष चाह नै छन्हि मुदा श्रमजीवीक जीवन अत्यन्त दु:खमय। जँ कोनो दिन बीमार पड़ि जेताह तँ अगिला दिन परिवारमे उपवास। अपने दुनू परानी एकादशी मानि मात्र जल ग्रहन कऽ कहुनो रैन काटि सकैत छथि मुदा नेनाक लेल.... कोनो साधन नै।”
“अंग्रेज बड़ बुद्धिजीवी जाति होइत ऐछ। भारत वर्ष सन गरीब राष्ट्रमे राज केलक। एक समए छल जे ब्रीटिश गन्ध लागब स्वाभाविक। श्रमजीवीक व्यथा देखि क्रूर अंग्रेजी आत्मा निश्चित पधिल गेल हेतैक। तँए संसारक सभसँ पैघ दर्द प्रसव पीड़ाकेँ श्रमजीवीक पीड़ासँ जोड़ी अंग्रेज 'लेबर पेन'क आविष्कार केलक। प्रसव वेदना संभवत: सभसँ बेसी क्लिष्ट वेदना थिक। संभवत: ऐ दुआरे किएक तँ हमहू पुरूष छी। ठीक ओहिना श्रमजीवीक पीड़ा मार्मिक होइत ऐछ। जीवन भरि अगिला दिनक आशमे रैन बिता लैत छथि- श्रमजीवी। ऐ दुनू व्यथामे अनुभूति समाने होइत ऐछ। अन्तर ऐछ। तँ समए कालक। मातृत्व वेदना मात्र क्षणिक मुदा श्रमजीवीक वेदना जीवन पर्यन्त।”
सभ लोक गुम्म मुदा कविजी बजैत-बजैत भाव विभोर भऽ गेलाह।
हमहूँ ब्रिटिश नीतिक विरोधी छी, हमरा सबहक देशकेँ ओ बर्वाद कऽ देलक मुदा किछु एहेन उपहार सेहो देने गेल जे देश कालक लेल अनिवार्य होइत छैक ओइमे सँ एक अछि- जीवन यापनक कला।, तँए ने हमरा सन स्वदेशी लोक सोहो सालक पहिल दिनकेँ आइ आत्मसात कऽ लेलौं। राधा बाबू अहाँ ऐ जन्ममे लेवर पेनक आनंद नै लऽ सकैत छी, किएक तँ अहाँ नै श्रमजीवी छी आ ने नारी। तँए आग्रह जे अंग्रेजे जकाँ लेवर पेन अर्थात श्रमजीवीक व्यथाक पर ध्यान राखल जाए नै तँ मिथिलाक गाम-गामसँ रोटीक आशामे श्रमक पूर्ण पलायन अवश्यंभावी अछि। कदाचित जौं एना भऽ गेल तँ प्रसव वेदनाकेँ अपन गाओं समाजमे कोनो आन नाओं ताकए पड़त। एकटा कविता तँ अपने हमरा मुखसँ पहिनहुँ सुनने हएब-
श्रमक कोन मानि जतऽ बुधिक विलास छै,
पेड़ा दलाल गाल श्रमक पेट घास छै।।
नागो बाबा जोरसँ ठहक्का मारैत बाजि उठलाह- “कवि जी पेड़ा खुआ कऽ सूदि सहित असूलि लेलनि।”
सभ आगंतुक लोकनि एक स्वरसँ कवि जीक तर्ककेँ मानि चाहक दोसर खेपक आनंद उठबए लगलाह।
उदेसपूर्ण विषय-वस्तु एवं नीक दृष्टिकोणयुक्त विहनि कथा
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