Thursday, April 5, 2012

चोरी

विहनि कथा--चोरी
विद्याधर बाबू । साहित्यकार ।जीभ पर साक्षात सरस्वती कए बास । साहित्यक सब विधा पर एक समान पकड़ छलनि मुदा पाइ कए अभाव मे एको टा पोथी छपल नहि छलनि । एक दिन साँझ मे बजार दिश जाइ छलाह । पहुँच गेलाह पुस्तक महल । एकटा सुन्नर काँभर वला पोथी आकर्षित केलकनि तेँए किन लेलाह । घर पर आबि पढ़ै लए बैसलाह , जेना-जेना पन्ना उलटाबैत गेलाह तेना-तेना आँखिक गोलाइ पैघ होइत गेलै । काँभर कए पाछु लेखक कए नाउ पढ़लन्हि ,आँखि और पैघ भ' गेलै । सोच' लागलन्हि टका , मनुख-जानवर .गाड़ी-घोड़ा कए चोरी त' देखने छलौँ मुदा शब्दक चोरी पहिल बेर देखलौह । आन चिजक चोरी मे त' पता चलि जाइ छै मुदा मुँह सँ निकलैत बोल कए चोरी मे कनिको पता नहि चलै छै । धन्य छथि एहन चोर आ धन्य छेँन चोरी कए स्टाइल . . . । ।
अमित मिश्र

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