Thursday, April 5, 2012

रघुनाथ मुखिया- विहनि कथा- मुँहलगुआ

मुँहलगुआ 

अँय रौ गणेश! ई हड्डी भरि राति चौबट्टीपर एहिना राखल रहि गेलै। नढ़ियो-कुकुर नै छुलकै। ई कोना भेलै रौ। लागैए जे ई हड्डी कोनो शेरक ठमाएल छै। डरे नढ़िया-कुकूर नै छुलकै, नै?

  गणेश मौन भंग करैत बाजल- नै, नै। शेरक ऐंठाएल हड्डी-गुड्डी तँ सभ दिनेसँ नढ़िया-कुकूर चोभैत अइलैए, भाइ साहेब। हमरा बुझने इहो हड्डी कोनो ने कोनो नढ़ियेक राखल छिऐ। तेँ एखन धरि डरे किओ सुंघबो धरि नै केलकैए। कारण जे आब तँ साहेबसँ बेसी मुँहलगुएक डर होइ छै नै।

(साभार विदेह विहनि कथा विशेषांक अंक ६७- www.videha.co.in)

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