Friday, April 6, 2012

ज्योति सुनीत चौधरी- विहनि कथा- नबका पीढ़ी



               फेर पहिने जकां लीफ्टाक केबाड़ खुजल की नहि दफ्तकर आ विद्यालय जाय बला लोक सबहक भीड़ नीचा जाय लेल लीफ्ट  दिस लुधैक गेल ।बच्चा तँ बच्चा़ वयस्कोमे सँ ककरो लग समय नहि रहै। ई दुनु वृद्ध पति-पत्नीह सँ नमस्कार पाती करय लेल ।रहै तँ ई रोजक बात मुदा आइ बुढ़ी कनी बेसिये खिसियैल रहथि “ई अछि आजुक पीढ़ी़ कोनो संस्कार नहि ।”
                   भोरे भोर भ्रमण पर निकलनाइ हिनकर सबहक बिगड़ल स्वास्थ्यक प्रति सचेत रहक प्रयास छलनि जे क़ि डॉक्ट र बेटाक परामर्श छलनि। बड प्रयत्न सँ बेटाकेँ पढा़ लिखा चिकित्ससक बनेलनि। भेलनि बेटा कोनो बड़का कम्पनीमे सिफ्टा ड्यूटी करत आ खूब कमाओत । मुदा बेटाकेँ आर पढ़ाइक भूत कहिया लगलै से बुझबे नहि केलखिन । विवाह भेलै़ बच्चो भेलै़ मुदा ओ हमेशा व्यस्ते रहल। पिछला तीन सालसँ माय बापक इच्छा रहनि जे ओ दुर्गा पूजामे किछु दिन अवकास लऽ कऽ हिनका सब संगे रहै किन्त़ु संयोग नहि मिलै छल। सभ बेर अन्तमे आबि कऽ कोनो जरूरी काजक बहन्नासँ कार्यक्रम रद्द भऽ जाइत छल। अहि बातपर ओ दुनु बुढ़ा-बुढ़ी वाद विवाद करैत छलथि जे ओ अहि बेर आएत की नहि ।
            घूरिकऽ  घर एलापर बुढ़ीक सीनामे दर्द उठलनि। प्रेसरक मरीज छली, तैं पतिदेव तुरन्त डॉक्टिरकेँ फोन केलखिन। डॉक्टबर सब जाँच केलकनि आ कहलकनि जे चिन्तासँ दूर रहू आ सब दवाइ समयपर खाऊ। हुनका सबकेँ तँ बहन्ना चाही छल बहस करै लेल। फेर दुनु गोटे एक दोसरपर आरोप-प्रत्याारोप करए लगलथि। विराम तखने लागल जखन फोनक घंटी बाजल। बेटाक फोन छलनि। मायक स्वास्थ्य बिगड़ल सुनि बेसी बात करए लागल। नहि तँ आन दिन कहाँ अतेक समए रहैत छल। प्रश्न ततेक जे बुझनाइ मुश्किल जे बेटाक फोन छल आ कि चिकित्सहकक। बाप सभटा कहलखिन तँ इहो शुद्ध चिकित्ससकक भाषामे समएपर दवाइ खाए कऽ उपदेश पियौलकनि। बुढ़ाकेँ एहि बातचीतमे ज्ञात भेलनि जे बेटा कोनो तेहेन शोध कार्यमे लागल अछि जे आब पूरा होइपर अछि आ अकर सफलतासँ सम्पूर्ण मानव समुदायकेँ बड़का कल्याण हेतैक। ओना अतेक डर तँ बुढ़ाकेँ जॉबक पहिल इंटरव्यूमे सेहो नहि भेल रहनि, जतेक पत्नी क तबियत गड़बड़ेलापर बेटासँ बात करैमे होइत छनि।
            खएर समय बीतल आ बुढ़ी फेर पहिने जकाँ बाजऽ लगली। घुमनाइक दिनचर्या फेर प्रारम्भ भेल। फेर बीस मिनट सड़कक काते-कात पार्क तक आ पार्कसँ फेर घर वापिस। बुढ़ी जखन बेमार होइत छली तँ बेटाक भावनात्मकक सत्का र बड नीक लागैत छलनि। तखने तँ लागैत छलनि, बेटा अखनो हुनका सभकेँ नहि बिसरने छनि। तकर बाद जैने ई सभ ठीक की ओ फेर बिगड़ल। यैह सब सोचि दुनु खुश छलथि। लीफ्टिमे चढ़लथि घर पहुँचय लेल। लीफ्टब रूकल की दुनु कात भऽ गेलैथ। मुदा ई की - ओ सब पुछैत छलनि जे अतेक दिन कतय छलथि- घूमए किए ने गेलथि आदि आदि। ओकर सबहक भागैत स्थितिक अनुसारे दुनु शीघ्रतासँ संक्षिप्त  जवाब देलखिन। आइ बुझेलनि दुनुकेँ जे नवपीढ़ीकेँ प्रतिस्पर्द्धासँ भरल युगमे जीबै लेल अतेक भागादौड़ी करए पड़ि रहल छै जाहि कारणे औपचारिकताक समय नहि छै मुदा सभमे भावुकता अखनो जीवित छै।
              घूमिकऽ लौटलाक बाद बुढ़ी दुनु गोटे लेल कॉफी बनाबैत छली आकि फोन बाजल। बुढ़ा फोन उठेला आ कनिये देरक बाद फोन राखि देलथि। हुनकर मुँहक उदासी कनियो नाटकीय नहि बुझाइत छल। कप पकराबैत बुढ़ी बजली़ “की फेर कुनो काज लागि गेलै।” बुढ़ा हॅंसैत बजला़  “ओ तँ नहि आबि रहल अछि मुदा हमरा सभ लेल टिकट पठा रहल अछि । अहिबेर हम सभ पूजामे संगे रहब ।हम सभ बेटाक घर जाएब आ बेटा पुतहु सहित पोती संगे पाबनि मनाएब।” फेर की छल आब कॉफीक एक एक चुस्की आगाँक कार्यक्रम बनाबैमे बीतल।

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