Friday, April 6, 2012

नवनीत कुमार झा - विहनि कथा-गाम आबह




प्रमोद कोनो जरूरी काजमे लागल छलाह। मूड़ी गोतने लीखि रहल छलाह। भीतरसँ कनियाँ कहलखिन- सुनै छी, गामसँ बाबू फोन केने छलाह।
कागज-पत्रकेँ समेटि ओहिपर पेपरवेट राखि देलनि आ कनियाँसँ पुछलनि- की सभ कहि रहल छलाह।
कनियाँ ठोड़े नाक-भौंह चमकबैत कहलखिन- कहता की, कहलनि जे कनियाँ, बौआकेँ कने गाम एबाक लेल कहबनि।
प्रमोद कने तमसाएल जकाँ होइत भनभनाए लगलाह- ईह, एकटा हमहीं भेटै छियनि बूढ़ाकेँ, चारि बेटामे आर ककरो किछु नै कहथिन। आब एखन तँ हमरा फुर्सति नै अछि जे हम गाम जाएब।
कनियाँ प्रमोदकेँ तमसाएल देखि प्रसंग बदलि देबाक लेल पुछलखिन- अच्छा छोड़ू एहि प्रकरणकेँ, कॉफी पीब, बनाउ की?
कनियाँ बड़ होशियारि छथिन। प्रमोदक उत्तर देबासँ पहिने ओ भनसाघर चलि गेलि आ कॉफी बनाबऽमे लागि गेलि। कॉफीकेँ चुस्कियबैत प्रमोदक केशमे आंगुर चलबैत कनियाँ कहै छथिन- एकटा बात कहू, नै होइए तँ चलि ने जाउ गाम। जहियासँ ई छौंड़ी काज छोड़ि देलकए तहियासँ असगरे सभटा काज करैत-करैत हम अपस्याँत भेल रहै छी। घुरनी जँ तैयार भऽ जाए अएबाक लेल तँ ओकरो लऽ आनब आ नवका मूँग भेल हेतै, सभटा खेती-बाड़ी बाबू देखै छथिन, तखन हमरा सभकेँ चुटकी भरि किछुओ नै भेटैत अछि आ सझिला बौआ- छोटका बौआ सभटा अपने बाँटि-चुटि लै जाइ छथि।
-ऐखन अप्पन बच्चा सबहक कैरियर देखू कि हम ई दियादी-पटेदारी फरियबैत रहू।
प्रमोद ई कहि पुनः अपन काजमे व्यस्त भऽ गेलाह।
प्रमोद गाम नै गेलाह। दू-तीन सप्ताह बीति गेलै। अचानके मंगल दिन साँझमे जटाशंकर भाइ फोन केलखिन-
-प्रमोद, तोहर बाबू नै रहलखुन!
-ऐं! की भेलै, ऐना केना भेलै, अखन तँ थेहगरे छलाह।
-तोरा किछु नै बूझल छउ, विनोद आ कामोद दुनू गोटे पन्द्रह-पन्द्रह दिनक पार बाँटि देने छलखिन। कक्का दुनू बेटा कोतऽ पन्द्रह-पन्द्रह दिन भोजन करै छलखिन। रवि दिन जखन ओ नहा कऽ एलखिन तँ हुनका ई मोन नै रहलनि जे आइ कामोद कोतऽ पार छन्हि। दुआरिपर बैसल कक्काकेँ विनोदक स्त्री कहलखिन जे बाबू आइ हिनकर पार कामोद बौआ ओहिठाम छन्हि, ओतहि जाथु। कक्का के की भेलन्हि की नै ओ कामोदक ओहिठाम नै गेलाह, माहुर खा कऽ हमेशाक लेल सूति रहला। खएर जे भेलै से भेलै, आब तोँ जल्दी गाम आबह, जेठ बेटा छहुन।

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