Friday, April 6, 2012

कुमार मनोज कश्यप- विहनि कथा- परजा




बड़का भैयाक दलान ; दलान नहिं गामक चौक बुझू़देश-दुनियाँ, खेत-पथार, नीति-राजनीति सभ पर गर्मागरम बहस एतऽ सुनबा लेल भेटत । चुनावक समय मे कोनो आन टॉपिक पर बहस हुअय ; से कने अनसोहाँत होयत । सभ जुटल लोक चुनावक एक-एक मुद्दा पर तेना बिक्षा-बिक्षा कऽ खोईंछा छोरा रहल छलाह जे कोनो सेफोलोजिस्ट  टी०वी० पर की करताह । बौवूबाबूक कहब रहनि जे एहि बेर सत्ता परिवर्तन हेबे टा करत़़सभ सत्तारूढ सरकार सँ नाखुश आछ । तकर औल ओ सभ एहि बेर चुकेबे करतनि । एहि पर नन्हवू बमकैत बाजल -- 'कक्कंा आहाँ कतऽ छी !लोकक आँखि नहि बट्‌टम छियै जे चहुँकात होईत विकास के नहि देखतै ।अपने गाम मे देखियौ ने जे कतेक के सरकार पक्कंा मकान बना देलकै़क़ंतेक कऽल गड़ा गेलै़ग़ामक लेल रोडो तऽ सैंक्शन भईये गेल आछ । बौवूबाबू प्रतिवाद केलनि--'कोन घर आ कऽलक बात करैत छह? जा कऽ ओकरा सभ सँ पुछहक गऽ ने जे कतेक जोड़ी पनही खीया कऽ आ कतेक घूस दऽ कऽ घर आ कऽल भेलैयै ?' पेर बजलाह--' हौ ई सरकार पाँच साल तक जनता के मुर्ख बना कऽ अपन धोधि बढ़बैत रहल । भल होअय लोक तऽ ई चोरबा सभ के जमानत जब्त करा दिअय एहि बेर । ' ई वाद-प्रतिवाद चलिये रहल छल किं मखना बिचहिं मे बाजल --'यौ मालिक ! आहाँ आउर कथि लै बेकारे मे बतकटाझु करैत जाईत छी । हमर मुर्खाहा बुद्धि तऽ एतबे बुझैत आछ जे केयो जीतऽ; केयो हारऽहम सभ तऽ परजा छी, परजे रहब । ' दलान पर कनी काल लै चुप्पी पसरि गेल छलै।

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