Saturday, April 7, 2012

सिखबैक उपाए :: जगदीश प्रसाद मण्‍डल


सिखबैक उपाए

एकटा गरुड़ छल। ओकरा एकटा बच्चा छलै। बच्चाकेँ पीठपर लऽ गरुड़ एकठामसँ दोसर ठाम चराओर करै छल। साँझू पहरकेँ बच्चाकेँ पीठपर लदने घर अबैत छल। उड़ै जोकर बच्चा भऽ गेल छलै मुदा पीठपर बैसैक जे आदति लागि गेल छलै से छोड़बे ने करैत। कएक दिन गरुड़ बुझौलकै मुदा ओ अपन बानि‍ छोड़बे ने करैत। मने-मन गरुड़ सोचलक जे सोझे कहनेसँ नै मानत तँए रास्ता धड़बए पड़त।
दोसर दिन बच्चाकेँ पीठपर लेने गरुड़ उड़ैत विदा भेल। जखन खूब ऊपर गेल तखन आस्तेसँ अपन पाँखि समेटि‍ बच्चाकेँ छोड़ि देलक। बच्चा निच्चाँ गिरए लगल। अपनाकेँ निच्चाँ गिरैत देखि‍ बच्चा पाँखि फड़फड़बए लगल। आस्तेसँ निच्चाँ उतरल। आँखि उठा-उठा गरुड़ देखबो करैत आ बँचबैक उपायो सोचैत। निच्चाँमे आबि बच्चा पाँखि चलबैक प्रयास करए लगल, जइसँ उड़ब सीख लेलक। साँझुपहर जखन सभ एकठाम भेल तखन बच्चा बापक शिकाइत करैत माएकेँ कहलक- माए, आइ जँ पाँखि नै फड़फड़ेने रहितौं तँ बाबू बिच्‍चे रास्तामे मारि दइतए।
माए बूझि गेलि। हँसैत बेटाकेँ कहलक- बौआ, जे अपनेसँ नै सिखत, स्वावलंवी बनत, ओकरा सिखबैक एकटा इहो रास्ता छिऐक।

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