Monday, April 9, 2012

विजय हरीश - तृष्णा




हमरा टोलामे एकगोटछल। नमरी कोढ़िया। पुरखाक अर्जल संपैत बेचिबेचिक जीवन भरि अपन आत्मिक आ शारीरिक सुख मौज केलथि। जीह तँ बहसले रहनि अय्याशो तेहने। हुनक गप्प सुनिक तँ नवका छौड़ा सभ आँगुरमे दाँत काटे लागैत छलै। अपन छुतहरपनीक लेल ओ प्रसिद्ध छलाह आ एहि आगाँ ओ धियोपुताक भविष्यक लेल कहियो नञि सोचलनि।
तँ समए एलनि तँ बेटापूतोह खूब ऐराठेन, खूब दुर्गज्जन करनि। ई रोजरोजक फजीहत देखि अड़ोसपड़ोस बलाक अनसहज लागि जानि मुदा हुनका लेल कोनो हरख वि‍षए नञि। एहि क्रममे एक दिन एकटा हुनके मेरिया आजिज भऽ बाजि उठलाहएह! हिनका जगहपर जौ दोसर कियो रहिते तँ निस्तुके बिख खा लित मुदा एहि चार्वाक प्रवृति इंसान लेल कोनो बात नञि। सभ किछुकए कुर्त्तामे पड़ल गदी जकाँ झाड़ि दैत रहथिन लागै जेना निर्लज्जताक सभ घाटक पानि ओ पीने रहथि। छिः छिः ऐना बेटा पूतोहूक खोरनाठबसँ मरि जाएब बेसतर एहेन जीनगी कतो मनुक्खल जीते।
संयोगे एक राति हुनके घर लग बाटे हम जाइत छलहुँ कि एकटा आवाज हमरा कानमे सुनाई पड़ल राम जानकी, राम जानकीहम अकनाबे लगलौं कि फेर वैह आवाज राम जानकी, राम जानकीरक्षा करहुँ प्राण की ओ अपन मचानपर पड़ल रटेत छलाह। कने मुसकीयाबेत हम आगाँ बढ़ि गेलौं।

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