Friday, April 6, 2012

अनमोल झा - विहनि कथा-माता न कुमाता भवति



जखन ओ गाम गेल रहए तँ माए-बाबू नै टोकने रहथिन। ई लग जा कऽ गोर लगलकै। बाबू कहने रहथिन- नीके रहऽ। बस एतबे आर किछु नै। माए तँ पएरे छीपि लेलकै, तैयो ई आगाँ बढ़ि गोर लगलक। माए आशीर्वादक बदलामे मूह घुमा लेने रहै।
दुइये दिन रहल ई गाममे। ऑफिसेक काजसँ कतौ पटना-दरभंगा आएल रहै तँ गाम चल आएल। परिवार बच्चा सभ बाहरे छलै। अपना दुःख भेल रहै। जे माय एक रत्ती इसकुलसँ ओकरा अबैमे देरी होइत छलै तँ अंगने-अंगने सभकेँ पूछि जाइ जे तोहर बौआ एलौ की नै। हमर बौआ एखन तक नै एलैहेँ बड़की दाइ आदि-आदि। हरदम मूहे देह निंहारैत रहै छलै, सट्ठका लगमे राखिक खुआबै छलै। नै खेने ओकरा भकौआ धराबै छलै। से माय आइ मूड़ी धुरा लेलकै। जरूर दुःख छैक मायकेँ अपन बेटासँ। निश्चय ओ एकर आशाक अनुरूप नै चललै। निश्चय जे माय-बाबू कहैत छैक से नै करैत छैक ओ। निश्चय ओ अपन बाल-बच्चा लऽ कऽ बाहरे रहैत अछि। सभटा सत्य आ सभटा ठीक। मुदा पुत्रो कुपुत्रो जायताम्, माता न कुमाता भवति...आब नै होइ छै की...!!

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