Friday, April 6, 2012

अनमोल झा - विहनि कथा- पाप



साधु बाबा लग लोकक भीड़ लागल छलै। सभ अपन नम्बरक हिसाबे जे जकरा बाद आएल ताहि क्रममे हुनका सामने जाइत छल। बाद बाकी लोक कातमे बैसल रहैत छल।
जकरा जे दिक्कत, दुःख तकलीफ रहैत छलै से हुनका कहैत छलनि। ओ ककरो फूल, बिभूत, ककरो पढ़ल जल, ककरो यंत्र आदि दैत छलखिन। जकरा हबा-बसात वा तेहेन बात नै रहै छलै आ रोग रहैत छलै तकरा डॉक्टरसँ देखबैक सलाह दऽ बिदा करैत छलखिन। कोनो ठकै-फुसियबैबला बात नै। जकरा हाथ उठा जे दऽ देलखिन ओकर काज होइते टा छलै। खूब जस छलनि साधु बाबाक। जे कियो पूजा लेल फूल, मिठाइ वा सवा रुप्पैय्या, पाँच-दस देलकनि सेहो ठीक नै तँ नै देलकनि सेहो ठीक। कोनो जोर-जबरदस्ती नै छलै ओतए आ तैँ सभ तरहक लोक अपन काजसँ अबैत छल।
ओहि दिन ओहि भीड़ लागल महिला वर्गमे सँ एकटा अपूर्व सुन्दरी महिला बाबाक आगाँमे आबि कल जोड़ि प्रणाम केलक आ कहलकनि- बाबा हमर धन्धा कम चलैए, से किछु कऽ दिअ। ओ वेश्या छलै। ओकरा फूल बिभूत दऽ बाबा कहलखिन- जो आब नीकसँ चलतौ। ओ चल गेल रहए हँसैत-हँसैत। ओकरा बादक जे लोक बाबा लग आएल से अपन बात कहैसँ पहिने बाबाकेँ पुछलक- बाबा। अहाँ ओकर पाप कार्यक लेल आशीर्वाद आ फूल-बिभूत देलिऐ। भगवती अहाँक तमसा नै जेती। बाबा कहने रहथिन- नै। कोनो पाप काज नै छलै ओ। ओकर व्यवसाये ओ छैक। ओहिसँ ओकर पेट चलैत छैक। तैँ ओ पाप नै भेलै। पाप ओ भेलै जे घा-संसारी भऽ अपन पति रहैत एहन काज करैत अछि...!

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