Friday, April 6, 2012

मिथिलेश कुमार झा- विहनि कथा- कन्यादानक चिन्ता



-गोड़ लगै छी पीसा!
-खूब नीके रहऽ। की हालचाल छै हौ?
-अहाँ सबहक आशीर्वादसँ सभ ठीक-ठाक छै पीसा।
-धिया-पुता नीके छऽ ने?
-हँ-हँ, सभ दन-दना रहल छै।
-अँए हौ, तोरा चारिटा बेटी छऽ ने?
-हँ पीसा।
-ओह! एकटा कन्यादानमे तँ लोक नमरि जाइ अए आ चारि-चारिटा कन्यादान...! बड़का चिन्ताक विषय छह।
-नै पीसा, हमरा एक्को रत्ती चिन्ता नै ऐ।
-से किएक हौ? छह धयल-उसारल की?
-नै, से तँ नै ऐ।
-तखन चिन्ता कोना नै छह?
-पीसा, चिन्ता तँ करए ओ जे अपना जानसँ फाजिल कथाक इच्छा रखैए। हमरा तँ जतबे ओकाइत अछि ताही हिसाबसँ लड़िका अनबै आ हाथ धरेने जेबै।

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