Friday, April 6, 2012

मिथिलेश कुमार झा- विहनि कथा- महानगर-संस्कृति



स्टेट बैंकक हाकिम राम सरूप यादवक बदली एकटा छोटका नगरसँ एहि महानगरमे भेल छलनि। यादवजी छोटका नगरमे रहि उबिया गेल छलाह- ने मनोरंजनक कोनो तेहन साधन, ने आबाजाहीक सुभितगर व्यवस्था, ने बिजलीक भरोसा, ने बच्चा सभक कैरियर बनेबाक कोनो तेहन सन बाट आदि। आ तैँ एहि महानगरमे बदली होइते यादवजी खूब प्रफुल्लित भेल छलाह। ऐ ठाम सस्तासँ महग धरि एक-पर-एक ततेक मनोरंजक स्थल जे सभटा देखएमे बरख बीत जाए, कत्तौ जेबाक हो तँ बससँ टैक्सी धरिक तेहन सुभितगर साधन जे पाँचो मिनट ठाढ़ नहि होबऽ पड़त, बिजली जेबाक तँ नामे नै, बच्चा सभक कैरियरक मारिते रास विकल्प...। यादवजी गदगद छलाह- महानगर आखिर महानगरे होइ छै!
से, यादवजी एकटा नीक एरियामे आधुनिक सरंजामसँ युक्त अपार्टमेंटक एकटा बेस खुसफैल फ्लैट चारिम महलापर लेलनि किरायापर। तीनिये दिन पहिने डेरा-डंटा लऽ कऽ आएल छलाह। आइ शेष बाँचल वस्ति-जातकेँ घरमे सरिया-सरिया कऽ रखैत छलाह कि कॉलबेल गनगना उठलै। यादवजी अपनहि जा केबाड़ फोललनि तँ दूटा सिपाही ठाढ़। ओइमे सँ एक गोटे हिनकर परिचय पुछलकनि आ आगाँ पुछारीक क्रममे जखन बुझबामे अएलै जे ई तीनिये दिन पहिने एलाहेँ तँ ओ सभ हिनका मुहथरिपरसँ हँटि बगलबला फ्लैटक कॉलबेल टिपलक। यादवजीकेँ सिपाही सभक एबाक प्रयोजन बुझा गेल छलनि। से जिज्ञासावश ओहो ठाढ़े रहलाह। बगलक फ्लैटसँ केबाड़ फोलि एकटा अधवयसू पुरुष आ जनाना बहरेलै। सिपाहीक पुछला उत्तर ओ पुरुष अपन नाँ पी.जायसवाल कहलकै। सिपाही अपन क्रमकेँ आगू बढ़बैत पुछलकै- “...सामनेबला फ्लैटमे चारि दिन पहिने एकटा स्त्रीकेँ डाहि कऽ मारि देल गेल अछि। ताहि मादेँ अहाँ की जनै छी? की झगड़ा-दान होइ छलै? ” जायसवालजी किछु मोन पाड़ैत उतारा देलखिन- “अच्छा! हँऽऽऽ! ककरो जोरसँ चिचिएबाक स्वर तँ अकानने रहिऐ, मुदा हमरा सभकेँ भेल जे केबलपर कोनो हॉरर फिल्म भऽ रहल छै। ओकरा आगिमे डाहल जा रहल छलै!! ”
सिपाही जायसवालसँ आर किछु पुछऽ लगलै आ यादवजी दुख ओ आश्चर्यक मुद्रा लेने अपन फ्लैटमे ढुकि गेलाह। महानगरक करिया रूप सोझाँमे नाचि उठल छलनि। झमान भेल सोफापर थस्स दऽ बैसि गेलाह। माथ जेना घुरऽ लगलनि...की महानगरक असली रूप एहने छै!...ऐ ठामक मनुक्खकेँ खाली अपनेटा सँ मतलब होइ छै!...एकटा पड़ोसीक घरमे एहन जघन्य घटना आ दोसरकेँ जन्तबो नै! ...की समाज आ टोल-पड़ोसक मतलब ऐ ठाँ बदलि जाइ छै! ...की इएह छै महानगरक संस्कृति!!!

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