Friday, April 6, 2012

गंगेश गुंजन - विहनि कथा- लाट साहेबक किरानी




एकटा राजधानी रहय। राजधनीक राजमार्ग एकटा विशाल पुलसँ बाँटल छलैक दू दिश। वेश उफंच, भव्य। साधरणतः पुल पर प्रजा केँ सेहो चलवाक अनुमति रहैक। खालीश जखन राजधानी वा बड़का राजधनीसँ सम्राट अबथिन आ हुनक गाड़ी राज्यक सुख समृद्धि देख, टहलऽ बूलऽ अबैत तँ ओहि बड़का पुलकेँ मरम्मति कएल जाइक, बाढ़निसँ बहारल जाइक आ मुरैठा बंदूकवला सिपाही सब लोक केँ बैला दैक। सौंसे पुल खाली करवा देल जाइक।
पुल पर काते-काते भीख मांगनिहार सब बैसेत रहय। एकटा टंगटुट्टी बुढ़िया आगांमे कारी खोइंझा चैथड़ा पसारने, एकटा कोढ़ि फूटल गत्र-गत्रसँ पीज बहैत वर्ष पैंतीसक पुरुष, एकटा अन्हरी मौगी बामा हाथमे अलमुनियांक पिचकल छिपली लेने दहिना हाथे ढील कुरियबैत आ कएटा आओर भिखारि। क्यौ गलल आंगुर सबपर मैल कुचैल चेथड़ा बन्हने माछी भिनकैत तँ क्यो ठुठ्ठ पएर पसारने।
एकटा नक्कट्टा बुढ़वा जे कए वर्षसँ पुलपर भीख मांगऽ बैसैत छल आ जकर मुंह-नाक मिलि कऽ बरौबरि छलैक वीभत्स खाधिजकां, से भरिसक मरि गेल। औरे जगह पर दू टा आन्हर भाय-बहीन हाथ पसारि कऽ भीख मांगऽ बैसऽ लागल रहय। मेही सुरमे राम नाम जपैत दाता धर्मी लोकनिक गुन गबैत।
परोपट्टाक लोक सब बड़ दानी रहय। ऋण-पैंच लऽ कऽ दान देनिहार। रोज दिन घामे पसिने अपसियांत, दरबार पहुंचवाक लेल एक दोसराकेँ धकियबैत। हकमैत। तइयो मुदा, बगलीसँ कैंचा निकालि टुन टुन भीख दैत। मनहि मन खौंझाइतो मुदा यथा साध्य देनहुं जाइत।
एकटा राजाक किरानी सब दिन अपन डिपटी बजय, ओही बाटे लाट साहेबक कार्यालय जाय। बड़का पुल चढ़ैत काल भिखमंगा सब पर पहिने दयार्द्र, फेर तमसाइत ककरो एकटा पाइ खसबैत चलि जाय।
एक दिन ओ लाटक किरानी दुनू नेन्ना अन्हरा भय बहीन केँ देखि कऽ बड़ क्लेशित भेल। ओ सोचलक, सएह देखू सृष्टि। एहि दुनू नेनाकेँ रौद-बसात, जाड़-गरम सबमे दूटा पाइ लेल एहिना बैसऽ पड़तैक भरि जनम।
ओहि दिन ओकरा पुल पर चढ़ले ने पार लगैक।
दोसर दिन फेर ओ किरानी जाइत रहय। ऽमालिक दू गो पइसा...।ऽ
ओ ठमकि गेल। ओहि कोढ़ि फूटल लोककेँ देखलक। पहिने तँ खूब घृणा भेलैक, ओकरासँ भिखारि फेर याचना कयलकैक। माथ पर प्रचण्ड रौद। कतहु सीकी ने डोलैत। अयनिहार गेनहार सब घामे नहायल आ भिखमंगा सब तँ आओर। पजरैत रौदमे बैसि कऽ भीख मंगैत देखि, लाटक किरानीकेँ बड़ क्रोध उठलैक।
ऽतोरा एहि रौदमे भीख मांगऽ के कहैत छौ बैसि कऽ...?ऽ
ऽकी करबै? ई पेट...? ओ पेट दिस देखबैत दांत बावि देलकै। किरानीकेँ आर तामस उठि गेलैक। ऽतखन मर...।ऽ
ओ ओकरा पाइ नै देलकैक। आगां बढ़ि गेल।
भिखारि दोसर दिन फेर टोकलकैक ऽमालिक आइ एक्को गो पाइ नै देलक कोनो दाता धर्मी ने...ऽ किरानी ओकरा गुम्हरि कऽ देखलकैक।
तँ मारलैं किएक ने पकड़ि कऽ,  दाता धर्मी सब केँ जे ऐ लूह रौदमे दांत बाबि कऽ किकियाइत बैसल छें?ऽ ओ क्रोधे माहुर होइत कहलकैक।
हम कोढ़ियो लोक... बाबू भैयाकेँ मारबै... कोना कऽ मालिक?ऽ ओ दया ........ दांत चियाड़ि देलकैक। तखन लाटक किरानी गुन-धुनमे पड़ि गेल।
ऽएकटा कर। मारि नहि सकैत छहक तँ बाबू भैय सबकेँ एहि पीजुआह हाथे छू तऽ सकैत छऽ? हाथ धऽ कऽ कहि तँ सकैत छहक?ऽ ओ किछु सोचैत कहलकैक आ चलि गेल।
दोसरा दिन ओहि भिखारिकेँ फेर बैसल देखि लाटक किरानी केँ तामसे देह जरि गेलैक।
मरियो ने जा होइत छऽ जे उसनाइत, कुकुर जकाँ दुर दुरायब सुनैत तरहत्थी औरेत रहैत छऽ?ऽ
ओ ग्लानिसँ मूड़ी गोंति लेलक।
तेसर दिन ओ फेर पुछलकैक भिखारि के ऽकी सोचलऽ?ऽ आ चलि गेल।
चारिम दिन ओहि पुल पर वातावरणें दोसर रहैक। बहुत रास उजरा धेती कुरता वला लोक सब पएर झटकारि कऽ पड़ायल जा रहल छल आ कोढ़िया भिखारि सब हुनका सभक पाछां-पाछां खेहाड़ि रहल छलैन। जे गोटय घेरा गेल रहथि से सब जेबी सँ पाइ निकालि रहल छलाह। पड़ाहि जकां लागल छल। कोढ़िया, आन्हर, नांगर, सब भिखमंगा लोककेँ घेरि कऽ ठाढ़ भऽ जाय। लोककेँ पुल पर दऽ कऽ गेने बिना उपाय नहि छलैक। ओतऽ छोट छिन हड़-बिरड़ो मचल छलैक। राजधनीक ओहि बड़का विशाल पुल पर एकटा भयसँ आतंकित वातावरण चतरल जा रहल छलैक।
ओ लाटक किरानी, किछु फराकेसँ डरायल-डरायल पुछलकैक ऽकी हौ?ऽ कोढ़ि लोक सोझ भऽ कऽ ठाढ़ रहैक। ओकर हकमैतहुं मुखाकृति पर खुशी पसरल छलैक। आ ओहि किरानीक प्रतियें कृतज्ञताक पवित्र आभास।
ऽकम सँ कम एतवा तँ हमरा सब कइये सकै छी। अपना सड़लाह गन्हाइत हाथे बाबू बबुआन सबकेँ दौड़ि-दौड़ि कऽ छुबियो तँ सकै छी...।ऽ
आ ओ किरानी, ओही दिन ओहि राजधनीसँ विदा भऽ गेल।


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