भटकैत भूट्कैत एकटा बड पुरान शिष्य अपन गुरु लग पहुँचल . गुरु अपन शिष्य के देखि आह्लादित भ उठलाह ... की हाल छैक शिष्य सुन्दरम , जीवन कोना बीती रहल अछि अहांके ?
हम ते बड अभागल छी महाराज... कलपैत शिष्य बाजल ..
की भेल.. अहाँ ते ज्ञान क पोटरी ल क एहि ठाम से गेल छी..
हम जाहि वस्तु कामना करैत छी वैय्ह हमरा से दूर भ जायत ऐछ.नै ते हम अर्थोपार्जन केलों आ नै ते जीवन क कोनो सुख भोग्लों .....
स्नेह भरल स्वरे गुरु बजलाह ..अहाँ पहिने देवा लेल सिखु ,तखन लेवा क लेल सोचब..
हम की देब भगवन ! हमरा अछिए की ? नै ते धन दौलत , नै ते घर -गाड़ी , नहि कपडा लत्ता देब तं की देब ==निराश स्वर छल
अहाँ लग बहुत किछ ऐछ . अहाँ चाही त लोग के बहुत किछ द सकैत छी
चौंकी उठहल शिष्य --की ऐछ जे द सकैत छी हम ?
अहांके भगवन सुन्दर बोली देने छैथ , अहाँ चाही तो ओकर उपयोग स लोग क तारीफ़ क सकैत छी . दोसर केर बड़ाई क ओकर ह्रदय मे ख़ुशी भरि सकैत छी, मुदा अहाँ ते एतेक दरिद्र छी जे जाहि मे एको पाई नै खर्च होयत अछि , उहो नै क सकैत छी. आदमी के कंजूस नै हेवाक चाही, भगवन जे देने छैथ ओकरा जतेक बंटब ओतेक बडत.. ककरो बड़ाई करब ते अहांक अपने सम्पन्नता क
भान होयत , मोने उदारता क भाव रहत अहाँ लग वाणी क धन ऐछ, ह्रदय के विशाल बनाऊ एक बात जानि लिय ककरो बड़ाई केने से ओ पैघ नै होयत छैक वरन बड़ाई करय वाला लोग क दृष्टि मे पैघ भ जायत अछ . अहाँ खाली पयबा लेल जनैत छी तैं दुखी रहैत छी . जे दैत छैथ ओ देवता छैथ आ देवता कहियो अभावग्रस्त नै रहैत छैथ ...............
शिष्य गुरु क पैर पर खसि पडल .............
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