Friday, April 6, 2012

सामाजिक सरोकारकेँ छुबैत मैथिली विहनि कथा


जिनगीमे उठैत उकस-पाकसकेँ सम्वेदनापूर्ण मानवताक संग सरियबैत रचनाकार पत्र-पत्रिकासँ समाज आ पाठकक मोनमे बैसि गेलाग अछि। रेशम आ सूतीक बीच फाँक भेल जिनगीकेँ स्पष्ट करैत, आरामदायक आ सुखद अनुभवकेँ सोझाँ आनब आब रचनाकार अपन रचनाधर्म बुझि गेलाह अछि। तेँ आजुक समस्त रचनामे जिनगीक उतार-चढ़ाव, खसैत-उठैत सम्बन्ध सुखाइत सन सिनेह सभकेँ अपना हृदएमे बसा रचना रचैत छथि लेखक। एहि युगक रचनाकारकेँ आब गरीब भाभनबला किताबी खिस्सा आ राजा-रानीबला पिहानीसँ ऊपर उठि अपन सामाजिक समरसताक निस्सन निशानीक बोध भऽ गेल बुझाइत अछि। तेँ रचना सेहो लोकक जिनगीक गहींरता नपैत ओकर सुख-दुखक फाँटक बीचसँ निकलि ओहि फाँटकेँ भरैत ओकर एक-एक अंश धरि जुड़ि जिनगीक दर्शन करबैत सोझाँ आबि रहल अछि मैथिली विहनि कथा सभ।

मोम आ पाथर पहिने एक दोसराक विपरीत जिनगीकेँ आरेखित करैत रहल। मुदा आब नै, आब तँ एक्कै हिदएमे क्षणक बदलैत गतिक संग मोम आ पाथर दुनूक समन्वयक बनि जिनगीक सभ अन्तरंगताकेँ छुबैत उद्वेलित कऽ बेरा-बेरी मुदा एक्कै ठाम केन्द्रित भऽ देखार भऽ उठैत अछि। आजुक मानवक संवेदना एतेक परिवर्तनीय भऽ गेल अछि जे एक्के संग अहाँक चरित्रमे मोम आ पाथर दुनूक रूप दृष्टिगोचर होइत, रचनाकार सोझाँ आनि ओकर सत्यकेँ साबित कऽ रहलाह अछि। सत्य! एकटा काल्पनिक विजय मात्र नै थिक, सत्य कतौसँ अनायास नै टपकि पड़ैए। सत्य पूर्णतः मानव जीवनक यथार्थ थिक। सत्य मानवकेँ अनुचित कार्यसँ रोकबाक वा विधर्मी हेबासँ बचेबाक श्रीयंत्र जकाँ अछि, जकरा आजुक रचनाकार अपना रचनाधर्मितासँ लोकक हृदए धरि छुआ ओकर यथार्थ बोध करौलनि अछि।

पहिनुक विहनि कथा सभ दहेजक दानवकेँ उघार कऽ, दहेज पीड़िताक मर्मकेँ वा दहेजसँ भेल परिणामकेँ अपन केन्द्रमे आनि सम्वेदित करैत छल। ओहिसँ इतर चुटुक्का वा हास्य-कणिका लऽ तत्कालीन नेता सबहक विपटावादी चरित्रकेँ उजागर कऽ अपन रचनाक इतिश्री बुझैत छला। एहेन नै छलै जे तहियाक रचनाकारक सोच संकुचित छल। ओहो सभ दूर धरि सोचैत छला, गमै छला आ तखन ओकरा सोझाँ अनै छला। मुदा ई परिवेशक दोष सेहो कहल जा सकैए जे तहियाक रचनाकार सभ विषए-बैस्तुकेँ संकुचित कऽ मैथिली विहनि कथाकेँ सेहो संकुचित कऽ देलनि। २०म सदीक छट्ठम-सातम दशकमे प्रायः ओहने परिवेश संरचित छल। जकर परिणामे विहनि कथा मात्र नै वरन् आनो विधा यथा कथा/ नाटक/ उपन्यास आदिमे वएह दहेज आ खिस्सा आ नेताजीक करनीकेँ सोझाँ आनल जाइत रहल छल।  

आब परिवेश बदललै, दृष्ज्टिगत फरिछता एलै, सामाजिक समरसता पसरलै। तहन समाजक छुआछूत मात्रक अवलोकन होइत छलै। मुदा आइ ओहि छुआछूतसँ भेल परिणाम, जाति-पातिमे बान्हल लोकक दृष्टि-परिवर्तन, आर्थिक सम्पन्नता, पैघक संग सभ बिन्दु। विषय वा स्थानपर ओहो अछोप सन, निंघेष बनल लोकक सहचर बनब, सभकेँ देखाओल जाए लागल आजुक लोककथामे। आब विषय विस्तार स्वतः सभ तरहक घटनाकेँ छुबैत कागचपर आबऽ लागल अछि। आबक परिवेशमे दहेजक पसार भऽ गेल अछि। एहेन पसार जकरा आब विशेष मुद्दा नै बना, बल्कि ओकरा जीवनक सामान्य क्रियाकलाप बुझि, परम्पराकेँ उघबाक प्रक्रियाकेँ दर्शाओल जाए लागल अछि। तहिया दहेज दानव जकाँ छलै। जे रचनाकारक लेल प्रमुख विषए छल। आइ दहेज दानव मात्र नै महादानव बनि ठाढ़ अछि मुदा परिवेश बदलल छै, माने कि आब तहियाक अपेक्षा आर्थिक सम्पन्नता बढ़ि गेलैए तेँ लोककेँ ई महादानव अपन जीवनक एकटा अंग बनि गेल अछि, कोनो बड्ड पैघ समस्या नै। आब तँ ओइसँ पैघ-पैघ समस्या रचनाकारकेँ उद्वेलित करैत अछि। यथा बिआहक खुजल रस्ता, कियो कोनो जाति-धर्मसँ बिआह कऽ सकैए आ ओकरा न्यायालय प्रमाणित तँ करिते अछि। सरकारी संरक्षण सेहो भेटै छै। ओहिसँ ऊपर दहेज उन्मूलनक दिशामे समलिंगी बिआह समाजकेँ जतऽ डेरा रहल अछि, ओतै रचनाकारकेँ एकटा नव दृश्यांकनक अवसर दऽ रहल अछि।एहि सन्दर्भमे तीनटा अन्तर्राष्ट्रीय लेखकक चारिटा विहनि कथा राखि रहल छी-


खलील जिब्रान
गोल्डन बेल्ट (अनुवाद-मुन्नाजी)
सालमिस नगर दिस जाइत दू गोटेक संग भऽ गेलौं।दुपहरिया धरि ओ धारक कछेरमे पहुँचि गेल जाहिपर कोनो पुल नै छलै। आब ओकरा लग दूटा विकल्प छल- हेलि कऽ धार टपि जाए वा दोसर कोनो रस्ता ताकि लिअए।
“हेलिये कऽ पार भऽ जाइ छी।”, ओ एक दोसरासँ कहलक। “धारक पेट बेसी चौरगर तँ अछि नै।” ओइमे सँ एक गोटे जे नीक तैराक छल बीच धारमे जा भसियाइ लागल। दोसर गोटे जकरा हेलबाक पूर्ण अभ्यास नै छलै, ओ आरामसँ हेलैत दोसर कात पहुँचि गेल। ओतऽ पहुँचलाक पछाति ओ पुनः धारमे कूदि हाथ-पएर चलबैत अपन संगीकेँ पार आनि लेलक।
“तोँ तँ कहै छलेँ जे तोरा हेलबाक अभ्यास नै छौ, तहन तोँ एतेक असानीसँ कोना धार पार कऽ गेलँ? ”, पहिल व्यक्ति पुछलक।
“मित्र।”, दोसर व्यक्ति बाजल, “हमरा डाँरमे बान्हल ई बेल्ट बान्हल देखै छीही, ई सोनाक बनल छैक, जकरा हम साल भरि मिहनत कऽ अपन कनियाँ आ बच्चा लेल कमेने छलौं। तेँ ई पहिरने असानीसँ धार पार कऽ गेलौं। हेलबा काल अपन पत्नी आ बच्चाकेँ अपना मोनमे याद कऽ रहल छलौं।”
ग्रिगोरी गोरिन (रूसी नाटककार)
एकटा इमानदार आदमी 
“हम टैक्सीबलाकेँ अबाज देलौं आ टैक्सी रुकि गेल।
“की हमरा अहाँ सोमोकन्या स्क्वेयर लऽ चलब? ओ जगह एतऽ सँ बड्ड दूर नै छै, मुदा हमरा जल्दी अछि।”
पाँच मिनट बाद हम ओकरा रोकलौं। मीटर उनचास कोपेक देखबैत छल। हम एक रूबल निकाललौं।

“हमरा लग छुट्टा पाइ नै अछि।” ड्राइवर कहलक। हम अपन जेबीमे तकलौं तँ पचास कोपेकक एकटा सिक्का भेटल।
“अफसोच अछि जे हमरा लग एको कोपेक नै अछि।”
“कोनो बात नै।”
“किएक नै! ” ड्राइवर विरोध प्रकट केलक, “हम एना नै कऽ सकैत छी। अहाँ जनैत छी जे सवारीसँ मीटरसँ बेसी पाइ नै लेल जा सकैत अछि। हम इनामो नै लैत छी।”
“बड्ड नीक, मुदा हम की करू? ”
“वामा कोनापर एकटा तमाकूबलाक दोकान अछि, ओ खुल्ला कऽ देत।”
पाँच मिनट पछाति हम ओइ दोकानपर पहुँचलौं, मुदा तावत धरि खेबाक छुट्टी भऽ गेल छल। मीटर आब सन्तानबे कोपेक बता रहल छल।
“कोनो बात नै”- ड्राइवर सहानुभूति जतौलक, “कीव टीशनलग एकटा बैंक अछि, ओइमे काज करऽवाली लड़कीकेँ हम जनैत छिऐक, ओ अहाँकेँ पाइ खुल्ला कऽ देत।”

हम कीव टीशन दिस गेलौं, मुदा बैंक बन्द छल। मीटर पूरे तीन रूबल देखा रहल छल।
हम ड्राइवरकेँ तीन रूबल देलौं, ओ पाइ जेबीमे राखिकऽ मीटर बन्न कऽ देलक।

“हमरा बड्ड दुख अछि”, ओ कहलक। हम सवारीसँ बेसी पाइ नै लैत छी।
“बहुत आभारी छी, मुदा हम सोमोकन्या स्क्वायर कोना पहुँचब? ”
“हम अहाँकेँ ओतऽ लऽ चलब।” ड्राइवर कहलक आ हमरा टैक्सीमे बैसते मीटर चालू कऽ देलक। पाँच मिनट बाद हम पहुँच गेलौं। मीटर फेरो उनचास कोपेक देखा रहल छल।

हम छोट छीन चक्कू निकालि कऽ ड्राइवरक गरदनि लग व्लगा देलौं आ ड्राइवरक हाथमे जबरदस्ती पचास कोपेकक सिक्का राखि टैक्सीसँ कूदि कऽ भागि गेलौं। बादमे बहुत बाद धरि, जे नैतिक भ्रष्टाचार हम ओइ इमानदार आदमीक संग केने छलौं, हमरा ग्लानिक अनुभव होइत रहल।
बर्तोल्ट ब्रेख्त (जर्मन नाटककार)
गपशप
“आब हम सभ आपसमे किन्नहुँ गप्प-सप्प नै कऽ सकैत छी”, महाशय “क” एकटा लोकसँ कहलनि।
“किएक”?, ओ चौकैत पुछलक।
“हम अपन तर्कपूर्ण गप्प आब अहाँक सोझाँ नै राखि सकैत छी। ”, महाशय “क” लचारीवश अपन विचार रखलनि।
“मुदा अइ बातसँ हमरापर कोनो फर्क नै पड़त। ”, दोसर अपन संतुष्टि देखौलक।
“हमरा बूझल अछि।”, महाशय “क” खौंझाइत कहलक, मुदा हमरापर एकर असरि अवश्य पड़त।
महाशय “क” जखन कोनो व्यक्तिसँ प्रेम करैत अछि

महाशय “क” सँ पूछल गेल, जखन अहाँ कोनो व्यक्तिसँ प्रेम करैत छी तखन की करैत छी? ”
महाशय “क” उतारा देलक, “हम ओहि व्यक्तिक एकटा खाका बनबैत छी आ फेर ऐ फिकिरमे रहैत छी जे ओ हुबहु ओकरे जकाँ बनए। ”
“के, ओ खाका? ”
“नै।”, महाशय “क” जवाब देलक, “ओ आदमी।”


पहिने लोकक विपन्नता सेहो दृष्टि संकुचनक पर्याय छल। ई स्वाभाविक छै जे पेट भरल रहतै तखने लोकक सोच ओइसँ दूर धरि जेतै। नै तँ सभटा सोच भूखसँ उत्पन्न भेल आकुलतामे समाहित भऽ रहि जाएत। आब स्थिति उनटल अछि। आर्थिक उदारीकरण आ वैश्वीकरणक आएल चलनसारिमे आब लोक आर्थिक रूपेँ सम्पन्न भेल अछि। आर्थिक सम्पन्नता आब पेटक भूखसँ इतर आन-आन भूख जगेलक अछि। जाहि कारणेँ चोरि, हत्या आ बलात्कारक सेहो बढ़ावा भेल अछि जे ओकरे रूप/ प्रतिरूप बदलि गेल अछि। तँ आजुक लेखककेँ कलम चलेबा लेल आ बदलल प्रतिरूप हथियारक रूपमे भेटि गेल आ रचनाकार सभ ऐ सभ अपराधक अपन कलमक माध्यमे नवीनीकरण कऽ सोझाँ आनि रहल छथि। सम्प्रति रचनाकार सभ पदयात्रासँ ऊपर उठि मंगलग्रह यात्रापर जा रचनारत छथि। पहिलका जमानामे लोक शुद्ध दूध ग्रहण करैत छल, आब दूध तँ दूर पानिक समस्या लोककेँ घेरने जा रहल छै। कतौ पानिक कमीसँ हाहाकार मचैए तँ कतौ लोक बाढ़िक कोप भाजन बनि भूखे बिलबिलाइत नाङट भेल छतविहीन लोकक असरा तकैए। आ लेखक ऐ सभपर अपन दृष्टिए नजरि गरा कागचपर अनै छथि।

भारतमे सम्विधान सम्मत पितृसत्तात्मक परिवारकेँ उघबाक निमित्ते पुत्रक पैदाइशकेँ बढ़ावा देल जाइत रहल अछि। ओना तँ आइयो लोक बेटाक लिलसामे बेटीक हत्या (भ्रूण हत्या) कऽ रहल अछि जे दुनू अवस्था मैथिली विहनि कथा लेखकक कलमक धारकेँ पिजौलक अछि। मुदा ऐ सबहक बावजूद जे मुद्दा लेखककेँ मसाला देलक ओ अछि नारी सशक्तिकरण। पहिने मौगीक मूँह जाबि कऽ ओकर सुरैतकेँ घोघमे नुकाएल रखबाक परिपाटी छल। मुदा आइ पुरुष सभ अपन कमाइकेँ द्वितीयक आ मौगीक नोकरीकेँ प्राथमिकता दऽ रहल अछि। शहरक कोन जे गाम देहातक मौगी सभ आब सरकारी नोकरी राजनीतिमे आगाँ बढ़ि कऽ आबि रहल अछि आ घरबला सभ पिछलगुआ बनि जीवन बिता रहल छथि, जकरा मैथिली विहनि कथाकार सभ अपन कलमक माध्यमे भजा रहल छथि। महिलाकेँ आरक्षण दऽ एक दिस सरकार अप्पन कुर्सी बचबैए तँ दोसर दिस पुरुष सभ अपन घर बचेबा लेल संघर्षरत देखाइत छथि। जाहि सभ क्रियाकलापपर कलमकारक वक्र दृष्टि अछि।

उपरोक्त बदलावक अतिरिक्त सभसँ पैघ परिवर्तन देखल जा रहल अछि तकनीकी चलनसारि। आइ मोबाइल इन्टरनेट डिश टी.वी./ एल.सी.डी. आ लेड टी.वी. लोकक जीवनकेँ एगदमसँ चलायमान बना देलक अछि। तेँ लोक धरतीक भीड़ आ भार कम करबाक लेल चान दिस नजरि दऽ रहल अछि। आजुक मैथिली विहनि कथाकार सेहो उपरोक्त सभ बिन्दुकेँ छुबैत अपन रचनाक एक-एक सूक्ष्म गतिविधिक सुन्दर वर्णन करैत देखार भऽ रहलाह अछि। ऐ मे सभसँ ऊपर नाम अछि श्री अनमोल झा जीक जे अपना रचनामे अपन सर-समाज आ गामक जिनगीक दैनिक व्यवहारक प्रत्येक बिन्दुपर दृष्टिगत होइत कलम चला रहलाह अछि। लोकक एक-एक क्षणक बदलैत परिस्थितिक जमीनसँ ऊपर उठि हवामे उधियाइत मन मस्तिष्कक। समाजक लोकक प्रत्येक सरोकारक चित्रण अपन विहनि कथामे केलनि अछि। तहिना मिथिलेश झा/ गजेन्द्र ठाकुरजी अपन सूक्ष्म दृष्टिएँ समाजमे होइत उत्थान-पतन/ नैतिक क्षीणता/ सामाजिक दायित्व, विछोह आदिकेँ जतऽ तक लोककेँ छूबि संशित वा क्षोभित करैए सभ मैथिली विहनि कथाकार ओकरा कलमबद्न कऽ लोकक बन्न नजरिकेँ खोलबाक वा नवपथ दर्शन देबाक सुन्नर प्रयास कऽ रहल छथि। ऐ सभसँ ऊपर एक नाम अछि श्री सत्येन्द्र कुमार झा जीक जे अपन दृष्टिएँ भौतिकवादी मुदा मौलिक नैतिक क्षरणकेँ एकटा फराक दृष्टिएँ सबहक सोझाँ अनबाक प्रयास च्केलनि अछि। हिनको कलम विषय विविधतापर नजरि राखि सभ कोनमे दौगि रहल अछि। अए सभसँ फराक गामक वा गमैय्या जिनगी मात्रक अवलोकन ओकर परिस्थितिवश बदलैत जीवनक प्रत्येक अंशकेँ शुद्ध गमैये सोचे दृष्टिगत कऽ सोझाँ आनाऽबला तीन प्रमुख नाम अछि- जगदीश प्रसाद मंडल, उमेश मंडल आ रघुनाथ मुखिया जीक।
ऐ तरहेँ समाजक बदलैत घटनाक्रमक प्रत्येक बिन्दुपर चाहे ओ सामाजिक समरसता हो , परिस्थितिगत बदलैत परिवेश हो, तकनीकी चलनक प्रभाव हो, आर्थिक सम्पन्नता- वैश्वीकरण- वा कोनो अन्यान्य खाँहिसँ जनमल कोनो समस्या। आजुक मैथिली विहनि कथाकार ओइ प्रत्येक बिन्दुकेँ अपन कलमसँ उठा कागचपर आनि सोझाँ अनैत छथि। जाहिसँ सामाजिक सरोकारसँ जुड़ल एक घटना मैथिली विहनि कथाक विषत बनि लोकक सोझाँ आबि रहल अछि। ऐ सँ ई स्पष्ट होइछ जे पहिनुका मैथिली विहनि कथा वा विहनि कथाकारक एकटा सीमामे बान्हल सोचसँ आगू बढ़ि आजुक रचनाकार मैथिली विहनि कथा भण्डारकेँ एना भरि रहलाह अछि जाहिसँ कोनो उमेरक कोनो लोकक कोनो सोचक खाहिसँ पूरा भऽ सकए। तेँ समाजक सभ प्रकारक गतिविधिकेँ समेटकऽ चलि रहल छथि मैथिली विहनि कथाकार।
  
पहिल मैथिली विहनि कथा गोष्ठीक आयोजन:- २० फरवरी १९९५ ई. केँ चित्रगुप्त प्राङ्गन हटाढ़ रुपौली (मधुबनी)मे 

पहिल मैथिली विहनि कथा गोष्ठीक आयोजन:- २० फरवरी १९९५ ई. केँ चित्रगुप्त प्राङ्गन हटाढ़ रुपौली (मधुबनी)मे भेल छल। संयोजकद्वय मुन्नाजी आ मलयनाथ मण्डन। 
अध्यक्षता- श्री भवनाथ भवन
मंच संचालन- कुमार राहुल
उपस्थित- १९ गोट विहनि कथाकारक २६ गोट विहनि कथा पाठ भेल। उपस्थित जनमे- पं.मतिनाथ मिश्र, पं. यन्त्रनाथ मिश्र, श्री श्यामानन्द ठाकुर, उमाशंकर पाठक, ललन प्रसाद, सचिदानन्द सच्चू, मुन्नाजी, कुमार राहुल, अतुल ठाकुर, प्रेमचन्द्र पंकज, मलयनाथ मण्डन, मीरा भारती कर्ण एवं सुनील कर्ण अपन रचना पाठ केलनि।



विदेहक विहनि कथा विशेषांक (६७म अंकक मादेँ) ... - मुन्नाजी
कतेक दशकक उकस-पाकस एवं स्वतंत्र विधाक उहाफोहक बीच एक बेर फेरसँ “विहनि कथा”- जे लघुकथाक नामे चर्चित अछि- केँ मैथिलीमे स्वतंत्र विधा हेतु समेटि स्थिर करबाक अथक प्रयास कएल जा रहल अछि। अखन धरि भेल काजकेँ सेहो शिरोधार्य करै छी। ओहि डेगकेँ आगाँ बढ़बैत मोकाम धरि पहुँचबाक एकटा ठोस डेग हुअए अही आशामे कुल एक सए दू गोटेसँ दूरभाषिक सम्पर्क साधि विहनि कथाक मादेँ विभिन्न विषए-बौस्तु संकलित कऽ सोझाँ अनबाक एकटा प्रयास अछि।

“विहनि कथा” विहनि अर्थात् बीआ। हम एकरा हिन्दीक “लघुकथा” शब्दसँ फराक मैथिलीक स्वतंत्र नामेँ आगू बढ़ेबाक प्रयास १९९५ ई. मे मैथिली मासिक “विचार” (सहयात्री प्रकाशन, लोहना, मधुबनी) द्वारा केने रही। ई अंग्रेजीक शॉर्ट-स्टोरीसँ इतर एकटा बीज-कथा (विहनि कथा) अछि। जाहिमे कथाक छोट गातमे सम्पूर्णता पाओल जाइत अछि। लघुकथा हिन्दी शब्देँ प्रचलित अछि। गएर हिन्दी भाषाक सभ भाषाक लघुकथाकेँ ओहि भाषा नामेँ स्वतंत्र नाम देल गेल अछि, तँ मैथिलीमे किएक नै? यथा उड़ियामे क्षुद्रकथा (खुद्र कथा), पंजाबीमे “मिन्नी कथा”, बांग्लामे “एक मिनिटेर कथा”, मलयालममे “निमिषा”। तहिना मैथिलीमे “विहनि कथा” नामेँ लघुकथाकेँ आगाँ बढ़ाओल जाए। विहनि कथा मादेँ वरिष्ठ कथा/ लघुकथाकार श्री “राज”क मत छनि- जेना एकटा छोटछीन बीआमे गाछक सम्पूर्णता निहित अछि, तहिना लघुकथा अपने-आपमे कोनो कथाक सम्पूर्णताकेँ समेटने अछि।”

विहनि कथा मादेँ मध्यम पीढ़ी (यानि सातम-आठम दशकमे प्रवेश करऽबला पीढ़ीक) काजे ई बेसी जगजियार भेल। मुदा मोकाम नै पाबि सकल। हमरा जनतबे ई सभ किछु लोकक एकटा समूहमे एकरा बान्हि आगू बढ़ेलनि आ ओतबे धरि समेटि कऽ राखि लेलनि। तँ एकर प्रारम्भिक सद्गतिक पछाति एकर दुर्गतियो ओही पीढ़ीक रचनाकारक मध्य देखाइए। ओ मध्यम पीढ़ी जे कथा साहित्यमे नवसंचार अनलक आब सुस्ता गेल अछि। लगैए ओ सभ आब अपन कएल परिश्रमक पारिश्रमिक यानी पुरस्कार ग्रहण मात्रक सोद्देश्ये सक्रिय भेल बुझाइत अछि। लघुकथाक दुर्गति अए पीढ़ीक द्वारा भेल तकर एकटा सुन्दर उदाहरण छथि श्री अमरनाथजी (सम्प्रति- सदस्य, परामर्शदात्री समिति, साहित्य अकादमी) जे लघुकथा लिखब छठम दशकमे शुरू केलनि आ सातम दशकमे अपन लघुकथा संग्रह- “क्षणिका” (१९७५ई.) लऽ उपस्थिति दर्ज करौलनि, जे हमरा जनतबे मैथिलीक प्रारम्भिक विहनि कथा संग्रह मे सँ एक  थिक।  ऐ सँ पहिने हंसराजक विहनि कथा संग्रह "जे किने से" १९७२ ई. मे प्रकाशित अछि।




एखनो दूरभाषिक सम्पर्के ओ ओही दिनक ऊर्जावान रूपेँ विदेहकेँ अपन टटका पाँच गोट लघुकथा उपलब्ध करौलनि जखन कि मध्यम पीढ़ीक मोटा-मोटी अनुपस्थिति ई देखार करैए जे ओ सभ थाकि कऽ आब सुस्ता रहल छथि। तथैव नव-मध्यम-पुरान पीढ़ीक समन्वये ऐ अंकमे ढेर रास नव रचना आएल अछि, तँ पेटारमे किछु पहिनेसँ प्रकाशित रचना साभार देल गेल अछि।

विहनि कथा मादेँ प्रारम्भेसँ हमर रुचि एकर विभिन्न क्रिया-कलापे यथा पहिल लघुकथा गोष्ठीक आयोजन (संयोजकद्वय मुन्नाजी आ मलयनाथ मण्डन) १९९५ एवं कएकटा लघुकथा विशेषांक (पत्रिका सभक)मे सहयोगी रहलौं। एहि निमित्त श्री गजेन्द्र ठाकुरजीक सोझाँ प्रस्ताव राखलहुँ- प्रस्तावकेँ ओ सहृदए अनुमोदन तँ करबे केलनि जे हमरोसँ एक डेग आगाँ बढ़ि तन-मनसँ आ अपन विज्ञ मानसिकताकेँ प्रदर्शित करैत अहाँ सभक सोझाँ एहि अंककेँ अनलनि, ताहि हेतु हुनकर हार्दिक आभार। श्री उमेश मण्डल, श्री अनमोल झा आ सत्येन्द्र कुमार झा झाक सेहो भरपूर सहयोग भेटल, अइ तीनू सहयोगीकेँ हार्दिक धन्यवाद।


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