Monday, April 9, 2012

विजय हरीश - किकिऔनी




दुइ गोट लेखक मित्र छलाह। एकटा नव तँ दोसर पुरान। पुरान किछु हद धरि एक मोकामपर पहुँचि गेल छलाह। तँ नवका हुनका लग बेरबेर दौड़थि। पुरनका बेचारे आजिज भऽ गेल छलाह अपन नव मित्रसँ। मुदा बाजताह की? कहबाके लेल, मुदा छलथि तँ मित्र। एक दिन ओ कविताक माध्यमे अपन पीड़ा व्यक्त केलखिन आ कविताक शीर्षक देलथिनकिकिऔनी।


नोट- सगर राति दीप जरयसरसठिम कथा गोष्ठी, मानाराय टोल, नरहन (समस्तीपुर) मे पठित


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