Friday, April 6, 2012

सत्येन्द्र कुमार झा- विहनि कथा-भैयारी



नेताजी केँ भरि पाँज पकड़लक।
“भाइजी...भाइजी...। ”
“हट...के भाइजी? ”
“अहाँ भाइजी...हमर भाइजी...आर के? ”
“हइ...तोरा डर नै होइ छौ हम्मर? ”
“नै...भाइयोसँ कहूँ भाइ डेराइत छै? ”
“हम तोहर भाइ?...कहिया के? ”
“कोनो एक कोखिसँ जन्म नेनहे लोक भाइ बनै छै? एक्के धन्धा कएनिहार सेहो आपसमे भाइये होइ छै...। ”
“चुप...। ”
नेताजीक समक्ष एकटा भिखमंगा ठाढ़ छल।

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