Friday, April 6, 2012

सत्येन्द्र कुमार झा- विहनि कथा-हिस्सक




महानगरमे दू कोठरीक मकान। एकटा कम्पनीमे छोट पदपर कार्यरत। अल्प वेतन।
पति-पत्नीक साझी विचार जे एकटा पेइंग गेस्ट राखि ली तँ आमदनी किछु बढ़त। एकटा महानगरीय बहुरुपियाक, जे अपनाकेँ मल्टीनेशनल कम्पनीक इंजीनियर कहए, पेइंग गेस्ट बनि रहए लागल। आस्ते-आस्ते पति-पत्नी अपन भावी जमाएक रूपमे ओहि बहुरुपियाकेँ देखए लगलाह।
हुनक बेटी ओकर कोठरीमे आबए-जाए लगलीह।
ईकदिन ओ बहुरुपिया कतौ बिला गेल। संगमे ओकर बेटीक सभ गहना-गुड़िया लऽ गेल आ छोड़ि देलक अपन मोचरल बासि ओछाओन।
क्रोध, चिन्ता आ दुःखसँ झमारल पति-पत्नी किछु दिन धरि व्याकुल रहली, फेर अपनाकेँ संयमित करैत अपन नव बसल कॉलोनीमे घोषणा केलन्हि- “हम अपन बेटीक बियाह कोनो इन्जीनियरसँ करब।”

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