Friday, April 6, 2012

कौशल कुमार- विहनि कथा- दूमुँहा




आइ मिथिलाक लोकक छाती गर्वसँ चौड़ा भऽ रहल छल आ सिया बाबूक चर्चा सुनि कऽ आओर हुनका ऊपर विमर्श करैत अह्लादित छल लोकक हृदए। सिया बाबू चर्चित समाज सेवक आ लोकसेवक छथि, आइसँ दस बरख पहिने हुनका लग किछु नै रहनि मुदा आइ अपना जिला मुख्यालयक अनाबा पटना आ दिल्लीमे अपन कोठी छनि आ बेस जन समर्थन आओर राजनीतिक रुतबा सेहो।
परसू रातिमे एकटा स्थानीय कागतक ठोंगा, झोरा आओर लिफाफ बनबऽबला इकाइसँ ओ सत्रहटा बन्धुआ बाल मजदूरकेँ मुक्त करौलनि, तै लेल मीडिया हुनकर डंका दू दिनसँ पीट रहल अछि। हमहूँ , हुनका अपन समाजसेवाक क्षेत्रमे आदर्श मानि कऽ काज करऽबला, एकटा समाजसेवी छी आओर नारी उत्थानपर एकटा कार्यक्रमक आयोजन कऽ रहल छी। कार्यक्रमक प्रधान अतिथि के बनता एकर विचार संगठनमे कऽकए सिया बाबूकेँ प्रधान अतिथि बनबाक हेतु हुनका कोठीपर आग्रह कऽ आएल छी।
झक्क-झक्क झलकैत कोठीकेँ सुनियोजित सलीकासँ सजाओल अतिथि कक्षमे गहींर नक्काशीदार मूर्ति सभ जकर प्रत्येक गह-गह झलकैत सियाबाबूक धवल व्यक्तित्व जेना प्रदर्शन कऽ रहल हो। हमरा पता लागल, सिया बाबू घरक सफाइ अपने हाथे करै छथि। अइ सभमे हम ओझराएल रही कि सियाबाबू श्वेत दन्तराशिक मधुर मुखरित मुस्कानक संग पधारलनि। हम अपन कार्यक्रमक रूपरेखा बतबैत रहलियनि आ ओ शालीनतासँ सुनैत रहला।
अही मध्य एकटा बच्चा जूसक दूटा गिलासक संग एकटा नक्काशीदार शीसाक जगमे पानि आ एकटा खाली गिलास सेहो एकटा ट्रेमे लऽ कऽ आएल। ओ हमरा सभकेँ जूस लै लेल कहलनि आ अपने पानि ढारि कऽ पीलनि। हम सभ गप्प करिते रही तावत फेर कने कालक बाद वएह बच्चा चुपचाप आएल आ सभ खाली गिलास आ जग ट्रेमे लऽ कऽ चलि गेल। कने कालक बाद झनाक दऽ एकटा अबाज भीतरसँ आओल, लागल जेना किछु शीसाक खसलै। सियाबाबू हमरा सभकेँ आश्वासन दऽ कऽ कने हड़बड़ीमे भीतर चलि गेला। हमहूँ अपना सेक्रेटरीकेँ, जे नेता चिपकू लोक छला, हुनका चलबाक लेल उद्यत केलौं। तावत एकटा जोरक चित्कार कानमे पड़ल जेना ककरो जिब्बह कएल जाइत हो। हमरा रहल नै गेल, बाहर जा कऽ जुत्ता पहिरैक बदला कने भीतर दिस हुल्की देलिऐ तँ सिया बाबूकेँ देखलौं जे ओही बच्चाक दुनू कान पकरने हवामे लटकौने जेना उखाड़ि लेथिन आओर आँखिमे बहशीपन जेना ओ हुनक सभसँ पैघ दुश्मन हो। ई दृश्य हमरा लेल असह्य छल, हम पाछाँ मुड़ि कऽ जल्दीसँ जुत्ता पहीर अतिथि कक्षक बाहर आबि किंकर्तव्यविमूढ़ ठाढ़ रही तावत सियाबाबू अपन ओही मुखरित मुस्कानक संग हाथमे स्मारिकाक लेल अपन पत्र लेने प्रकट भेला। हम सभ बिदा लऽ बिदा भेलहुँ। कोठीसँ बाहर निकलबाक समए वएह बच्चाकेँ देखलौं जे हाथमे झोड़ा लेने सम्भवतः बजार जा रहल छल। चुँकि हमर चालि तीव्र छल तेँ हम सभ ओकरासँ आगाँ  निकलि गेलौं मुदा ओकरा दिस देखलौं तँ ओकरा गालपर छल पाँचो आंगुरक छाप आ गालपर नीपल नोर संगहि कान दुनू लगै छल जेना रक्तरंजित हो, ततेक लाल। हम क्षुब्ध रही, की ईएह दुमुँहा व्यक्तित्व हमर आदर्श अछि?

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