Friday, April 6, 2012

कौशल कुमार- विहनि कथा- प्रार्थना आ आस्था




भगवतीक वंदनाचरण भऽ रहल छलनि, लोक सभ पूर्ण उत्साहसँ गाबि रहल छलथि, जिनका श्लोक मोन नै रहनि ओ गाबैक भाभट करैत मुँह चलबैत आ ठोर पटपटाबैत रहथि। अही भीड़मे एकटा चारि-पाँच वर्षक बच्चा सेहो आगाँमे ठाढ़ भेल कल जोड़ने पता नै कखन आबि कऽ ठाढ़ भऽ गेल। जखन त्वमेव माता च पिता... हेबऽ लगलै तँ ओहो खूब जोर-जोरसँ संग देलकै फेर ओकर बाद बेचाराकेँ चुप भऽ जाए पड़लै। सभ गबैत वा गाबैक ढोंग करैत मुदा ओ सबहक मुँह तकैत ठाढ़ रहल। कने कालमे वन्दना खत्म भेलै तँ ओ आरती लऽ कऽ आ प्रसाद लऽ कऽ हाथमे रखने रहल आ जखन भीड़ कम होमऽ लगलै तँ भगवतीक मूर्तिक आओर लगमे जा कऽ अ आ सँ लऽ कऽ य र ल व  ज्ञ धरि पढ़ि देलकै आ हाथ महक प्रसाद प्रणाम कऽ कऽ कने खा लेलक आ कने मुट्ठीमे रखने बिदा भेल। ई सभ देखि पूजा-आयोजक-परिवारकेँ एक गोट जे बढ़ि-चढ़ि कऽ स्तोत्र पाठ कऽ रहल छला, बच्चा सँ व्यंग्ये पुछलखिन- ऐं रौ, भुटका त्वमेव माता च पिता...तँ तोँ बड्ड टहंकारमे कहलहीं आ ओकर बाद एसगरमे ई अ आ किए भगवतीकेँ पढ़बऽ लगलहुन?
बच्चा कने डेराइत तोतराइत बाजल- हमरा इस्कूलमे त्वमेव माता...पढ़बै छथिन मास्साब...आ अ आ किए पढ़लही? सज्जन फेर चुटकी लेलखिन। तावत छटैत भीड़ फेरसँ उत्सुकतामे संगठित होमऽ लागल।


ओ तँ अइ लेल जे बच्चा साँस भरैत बाजल- भगवती अपने छ सभसँ नीक कविता बना लेतिन...

लोक ठठा कऽ हँसल मुदा पुछनाहार झेप गेला आ ई प्रसाद ककरा लेल लऽ जाइ छहक?- सज्जनकेँ एखनो उत्सुकता छलनि!
-ओ हमल पिल्लाक माय मलि गेलैए, ओकला खुआ देबै तँ ओ जीब जेतै।- बच्चा बाजल आ ओम्हर दौड़ गेल जेम्हर ओकर पिल्लाक माय पड़ल छलै।
सभ अवाक् ओकरा देखैत रहल।

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